एक समय ऐसा भी था जब महात्मा गांधी ने फ़िलीस्तीन का विरोध किया था! हमास आतंकियों के बर्बर हमले के बाद इजरायल के पलटवार से गाजा थर्रा उठा है। आतंकी हमले में इजरायल के एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है। रेप, मर्डर, मासूम बच्चों को उनके माता-पिता के सामने हलाल करने, जर्मन महिला के अर्धनग्न शव का परेड निकालने और मृत शरीर का अपमान करने जैसे आतंकी कृत्य कुख्यात आईएसआईएस की बर्बरता की याद दिला रहे हैं। जवाब में इजरायल ने हमास आतंकियों को खत्म करने की कसम खाई है। इजरायल ने गाजा की घेराबंदी करके वहां बिजली, पानी और जरूरी सामानों की सप्लाई काट दी है, जिससे फिलिस्तीन में बड़ा मानवीय संकट पैदा हो चुका है। अपने धर्म की वजह से जितनी यातना यहूदियों ने सही है, उससे ज्यादा यातना शायद ही किसी समुदाय ने सही होगी। यही वजह है कि महात्मा गांधी को यहूदियों से सहानुभूति थी लेकिन वह फिलिस्तीन में उनके लिए अलग देश बनाए जाने यानी इजरायल की स्थापना के विरोध में थे। इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को लेकर क्या थे बापू के विचार आइए जानते हैं। यहूदियों पर हुए अत्याचार की वजह से महात्मा गांधी को उनके साथ पूरी हमदर्दी थी। लेकिन वह फिलिस्तीन को बांटकर यहूदियों के लिए अलग देश बनाए जाने के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि ब्रिटेन और अमेरिका फिलिस्तीन पर यहूदियों को थोपना चाहते हैं। गांधी ने 26 नवंबर 1938 को ‘हरिजन’ पत्रिका में The Jews यानी ‘यहूदी’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में लिखा था, ‘फिलिस्तीन उसी तरह से अरबों का है जैसे इंग्लैंड अंग्रेजों का है या फ्रांस फ्रांसीसियों का है।’ हरिजन में लिखे गांधी के इस लेख की उस दौर में कई बुद्धिजीवियों नेआलोचना की थी।
गांधी ने अपने लेख में लिखा था, ‘यहूदियों के साथ मेरी सहानुभूति है…वे ईसाइयों के लिए अस्पृश्य हैं। ईसाई उनके साथ जैसा व्यवहार करते हैं वह हिंदुओं के अस्पृश्यों के साथ व्यवहार के काफी करीब है। दोनों ही मामलों में अमानवीय व्यवाहर को जायज ठहराने के लिए धर्म की आड़ ली जाती है।’
अहिंसा के पुजारी गांधी ने अपने लेख में यहूदियों पर अत्याचार के मद्देनजर जर्मनी पर हमले तक की वकालत की लेकिन वह फिलिस्तीन में किसी यहूदी देश की स्थापना के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने लिखा, ‘अगर कभी मानवता के नाम पर कोई वाजिब युद्ध होता है, एक पूरी नस्ल पर अत्याचार को रोकने के लिए जर्मनी के खिलाफ अगर युद्ध होता है तो ये पूरी तरह सही होगा। लेकिन मैं युद्ध में यकीन नहीं करता! यहूदियों से हमदर्दी के बावजूद गांधी उनके लिए फिलिस्तीन में अलग देश बनाए जाने के विचार के खिलाफ थे। उन्हें ये मानवता के खिलाफ अपराध की तरह लगता था। उसी लेख में उन्होंने लिखा कि यहूदियों को अरबों पर थोपना गलत और अमानवीय है। गांधी ने लिखा कि अरबों को फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए आंशिक तौर पर या पूरी तरह अपना देश बनाने देने के लिए मजबूर करना मानवता के खिलाफ अपराध होगा।
गांधी के इस लेख पर बॉम्बे जियोनिस्ट असोसिएशन के प्रमुख ए.ई. शोहेट ने काफी तीखी प्रतिक्रिया दी थी। वह बॉम्बे अब मुंबई में रहने वाले बगदादी समुदाय के भारतीय यहूदी थे और फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए अलग देश बनाए जाने के प्रबल समर्थक। उन्होंने गांधी के हरिजन में छपे लेख के जवाब में ‘The Jewish Advocate’ में लिखा कि यूरोप में रह रहे यहूदियों को भारत के हरिजनों में एक बड़ा बुनियादी फर्क है। यहूदियों के पास अपना घर (देश) नहीं है, जबकि हरिजनों के साथ ऐसा नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि यहूदी तो 2 हजार वर्षों से अहिंसा का पालन कर रहे हैं लेकिन उन पर अत्याचार थम नहीं रहे।
1 सितंबर 1939 को गांधी ने बॉम्बे जियोनिस्ट असोसिएशन के प्रमुख ए. ई. शोहेट को यहूदी नववर्ष पर शुभकामना देते हुए खत लिखा था। उस खत को इजरायल की नैशनल लाइब्रेरी ने 2017 में पहली बार सार्वजनिक किया था। छोटे से खत में गांधी ने शुभकामनाएं दी थी सताए गए यहूदियों के लिए ये नव वर्ष ‘शांति का युग’ साबित हो।
2017 में खत को सार्वजनिक करते हुए जारी प्रेस रिलीज में नैशनल लाइब्रेरी ऑफ इजरायल के कॉम्यूनिकेशन इंचार्ज जैक रोथबार्ट ने गांधी के एक कथित बयान को कोट किया था। प्रेस रिलीज में रोथबार्ट ने गांधी को कोट करते हुए लिखा कि यहूदियों को ‘अरबियों के सामने सत्याग्रह करना चाहिए और उंगली तक उठाए बगैर उनके सामने खुद को गोली मारे जाने या मृत सागर में फेंके जाने के लिए पेश करना चाहिए।’