Friday, September 20, 2024
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क्या पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति को कर दिया नाराज? जानिए!

हाल के दिनों में रूस के राष्ट्रपति के साथ पीएम मोदी की हॉट टॉक हुई थी! कई बार सीधी-सादी बातें भी कितनी टेढ़े परिणाम पैदा कर देती हैं, इसका भान तो आपको कभी ना कभी हुआ ही होगा। नहीं हुआ तो शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दी सलाह के बाद पैदा हुए हालात पर गौर कर लीजिए। भारतीय प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति के सामने सिर्फ यह कहा कि अभी का युग युद्ध का नहीं है, इसलिए यूक्रेन-रूस के बीच विवादों को शांति से सुलझा लेना चाहिए ताकि दो देशों की अनबन का खामियाजा पूरी दुनिया को नहीं भुगतना पड़े, जैसा कि अभी हो रहा है। यह वैश्विक हितों के मद्देनजर साफ दिल से दिया गया बिल्कुल सीधा-सादा सुझाव था। लेकिन असल में यह कितना टेढ़ा साबित हुआ है, यह कोई रूसी राष्ट्रपति पुतिन और उनके प्रशासन से पूछे।

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के बयान को सबसे पहले हवा दी पश्चिमी देशों के बड़े-बड़े मीडिया घरानों ने। खासकर अमेरिकी मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की खूब वाहवाही की। लेकिन उनका मकसद भारतीय प्रधानमंत्री की सराहना नहीं बल्कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यह बताना था कि अब यूक्रेन मुद्दे पर भारत ने भी रूस से हाथ खींच लिया है। दरअसल, पश्चिमी देशों का मीडिया वहां की सरकारों से भी ज्यादा उतावलापन दिखा रहा था कि आखिर भारत यूक्रेन युद्ध के लिए रूस से रिश्ता क्यों नहीं तोड़ रहा? अमेरिका, यूरोप के मीडिया संस्थानों के संवाददाता भारतीय नेताओं से लगातार सवाल कर रहे थे कि आखिर रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का समर्थन भारत क्यों नहीं कर रहा है? तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री और अब वहां की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने अपने दिल्ली दौरे पर भी रूस से तेल खरीदने का मुद्दा उठाया था। तब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जिस सफाई से उनका मुंह बंद किया, उसकी सराहना हर जगह हुई।

जयशंकर से जब किसी ने सवाल पूछा या उन्हें मौका मिला, उन्होंने आंकड़े देकर बताए कि कैसे यूरोपीय देशों ने युक्रेन युद्ध के बाद रूस से अपना तेल आयात बढ़ा दिया। भारतीय विदेश मंत्री ने तब पश्चिमी देशों को यह कहकर लताड़ लगाई थी कि उसके हित पूरी दुनिया के हित और उसकी चिंताएं पूरी दुनिया की समस्या नहीं हो सकतीं। पश्चिमी देश अगर यह ख्वाब देखते हैं कि उनके नफा-नुकसान का ध्यान रखकर फैसले केरगी तो इस भ्रम से निकल जाना चाहिए। जयशंकर के अप्रत्याशित जवाबों ने भले ही पश्चिमी देशों की सरकारों और उनके मीडिया का मुंह चुप करा दिया था, लेकिन उनके अंदर कसक तो बनी रह गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब एससीओ मीटिंग में पुतिन को शांति का पाठ पढ़ाया तब पश्चिमी देशों को अपनी वो कसक निकालने का मौका मिल गया। क्या सरकार के शीर्ष नेतृत्व और क्या मीडिया संस्थान, सबने पीएम मोदी के बयान को ट्विस्ट दे दिया।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जैक सुलिवन ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो कहा वह ‘सिद्धांतों पर आधारित था जिन्हें वह सही और न्यायोचित मानते हैं। अमेरिका उसका स्वागत करता है।’ पीएम मोदी की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर अमेरिकी एनएसए ने वॉइट हाउस में संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा वह उस ‘सिद्धांत पर आधारित एक बयान है जिसे वह (मोदी) सही व उचित मानते हैं तथा अमेरिका इसका स्वागत करता है।’ सुलिवन ने कहा कि भारतीय नेता की यह टिप्पणी सराहनीय है, जिससे रूस को यह संदेश दिया गया है कि अब युद्ध समाप्त होने का समय आ गया है।

वहीं, जो बाइडेन प्रशासन में हिंद-प्रशांत सुरक्षा मामलों के सहायक मंत्री डॉ. एले रैटनर ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री के पिछले सप्ताहांत में दिए गए बयानों का स्वागत करते हैं।’ रैटनर ने कहा कि अमेरिका संघर्ष के त्वरित तथा शांतिपूर्ण समाधान की भारत की प्रतिबद्धता को साझा करता है। उन्होंने कहा, ‘हम यकीनन इस बात को समझते हैं कि रूस के साथ सुरक्षा साझेदारी को लेकर भारत का लंबा तथा जटिल इतिहास रहा है और वह (भारत) हथियार तथा आयात में विविधता लाने के साथ ही स्वदेशी पर भी कई वर्षों से जोर दे रहा है। हम उन्हें सहयोग देना चाहते हैं।’ पेंटागन के शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘हम दोनों मोर्चों पर भारत को सहयोग देना चाहते हैं और हम ऐसा कर भी रहे है। हम सह-विकास तथा सह-निर्माण में संभावनाएं तलाशने के लिए गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं। हम भारत के स्वदेशीकरण को सहयोग देने के तरीके तलाश रहे हैं और जानते हैं कि यह प्रधानमंत्री मोदी तथा वहां की सेना की प्राथमिकता है।’

उधर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के एक सत्र में पीएम मोदी की पुतिन को दी गई सलाह का जिक्र कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति से कहा था कि यह युद्ध का वक्त नहीं है और उनकी यह बात एकदम सही बात थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र में दुनियाभर के नेताओं ने हिस्सा लिया। मैक्रों ने अपने संबोधन में कहा, ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है। यह पश्चिम से बदला लेने और उसे पूर्व के खिलाफ खड़ा करने का समय नहीं है। यह वक्त है कि हम सभी संप्रभु राष्ट्र हमारे समक्ष मौजूद चुनौतियों का एकजुट होकर मुकाबला करें।’ उन्होंने कहा, ‘इसीलिए उत्तर और दक्षिण के बीच नए समझौतों की सख्त जरूरत है। एक ऐसा समझौता, जो खाद्यान्न, शिक्षा और जैव विविधता के क्षेत्र में हो। यह सोच को सीमित करने का नहीं, बल्कि साझा हितों के लिए खास कार्रवाई करने के लिए गठबंधन बनाने का है।’

भारत में रूस के राजदूत डेनिस आलिपोव (Denis Alipov) भी इससे जुड़े सवाल पर असहज हो गए। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश अपने फायदे के हिसाब से एजेंडा गढ़ते रहते हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों के नेता यूक्रेन पर अपनी सुविधा से उन बातों को हवा दे देते हैं जो उनको सूट करता है। भारत में रूसी राजदूत ने कहा, ‘जिन पश्चिमी (देशों के) नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन पर (भारतीय) प्रधानमंत्री के बयान को दुहराया है, वो मेरी नजर में दरअसल बातचीत का वह हिस्सा बता रहे हैं जो उनके एजेंडे के मुताबिक है। उन्हें जो बातें पसंद नहीं हैं, उनसे वो मुंह मोड़ रहे हैं।’ रूसी राजदूत ने कहा कि भारत हमेशा से ही यूक्रेन युद्ध पर अपनी गहरी चिंता जाहिर करता रहा है। रूस भी इसका शांतिपूर्ण समाधान चाहता है।

शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के इतर उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में पुतिन के साथ अपनी मुलाकात के दौरान मोदी ने रूसी राष्ट्रपति से कहा था, ‘आज का दौर युद्ध का दौर नहीं है और मैं फोन पर आपसे इस पर बात कर चुका हूं।’ इस पर पुतिन ने मोदी से कहा था कि वह यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत की चिंताओं से अवगत हैं और रूस इसे जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।

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