Friday, May 9, 2025
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क्या नए संसद भवन की देश को जरूरत थी?

आज हम आपको बताएंगे कि नए संसद भवन कि देश को जरूरत थी या नहीं! नए संसद भवन की तस्‍वीरें देख दुनिया की आंखें फटी की फटी रह गई हैं। यह भव्‍यता और दिव्‍यता से भरपूर है। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे। हालांकि, विपक्ष के कुछ नेताओं ने इसकी जरूरत पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी उनमें शामिल हैं। उन्‍होंने कहा है कि नए संसद भवन की जरूरत थी ही नहीं। अगर जरूरत थी भी तो पुराने भवन को ही विकसित कर देना चाहिए था। उन्‍होंने मोदी सरकार पर इतिहास बदलने का भी आरोप लगाया। सच तो यह है कि पूरे सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्‍ट पर सवाल उठाए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर याचिका तक दाखिल हो चुकी हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने प्रोजेक्‍ट पर रोक लगाने से मना कर दिया था। सवाल उठता है कि क्‍या वाकई नए संसद भवन की जरूरत नहीं थी? क्‍या सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्‍ट पर खर्च की गई रकम टैक्‍सपेयर के पैसों की बर्बादी है? आइए, इस बात को समझते हैं। नए संसद भवन का निर्माण सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्‍ट का हिस्‍सा है। इसके तहत सभी सरकारी मंत्रालयों के लिए 10 प्रशासनिक बिल्डिंग के कंस्‍ट्रक्‍शन का काम भी शामिल है। इसी प्रोजेक्‍ट में नॉर्थ और साउथ ब्‍लॉक को म्‍यूजियम में बदला जाना भी है। यह प्रोजेक्‍ट राजपथ से इंडिया गेट को जोड़ता है।

नीतीश कुमार ने जो बात कही है वह नई नहीं है। पहले भी नई संसद के साथ पूरे सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्‍ट की जरूरत पर सवाल उठ चुके हैं। इसके निर्माण के खिलाफ मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक जा चुका है। यह और आत है कि उसने प्रोजेक्‍ट पर रोक लगाने से मना कर दिया था। तब सरकार ने कोर्ट में दलील दी थी कि इस प्रोजेक्‍ट को पैसे की बर्बादी नहीं, बल्कि बचत के मकसद से तैयार किया जा रहा है। सरकार को इससे हर साल किराये पर खर्च होने वाले 1,000 करोड़ रुपये की बचत होगी।

सरकार ने 2017 में एक अहम आदेश दिया था। उसने सालों पुरानी परंपरा तोड़ी थी। इसके तहत सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को अपने ऑफिस स्‍पेस का किराया देने का आदेश दिया गया था। बिजली और पानी बिल भी इन्‍हें ही देना था। पहले ये सभी खर्च सेंट्रल पब्लिक वर्क्‍स डिपार्टमेंट (CPWD) उठाता था। इस पर इन बिल्डिंगों के रखरखाव की जिम्‍मेदारी थी। इसका मकसद मंत्रालयों और विभागों की जिम्‍मेदारी तय करना था। सरकार चाहती थी कि किसी भी हाल में वेस्‍टेज को रोका जाए।

विदेश मंत्रालय के दफ्तर हर महीने करीब 90 लाख रुपये का किराया देते हैं। इन दफ्तरों में पासपोर्ट सेवा केंद्र चलते हैं। दिल्‍ली के कनॉट प्‍लेस में पर्यावरण मंत्रालय के दफ्तर भी ऐसा ही रेंट देते हैं। दूसरी अहम बाद यह है कि मंत्रालयों के ऑफिस अलग-अलग जगहों पर हैं। इस वजह से कोऑर्डिनेशन में दिक्कत पेश आती है। नए प्रोजेक्ट के कम्‍प्‍लीशन के बाद सभी ऑफिस एक ही जगह पर हो जाएंगे।

खुद कांग्रेस सरकार नया संसद चाहती थी। इसके बारे में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी डीपीएपी के प्रमुख गुलाम नबी आजाद बोल भी चुके हैं। इन दफ्तरों में पासपोर्ट सेवा केंद्र चलते हैं। दिल्‍ली के कनॉट प्‍लेस में पर्यावरण मंत्रालय के दफ्तर भी ऐसा ही रेंट देते हैं। दूसरी अहम बाद यह है कि मंत्रालयों के ऑफिस अलग-अलग जगहों पर हैं। इस वजह से कोऑर्डिनेशन में दिक्कत पेश आती है। नए प्रोजेक्ट के कम्‍प्‍लीशन के बाद सभी ऑफिस एक ही जगह पर हो जाएंगे।हाल में उन्‍होंने बताया कि नए संसद भवन के निर्माण का विचार सबसे पहले पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार के समय में रखा गया था। लेकिन, बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उन्‍होंने यह भी कहा कि इसका सभी को स्‍वागत करना चाहिए।

भारत में पहली बार संसदीय चुनाव 1951 में हुए थे। तब लोकसभा की 489 सीटें थीं। आज लोकसभा में 543 सदस्य हैं। राज्यसभा सदस्यों की संख्या 245 है। 2026 में परिसीमन होना है। इसके बाद सदस्यों की संख्या और बढ़ जाएगी। नया परिसीमन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस वक्त एक सांसद करीब 25 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। संविधान के आर्टिकल 81 में कहा गया है कि सदन में 550 से ज्‍यादा निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे। इनमें से 530 राज्यों से और 20 केंद्र शासित प्रदेशों से होंगे।

2021 में प्रस्तावित जनगणना के साथ लोकसभा और राज्‍यसभा में सदस्‍यों की संख्या में बदलाव होगा। 84वें संविधान संशोधन, 2001 में कहा गया है कि 2026 तक यथास्थिति बरकरार रहेगी। 2026 में परिसीमन के बाद बढ़ने वाले संसद सदस्यों का भार उठाने में पुरानी संसद भवन सक्षम नहीं थी। यह बिल्डिंग 100 साल पुरानी थी। उसमें सबको फिट किए जाने को लेकर सवाल था।

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