Friday, November 22, 2024
HomeEnvironmentजलवायु परिवर्तन : - आम लोगों के लिए बहुत ही आम सी...

जलवायु परिवर्तन : – आम लोगों के लिए बहुत ही आम सी समस्या

एक सवाल आप लोगों से कि हमारी पृथ्वी कब तक सुरक्षित है? और कब तक सुरक्षित रहेगी?

जरा आप मुझे समझाएं कि पेड़ों के बिना, पानी के बिना ,आप कब तक जीवित रह सकते हैं ? अगर आपने इनके बिना जीवित रहने का कोई उपाय ढूंढ लिया हो तो इसे दुनिया को भी बताएं और अगर नहीं तो अभी से इस विषय पर विचार करना शुरू कर दे ताकि आने वाली पीढ़ी यह समझ सके कि पानी , पेड़ स्वच्छ वायु और पर्यावरण हमारे जीवन के लिए क्या और कितना महत्व रखते हैं ,और अभी से इसे संरक्षित करना सीखें ।

आए दिन जंगलों में आग, पहाड़ों में भूस्खलन ,पेड़ों का कांटा जाना और लगातार यानी हर साल वर्षा के दौरान बाढ़ ,कहीं वर्षा ना होने के कारण सूखा पड़ना इन सब का क्या कारण है?क्या ये सब हम वाकई हमारे लिए काफी आम सी बाते हो गई हैं।पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं ,कि पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद(glacier) पिघल रहे हैं ।,और महासागरों का जलस्तर बढ़ता जा रहा है । जिसके कारण अनेक प्रकार की आपदाएं सामने आ रही हैं। तथा कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा और बढ़ गया है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्ष में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है । जिससे मानव जाति पर इसका बुरा असर हो रहा है । पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि में काफी कम हो सकता है ,परंतु समग्र इतिहास में यहां की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है। एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएं सामने आई हैं। अगर अभी से जलवायु परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो आने वाले समय में यह विकराल रूप धारण कर सकता है ।भारत ही नहीं अन्य देशों को भी इस जलवायु परिवर्तन का सामना करना पड़ सकता है ,और करना पड़ भी रहा है ।

भले ही बहुत सारी योजनाएं जलवायु परिवर्तन को लेकर आयोजित की जा रही हो पर असर कुछ देखने को नहीं मिल रहा । अभी भी स्थिति काफी दयनीय है । कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर है । और वह यह कह चुका है कि वह पेरिस जलवायु समझौते के अपने वादे को पूरा करने की दिशा में अग्रसर है। दरअसल पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है । और उसे 1.5 डिग्री पर ही रोक देना है। परंतु आईपीसीसी एक रिपोर्ट दर्शाती है कि उसका पिछला लक्ष्य पूरा होते नहीं दिख रहा है। कारण यह है कि वैश्विक तापमान बढ़ने की दिशा में दुनिया के कई देश तेजी से कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं कर पा रहे । बहुत सारे बड़े देशों ने कहा है कि वह 2050 तक कार्बन के मामले में न्यूट्रल हो जाएंगे। पर हाल अभी भी वही देखने को मिल रहा है। दरअसल ग्लोबल वार्मिंग के जिम्मेदार और कोई नहीं मानव ही अधिक माने जाते हैं। लगातार पेड़ों की हो रही कटाई ,जनसंख्या में वृद्धि, प्लास्टिक का उपयोग , प्रदूषण का बढ़ना और वातावरण में शुद्धता ना होना इन सब का कारण बताए जा रहे हैं।

खुद को बुद्धिमान बताने वाले हम मानव जाति के लोग पेड़ों को काटकर सड़क ,मॉल ,मेट्रो आदि तो बना रहे हैं ,पर यह ध्यान नहीं दे रहे कि अगर यह पेड़ ना रहे, अगर धरती पर पानी ना रहे ,वातावरण शुद्ध ना रहे तो इन बड़े-बड़े मॉलो मेट्रो परियोजनाओं का कोई आश्रय नहीं रह जाएगा ।

आइए थोड़ा जाने की क्या है यह ग्रीन हाउस इफेक्ट –

ग्रीन हाउस गैस में सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के बारे में बात की जाती है । बता दें कि इसे ग्रीन हाउस के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। और यह प्राकृतिक और मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली है । वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन जलाने पर होता है। यानी कि गांव में जो लकड़ियां महिलाएं खाना बनाने के लिए उपयोग करती हैं उन में कार्बन डाइऑक्साइड की सबसे अधिक मात्रा देखने को मिलती है। दूसरे गैसों की बात करें तो उनमें मिथेन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन आते हैं। मिथेन का उपयोग जैव पदार्थों का एक बहुत बड़ा स्त्रोत्र है परंतु यह काफी कम मात्रा में वातावरण में उपस्थित है। वही क्लोरोफ्लोरोकार्बन मानव जाति द्वारा उपयोग में लाए जाने वाली वस्तु से अधिक मात्रा में निकलता है जिसमें रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर प्रमुख है।
गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली एयर कंडीशनर सीएफसी जैसी गैस से निकालती है। जिसे रोका तो जा सकता है परंतु घरों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में जब बिजली का उपयोग आम आदमी करते हैं, तो उससे बिजली का उपयोग बढ़ता है। बिजली के उपयोग बढ़ने के कारण भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा होता है । और वही रेफ्रिजरेटर के उपयोग से हमारे पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाने वाली या कहें यूवी रेज यानी अल्ट्रावॉयलेट रेज से बचाने वाली ओजोन परत को धीरे-धीरे नष्ट करने का काम करता है। ग्रीन हाउस गैस की परत पृथ्वी की सतह पर तापमान को संतुलन बनाए रखने में आवश्यक है, क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार अगर यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा जिससे ठंड बढ़ने के आसार अधिक हो जाएंगे।

कुछ स्थानों पर अधिक वर्षा हो रही है, कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है , पिछले कुछ दशकों से बाढ़ ,सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ती दिख रही है । यह सभी जलवायु के परिणाम स्वरूप की हो रहे हैं।

मानव जीवन को सबसे अधिक नुकसान ग्लोबल वार्मिंग की वजह से झेलना पड़ रहा है।
मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां पृथ्वी पर अधिक बढ़ गई हैं । जिन्हें नियंत्रित करना काफी मुश्किल हो गया है। डब्ल्यूएचओ (who) यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट की माने तो वह दिखाते हैं कि पिछले दशक से अब तक हीटवेव(hitwave) के कारण लगभग 150000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। जिसका एकमात्र कारण सिर्फ और सिर्फ विश्व में हो रहा जलवायु परिवर्तन ही है। मानव के साथ-साथ जानवर भी इसके परिणाम को झेल रहे हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ दिया गया जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो गए थे। तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को भी विलुप्त करने में मजबूत भूमिका निभाई है विशेषज्ञ के अनुसार पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियां 2050 तक विलुप्त होने के कगार पर है। कैलिफोर्निया और ब्राजील जैसे जगहों में जंगलों में आग लगने की घटना से कौन वाकिफ नहीं होगा, ब्राजील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2019 से अब तक ब्राजील के अमेजॉन वन में कुल 74,155 बार पेड़ों में आग लगने की घटना सामने आ चुकी है । यह घटना गर्म और शुष्क परिस्थितियां पैदा होने की वजह से होती है ,जो कि 2018 से 85% और बढ़ गई है।

जलवायु परिवर्तन से बचने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे कुछ सम्मेलन :-

1 . इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज आईपीसीसी के अंदर 195 सदस्य देश हर साल में शामिल होते हैं। और( क्लाइमेट चेंज ) जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं। जिसमें आईपीसीसी आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय वार्ता में इसके प्रभाव और भविष्य से संबंधित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूल तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नियम -नीति बनाने के लिए वैज्ञानिक आकलन प्रदान करता है । यह सभी स्तरों पर सरकारों को सूचनाएं प्रदान करता है। जिसका इस्तेमाल वो जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिए किया जा सकता है। इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनइपी (undp) और विश्व विज्ञान संगठन द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
2. एक और सम्मेलन यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज यूएनएफसीसीसी, जिसमें 197 पार्टी है। यह अंतिम अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है ।
3. पेरिस समझौता यदि कम शब्दों में कहा जाए तो यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौता है ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य में काम करता है।
कई अन्य राष्ट्रीय परियोजनाओं पर अगर ध्यान डालें तो उनमें राष्ट्रीय सौर मिशन, विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्र मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीति ज्ञान पर राष्ट्र मिशन, सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्र मिशन ,सुधीर हरियाली परिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्र मिशन शामिल है।
कहने को तो योजनाएं और परियोजना बहुत सी हैं ,जिससे यह साफ दिखता है कि लोग या कहिये सरकार हमारी पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन से बचाने की के लिए काम करती दिख रही है। पर क्या सच में इसका कोई असर होगा ?क्योंकि अभी तक ऐसे कुछ परिणाम सामने नहीं आए हैं ,जिसे यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में भूस्खलन, अधिक वर्षा से बाढ़, आना वर्षा ना होने के कारण सुखाना पडना और जंगलों में आग लगने के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं का बढ़ना, रुक जाएगा। यह समाज और हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है, एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है । आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीरता से काम करने का है। अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी को इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है। पेड़ ना सिर्फ फल और छाया देते हैं बल्कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्वपूर्ण गैस को अवशोषित भी करते हैं। अगर हम लगातार इसी तरह पेड़ों की कटाई करते रहे तो हम उन की समाप्ति के साथ हमारा प्राकृतिक तंत्र भी खो देंगे। 2007 में क्लाइमेट चेंज के ऊपर अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था, क्योंकि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कार्य किया था। लेकिन सवाल यह है कि क्या संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही हम ग्लोबल वार्मिंग से निपट सकते हैं ? या सिर्फ एक व्यक्ति से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या दूर हो सकती है ? इस विषय पर विचार करें और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ने से रोकने के लिए एक कदम उठाएं जिससे हम एवं हमारी आने वाली पीढ़ी इस पृथ्वी पर अपना जीवन यापन कर सके। अन्यथा पृथ्वी खत्म होने में अब ज्यादा देर नहीं लगेगी।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

Ravindra Kirti Founder Mojo Patrakar
Ravindra Kirti Founder Mojo Patrakarhttp://mojopatrakar.com/
Ravindra Kirti is a well-rounded Marketing professional with an impressive academic and professional portfolio. He is IIM Calcutta alumnus & holds a PhD in Commerce, having written an insightful thesis on consumer behavior and psychology, which informs his deep understanding of market dynamics and client engagement strategies. His academic journey includes an MBA in Marketing, where he specialized in strategic management, international marketing, and luxury retail management, equipping him with a global perspective and a strategic edge in high-end market segments.In addition to his business expertise, Ravindra is also academically trained in law, holding a Master’s in Law with specializations in law of patents, IT & IPR, police law and administration, white-collar crime, and corporate crime. This legal knowledge complements his role as the Chief at Jurislaw Partners, where he applies a blend of legal acumen and strategic marketing.With such a rich educational background, Ravindra excels across a range of fields, from legal marketing to luxury retail, and event design. His ability to interlace disciplines—commerce, marketing, and law—enables him to drive successful outcomes in every venture he undertakes, whether as Chief at Jurislaw Partners, Editor at Mojo Patrakar and Global Growth Forum, Founder of CircusINC, or Chief Designer at Byaah by CircusINC.On a personal note, Ravindra Kirti is not only a devoted pawrent to his pet, Kattappa, but also an enthusiast of Mixed Martial Arts (MMA) and holds a Taekwondo Dan 1. This active lifestyle complements his multifaceted career, reflecting his discipline, resilience, and commitment—qualities he brings into his professional relationships. His bond with Kattappa adds a warm, grounded side to his profile, showcasing his nurturing and compassionate nature, which shines through in his connections with clients and colleagues.Ravindra’s career exemplifies versatility, intellectual depth, and excellence. Whether through his contributions to media, law, events, or design, he remains a dynamic and influential presence, continually innovating and leaving a lasting impact across industries. His ability to balance these diverse roles is a testament to his strategic vision and dedication to making a difference in every field he enters.
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments