मुंबई में जिस तरीके से लगातार घोटाले होते जा रहे हैं, इस बीच यह सवाल जरूर उठता है कि क्या हम हमारे आशियाने को मुंबई में बना सकते हैं? पात्रा चॉल घोटाला सुर्खियों में है। गरीबों की इस योजना में भी भ्रष्टाचार के घुन लग गये। मुंबई में आशियाने का सपना पूरा कर पाना इतना आसान नहीं है, खासकर आम लोग के लिए तो कतई नहीं। शायद इसलिए भी इसे मायानगरी कहा जाता है। जो दिखता है, जैसा दिखाया जाता है, वैसा होता नहीं। मुंबई में आम लोगों के हक पर डकैती का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले शहीद सैनिकों की विधवाओं के लिए कोलाबा में महाराष्ट्र सरकार ने आदर्श हाउसिंग सोसायटी बनाई थी। लेकिल इसमें भी घपला हो गया। नियमों को कहीं दूर फेंक इस 31 मंजिला बिल्डिंग सोसायटी के फ्लैट बड़े अधिकारियों नेताओं और सेना के अफसरों को बहुत कम दाम में बेच दिये गये। एक आरटीआई के बाद इसका खुलासा हुआ। यही नहीं, इस घोटाले में चार पूर्व सीएम अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और दो पूर्व शहरी विकास मंत्री राजेश टोपे, सुनील तटकरे का नाम भी आ चुका है।
क्या है पात्रा चॉल योजना?
इस योजना के तहत 672 लोगों को फ्लैट देने थे। बाकी की बची जमीन को निजी हाथों बेचना था। काम का ठेका आशीष कन्सट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को सौंपी गई। तीन पार्टी बनी, GACPL, पात्रा चॉल में रहने वाले लोग और MHADA। नियम बनाया गया कि जब तक घर नहीं बन जाते, बत तक चॉल में रहने वाले लोगों को GACPL किराया देगा। 36 महीने में काम पूरा होना था। लेकिन आज तक चॉल के लोगों को फ्लैट नहीं दिया गया। खबरों की मानें तो उन्हें 2014 के बाद से किराया भी नहीं दिया गया। 2007 से यहां के नागरिकों को यह भरोसा देकर उनके घर खाली करवाए गए। उन्हें भरोसा दिया गया था कि जल्द ही उनके सपनों का घर मिलेगा। हालांकि आज 15 साल बाद भी ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया है। अलबत्ता पात्रा चॉल में जहां पर यहां के असल रहवासियों को घर बना कर दिए जाने हैं।जून, 2021 को महाराष्ट्र कैबिनेट ने फिर से पात्रा चॉल रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी। 2022 की फरवरी में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आदेश पर निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ। अब इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी म्हाडा को दी गई।शिवसेना सांसद संजय राउत इसी घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। घोटाले की शुरुआत साल 2007 में ही शुरू हो गई थी। तब यह आरोप लगा था कि म्हाडा के साथ गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन और एचडीआईएल हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया।
इस मामले में 1034 करोड रुपए के घोटाले का आरोप है। यह कंपनी प्रवीन राउत की है। जो शिवसेना सांसद संजय राउत के करीबी मित्र हैं। इस कंपनी पर चॉल के लोगों के साथ धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है। यहां पत्र में 3,000 से ज्यादा फ्लैट बनाए जाने थे। जिसमें से 672 साल के चॉल निवासियों को मिलने थे। लेकिन जमीन प्राइवेट बिल्डरों को बेच दी गई। ओम प्रकाश कहते हैं कि पूरा खेल फायदे को लेकर जुड़ा है। जबकि जब प्रोजेक्ट पास हुआ तब वहां जमीन की कीमत कम थी। आज वह पॉश इलाके में है। कंपनियां फ्री में घर क्यों देगी। जिस योजना में एक हजार करोड़ रुपए का घाटाला हो सकता है तो वहां कितना मुनाफा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
आदर्श हाउसिंग सोसायटी मुंबई के कोलाबा में बना 31 मंजिला अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स है। इसमें मूल रूप से 1999 के कारगिल युद्ध के युद्ध नायकों और शहीद विधवाओं को फ्लैट मिलने थे। लेकिन आवंटन ऐसे लोगों को भी कर दिया गया नौकरशाह और राजनेताओं के रिश्तेदार थे और जो कारगिल युद्ध से बिल्कुल भी जुड़े नहीं थे।
यह मुद्दा 2003 से चर्चा में था। लेकिन जांच 2010 में ही शुरू हुई। जिसके बाद सेना और सीबीआई ने अलग-अलग जांच शुरू की। पहली बार में दी गई जमीन के दुरुपयोग के रूप में सामने आया। इसके बाद नौसेना ने गंभीर सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए महाराष्ट्र सरकार को व्यवसाय प्रमाण पत्र की अनुमति देने पर आपत्ति जताई थी क्योंकि 100 मीटर ऊंची इमारत एक नियोजित हेलीपैड और सैन्य प्रतिष्ठानों के बगल में थी। यह भी पाया गया कि सोसायटी को पर्यावरण और वन मंत्रालय से एनओसी नहीं मिली थी और सोसायटी को केवल छह मंजिल बनाने की अनुमति थी। जब बेनामी लेनदेन का पता चला तो जांच में ईडी भी शामिल हो गया।
सीबीआई ने 2013 में प्राथमिकी दर्ज की। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण सहित 14 लोगों पर आईपीसी की धारा 120 (बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया था। कांग्रेस के सीएम चव्हाण को पद से इस्तीफा देना पड़ा।
2011 में महाराष्ट्र सरकार ने आरोपों की जांच के लिए दो सदस्यीय न्यायिक टीम का गठन किया था। 2013 में टीम 25 अवैध आवंटन का खुलासा किया। इसमें से 22 फ्लैट फर्जी नाम से खरीदे गए थे। चार पूर्व सीएम का भी नाम आया। अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे। दो पूर्व शहरी विकास मंत्री राजेश टोपे, सुनील तटकरे और 12 ब्यूरोक्रेट्स के नाम शामिल थे।4 जुलाई 2012 को केंद्रीय एजेंसी ने विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष मामले में अपना पहला आरोप पत्र दायर किया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपार्टमेंट को गिराने का आदेश दिया था और राजनेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ शक्तियों के कथित दुरुपयोग के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग की थी। अभी भी मामले की जांच चल रही है। फ्लैट का आवंटन भी नहीं हो पाया है।