सामान्य तौर पर योग सभी बीमारियों का इलाज होता है! योगासनों को मुख्यरूप से शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने, शरीर को फिट रखने और मन को शांत करने वाले अभ्यास के तौर पर जाना जाता है, पर क्या आप जानते हैं कि योगासनों के नियमित अभ्यास की आदत कई प्रकार की बीमारियों की गंभीरता को कम करने में भी आपके लिए सहायक हो सकती है? अध्ययनों में इस बात का जिक्र मिलता है कि योगासन हृदय-फेफड़े, डायबिटीज, दर्द की गंभीरता को कम करते हुए आपके स्वास्थ्य में बेहतर सुधार कर सकते हैं।
योग विशेषज्ञ कहते हैं, जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है, उन्हें भी योगासनों का अभ्यास करके लाभ मिल सकता है। दवाइयों के साथ योगाभ्यास को दिनचर्या का हिस्सा बनाना ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल रखने और डायबिटीज के कारण होने वाली जटिलताओं को कम करने में आपके लिए मददगार हो सकता है। इतना ही नहीं जो लोग नियमित रूप से योगासनों का अभ्यास करते हैं उनमें मधुमेह के विकसित होने का जोखिम भी कम होता है।डायबिटीज के कारण होने वाली जटिलताओं से बचाव के लिए भी योगासनों का अभ्यास करना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
कौन-कौन से हैं योग?
विपरीतकरणी योगासन को लेग अप द वॉ पोज के रूप में जाना जाता है, यह शरीर के लिए कई प्रकार से लाभकारी हो सकता है। जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या होती है, विपरीतकरणी अभ्यास ऐसे लोगों के लिए भी कारगर माना जाता है। रक्तचाप और रक्त शर्करा दोनों के स्तर को कंट्रोल करने में इस योग के अभ्यास के लाभ हो सकते हैं। तनाव के स्तर को प्रबंधित करने में भी इसके लाभ माने जाते हैं जो डायबिटीज की जटिलताओं को कम करता है।
मार्जरी आसन को कैट काऊ पोज के रूप में जाना जाता है, पेट-पीठ की जटिलताओं को कम करने से लेकर डायबिटीज की समस्या में राहत के लिए इस योग का अभ्यास किया जा सकता है। इस योग का अभ्यास अग्नाशय के कामकाज को ठीक रखने के साथ इंसुलिन हार्मोन के स्राव को मैनेज करने में लाभकारी हो सकता है। मधुमेह की जटिलताओं को कम करने में इस योग के लाभ हो सकते हैं।
अनुलोम-विलोम आसन तंत्रिका तंत्र को शांत करने वाले प्रभाव के लिए जाना जाता है। इसके शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के लाभ हो सकते हैं। मधुमेह की जटिलताओं को कम करने में इस अभ्यास को फायदेमंद माना जाता है। यह आसन तनाव के स्तर का ठीक से प्रबंधन करता है, जिससे ब्लड शुगर के स्तर को बेहतर बनाए रखने में मदद मिल सकती है। यह आसन सभी लोगों के लिए फायदेमंद माना जाता है।
अनुलोम विलोम कई प्राणायामों एवं सांस लेने के अभ्यासों में से एक है। यह प्राणायाम हमारे शरीर के तीन दोषों वात, पित्त और कफ को दूर कर शरीर को संतुलित अवस्था में लाने में बहुत सहायक होता है। अनुलोम विलोम का ठीक उल्टा होता है और यह श्वसन से संबंधित बीमारियां जैसे अस्थमा को दूर करने में मदद करता है। यह शरीर को ऊर्जा से भरता है। इसके अभ्यास से तनाव एवं चिंता भी दूर होती है। महिलाओं को अर्थराइटिस जैसी गंभीर समस्या से निजात दिलाता है। स्टूडेंट्स को पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है। इसका अभ्यास हर उम्र के लोग कर सकते हैं।
जमीन पर पदमासन की मुद्रा में बैठ जाएं। दाहिने पैर के पंजे को बाएं पैर की जांघ पर और बाएं पैर के पंजे को दाएं पैर की जांघ पर रखें। आंखों को बंद कर लें। अब दाहिने नाक को दाहिने हाथ के अंगूठे से बंद करें और बाएं नाक से धीरे-धीरे गहरी सांस लें। फेफड़े हवा से भर जाएं। अब दाहिने नाक पर रखे दाएं अंगूठे को हटा लें और सांस छोड़ें। सांस छोड़ते समय आपकी मध्य उंगली बाएं नाक के पास हो। अब दाएं नाक से सांस लें और सांस छोड़ते समय दाएं अंगूठे को नाक के पास से हटा लें। इस क्रिया को 5 मिनट तक दोहराएं। इसे सुबह के समय ताजी हवा में बैठकर ही करें।
यह प्राणायाम श्वसन क्रिया से जुड़ा है इसलिए यह शरीर में जमा हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने, फेफड़े को स्वस्थ रखने सहित शरीर की तमाम बीमारियों को दूर करने में मदद करता है।नियमित रूप से इसका अभ्यास करने से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है जिसके कारण ब्लड प्रेशर की समस्या नहीं होती है। मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसका अभ्यास करने से शरीर में इंसुलिन का स्तर कम नहीं होता है।
यह प्राणायाम गठिया, पेट फूलना, नसों में ऐंठन, एसिडिटी और साइनसाइटिस की समस्या को दूर करने में सहायक होता है। 40 साल की उम्र के बाद लोगों को अनुलोम विलोम को अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करना चाहिए।
इसके अभ्यास से व्यक्ति के मन में सकारात्मक विचार विचार आते हैं। अनुलोम विलोम का प्रतिदिन अभ्यास करने से गुस्सा, चिड़चिड़ापन, तनाव, भूलने की आदत, बेचैनी, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और माइग्रेन जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं।