हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल ने सेंथिल बालाजी को दोबारा से कैबिनेट में एंट्री दे दी है! तमिलनाडु में राज्यपाल आरएन रवि ने जेल में बंद मंत्री सेंथिल बालाजी को गुरुवार को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल के इस फैसले पर सीएम स्टॉलिन ने विरोध जताया। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यपाल के पास किसी मंत्री को कैबिनेट से बर्खास्त करने का कोई अधिकार नहीं है। इस मामले में विपक्षी दलों की तरफ से भी राज्यपाल पर ‘केंद्र के एजेंट’ के रूप में काम करने का आरोप लगाया गया। विवाद बढ़ने के बाद राज्यपाल ने मंत्री की बर्खास्तगी का अपना फैसला अगले आदेश तक स्थगित कर दिया है। वे इस मामले में अभी अटॉर्नी जनरल से सलाह लेंगे। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बार फिर से राज्यपाल की शक्तियों और संवैधानिक अधिकार को लेकर बहस शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस तरह के मामलों में राज्यपाल के अधिकारों को लेकर साफ कह चुका है। शमशेर सिंह बनाम पंजाब सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जज की बेंच ने फैसला सुनाया था। बेंच ने कहा था कि राज्यपाल मंत्रि परिषद् की सलाह पर ही काम कर सकता है। राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ राज्य के भीतर एक अलग समानांतर सरकार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इससे पहले संजीवी नायडू बनाम मद्रास सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख है और सरकार का संचालन मंत्रिपरिषद की तरफ से किया जाता है। राज्यपाल मंत्रिरिषद् की सलाह के आधार पर ही कोई फैसला ले सकते हैं। संविधान के अनुसार राज्यपाल खुद से कोई फैसला नहीं कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 163 राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के खिलाफ या उसकी सलाह के खिलाफ काम करने का विवेकाधीन अधिकार नहीं देता है!
लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसआर बोम्मई मामले 1994 से लेकर शिवराज सिंह चौहान 2020 में अपने फैसले से लेकर स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि राज्यपाल, सीएम की अध्यक्षता वाली परिषद की सहायता और सलाह के बिना राज्य से संबंधित प्रशासनिक मामलों पर कार्य नहीं कर सकते हैं। सीनियर एडवोकेट और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल के पास सीएम की सहायता और सलाह के बिना मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य को एकतरफा बर्खास्त करने की कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले तमिलनाडु में, राज्यपाल ने स्पष्ट रूप से अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह और वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता भी इस बात पर एकमत थे कि राज्यपाल की कार्रवाई ‘असंवैधानिक’ है। विकास सिंह ने कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से असंवैधानिक था। राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है। औचित्य की मांग है कि आरोपपत्रित व्यक्ति को इस्तीफा देना चाहिए, लेकिन कानून के तहत, यह अनिवार्य नहीं है कि किसी मंत्री को इस्तीफा देना पड़े। राज्यपाल उसे बर्खास्त नहीं कर सकते। राज्यपाल का निर्णय पूरी तरह से अवैध था।
सेंथिल बालाजी नौकरी के बदले में नकदी लेने और मनीलॉन्ड्रिंग समेत भ्रष्टाचार के कई मामलों में गंभीर आपराधिक कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। ईडी ने इस मामले में बालाजी को 14 जून को अरेस्ट किया था। छाती में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें चेन्नई के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में मद्रास हाई कोर्ट ने 15 जून को सेंथिल बालाजी को प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट करने की अनुमति दे दी। अस्पताल में उनकी बायपास सर्जरी हुई थी। राज्यपाल ने 31 मई को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर उनसे सेंथिल बाराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है। औचित्य की मांग है कि आरोपपत्रित व्यक्ति को इस्तीफा देना चाहिए, लेकिन कानून के तहत, यह अनिवार्य नहीं है कि किसी मंत्री को इस्तीफा देना पड़े।राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है। औचित्य की मांग है कि आरोपपत्रित व्यक्ति को इस्तीफा देना चाहिए, लेकिन कानून के तहत, यह अनिवार्य नहीं है कि किसी मंत्री को इस्तीफा देना पड़े। राज्यपाल उसे बर्खास्त नहीं कर सकते। राज्यपाल का निर्णय पूरी तरह से अवैध था। राज्यपाल उसे बर्खास्त नहीं कर सकते। राज्यपाल का निर्णय पूरी तरह से अवैध था।लाजी को मंत्रिमंडल से हटाने के लिए कहा था। अगले ही दिन स्टालिन ने उन्हें विस्तृत जवाब दिया था। बुधवार को कोर्ट ने मंत्री सेंथिल बालाजी की न्यायिक हिरासत 12 जुलाई तक बढ़ाने का आदेश दिया था।