चीन और अमेरिका में अब परमाणु बम के लिए तना तनी चली हुई है! रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहमे हुए थे। उसी डर से जो आप-हम सब महसूस कर रहे थे। 77 साल बाद हिरोशिमा और नगासाकी के दृश्य आंखों के सामने उतरने लगे। गुटेरेस ने कहा.. कभी लग रहा था कि दुनिया में परमाणु युद्ध नहीं होगा। मुझे कहना पड़ रहा है ये गलत है। कभी भी प्रलंयकारी युद्ध शुरू हो सकता है। फिर नैंसी पेलोसी के ताइवान जाने के बाद जो हो रहा है उसे हम देख ही रहे हैं। वो तो ताइपेई से सुरक्षित निकल गईं लेकिन आगबबूला चीन ताइवान को छह साइड से घेर कर मिसाइलें बरसा रहा है। चीन तो घोषित परमाणु शक्ति संपन्न देश है। अगर अमेरिका और चीन टकराते हैं तो परमाणु युद्ध का खतरा कितन बढ़ जाएगा इसे समझना मुश्किल नहीं है। इन सबके बीच आज यानी छह अगस्त कभी न भूलने वाली वो तारीख है जिसने जापान के हिरोशिमा नेस्तनाबूद कर दिया था। 1945 में आज ही के दिन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने मानवता का शर्मसार करने वाला फैसला लिया। अमेरिकी बी-29 बमवर्षक विमान ने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिया। इसमें 70,000 लोग मारे गए। रैडिएशन की मार तो आज की पीढ़ी भी झेल रही है। तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासकी पर परमाणु बम गिरा और वहां 40,000 मारे गए। जरा सोचिए 77 साल बाद सात देशों के पास तो घोषित तौर पर परमाणु बम हैं। ये हैं रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत और पाकिस्तान। इजरायल और उत्तर कोरिया ने औपचारिक ऐलान नहीं किया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक दुनिया भर में परमाणु हथियारों की संख्या 12705 है। ये धरती को पचासों बार बर्बाद कर सकती है। आज अमेरिका या दुनिया के किसी और शहर पर परमाणु हमला हुआ तो हिरोशिमा की तबाही बहुत बौनी साबित होगी।
आप जानने चाहेंगे कि अगर दुनिया के सभी परमाणु बमों को मिला दें तो कितना विस्फोटक पॉवर तैयार होगा। एक आकलन के मुताबिक हिरोशिमा वाले बम को अगर छह अगस्त, 1945 के दिन से हर दो घंटे पर दिन में 12 बार गिराया जाए और ये सिलसिला आज तक जारी रहे तब भी उतना विस्फोटक पॉवर नहीं बनेगा जितना अभी दुनिया के सभी परमाणु हथियारों में लैस है। एटमी पॉवर के पितामह रॉबर्ट जे ओपनहाइमर ने जब हिरोशिमा और नागासकी की तबाही देखी तो उसे खुद में ब्रह्मा नजर आने लगे। इसका जिक्र करते हुए ओपनहाइमर ने कहा था कि उन्हें खुद के भीतर दुनिया का संहारक नजर आता है। इसके बाद भी अमेरिका रुका नहीं। मार्शल आइलैंड पर कैसल ब्रावो में जब 14.8 मेगाटन ताकत का परमाणु विस्फोट किया गया तो ऐसा क्रेटर बना जो आज स्पेस से भी दिखाई देता है।
फिर रूस ने 30 अक्टूबर 1961 को हाइड्रोजन बम से जवाब दे दिया। 26 फीट लंबे और सात फीट व्यास वाले RDS 200 बम की ताकत 57 मेगाटन की थी। मतलब हिरोशिमा वाले बम से 4000 गुणा ज्यादा ताकतवर। नोवाया जेमलिया में इसका टेस्ट किया गया। भयानक भूकंप के झटके महसूस किए गए जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.97 मापी गई। आठ करोड़ टन के बराबर ग्लेशियर अपनी जगह से हिल गया और दो मील लंबा झील बन गया। फिर अमेरिका ने तीन स्टेज वाला बी-41 बम बना लिया। फिर तो ये सिलसिला चलता रहा। आज अमेरिका के पास बी-82 बम है तो रूस के पास RS-28 SARMAT जिसे नाटो शैतान-2 की संज्ञा देता है।
परमाणु बम फट गए तो
वही नाटो जो रूस-यूक्रेन युद्ध का कारण बना है। अमेरिका के 69 प्रतिशत लोगों को यूक्रेन युद्ध के बाद परमाणु युद्ध का डर लग रहा था। 2014 में डच पीस रिसर्च फाउंडेशन ने एक हाइपोथेटिकल रिसर्च किया। अगर रॉटरडम बंदरगाह पर परमाणु बम गिरता है तो क्या होगा। सुसी स्नाइडर उस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में से एक हैं। वो कहती हैं, आठ हजार लोग सेकंड्स में मर जाएंगे। ये एक किलोमीटर के दायरे में होगा। फिर रैडिएशन से अगले कुछ दिनों में 60,000 लोग मरेंगे। कोई मेडिकल रेस्पॉन्स संभव नहीं हो पाएगा। जहां बम हिट करता है उस दायरे में तो कोई जा भी नहीं पाएगा। फायरबॉल से तबाही दूसरे शहरों तक जा सकती है। पूरी इकॉनमी बर्बाद हो जाएगी। बिजली, टेलीकॉम खत्म। जलवायु परिवर्तन के कारण भुखमरी पैदा हो सकती है। 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक अगर रूस और अमेरिका के बीज परमाणु जंग हुआ तो दोनों देशों से ज्यादा चीन में लोग बिना दाना पानी के मर जाएंगे। 115 किलो टन के बम भी गिरा दिए गए तो दो साल के भीतर ओजोन लेयर खत्म हो जाएगा। अब समझ लीजिए अगर सभी 12 हजार हथियार चल गए तो क्या होगा। अगर 50 न्यूक्लियर टॉरपीडो सबमरीन के भीतर ही ब्लास्ट हो गए तो उनसे ऐसी सुनामी पैदा होगी जो दुनिया को खत्म करने के लिए काफी है।
परमाणु खतरे को मिटाने के लिए कोशिश तो बहुत हुई। पर सारी कोशिशें एकतरफा रहीं। 1968 में पराणु अप्रसार संधि यानी न्यूक्लियर नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रिटी (NPT)सामने आया। अब तक इस पर 191 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। भारत और इजरायल के अपने तर्क हैं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत का न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन सामने रखते हुए नो फर्स्ट यूज की पॉलिसी घोषित की थी। इसके तहत भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा। लेकिन अगर किसी ने हमला किया तो माकूल जवाब दिया जाएगा।
भारत ने अगर एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो इसके पीछे पर्याप्त कारण रहे हैं। एनपीटी पर दस्तखत कर देते तो हम परमाणु बम बना ही नहीं पाते। जब पाकिस्तान और चीन जैसा देश हमारा पड़ोसी हो वैसी स्थिति में एनपीटी हमारे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। वैसे भी एनपीटी के तहत जिन देशों ने बम बना लिया वो तो उसे रख सकते हैं लेकिन दूसरा देश बना नहीं सकता। इस नाइंसाफी को हमने कभी बर्दाश्त नहीं किया।
भारत ने अपने दम पर बिना एनपीटी पर दस्तखत किए अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील की और अब न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भी शामिल होने को तैयार है। हमारा स्पष्ट मत रहा है कि हम फिसाइल मटीरियल का इस्तेमाल परमाउ ऊर्जा के लिए करेंगे न कि बम बनाने के लिए। हमारे पास अपनी सुरक्षा के लायक बम तैयार हैं। इस बीच 2021 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने न्यूक्लियर बैन ट्रिटी बनाया। भारत ने इस पर भी दस्तखत करने से इनकार कर दिया है। इसका लक्ष्य है कि परमाणु हथियार रखने वाले सारे देश अपने जखीरे को खत्म कर दें। इस पर सिर्फ 12 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं जिनमें कोई भी परमाणु शक्ति संपन्न देश शामिल नहीं है। नेक मकसद से तैयार की गई ये संधि तब तक सफल नहीं हो पाएगी जब तक कि परमाणु हथियार रखने वाले सभी नौ देश इसे स्वीकर नहीं कर लेते। और ऐसी संभावना दिखाई दे नहीं रही। ऐसे में बस शुक्र मनाएं कि डूम्स डे क्लॉक मिडनाइट से 100 सेकंड दूर ही बना रहे।