बिहार की राजनीतिक स्थिति में जैसे परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं वह चिंता का विषय है! लालू यादव और नीतीश कुमार संघर्ष के दिनों के साथी रहे हैं। 12 फरवरी 1994 की पटना की कुर्मी चेतना रैली के बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं। सियासत में मंजिल हासिल करने के लिए लालू यादव से अलग नीतीश कुमार अपने रास्ते निकल पड़े। 11 साल बाद 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज हुए। मगर दो दशक बाद 11 अगस्त 2014 को वो मौका भी आया जब दो खांटी दोस्त एक-दूसरे को सार्वजनिक तौर पर गले लगाए। ऐसा लगा जैसे दो बिछड़े हुए दोस्तों का मिलन है। मौका था वैशाली जिले के हाजीपुर विधानसभा उपचुनाव का। जहां पर रैली का आयोजन किया गया था। इसके बाद तो नीतीश और लालू कई बार गले मिले। 2022 में एक बार फिर नीतीश कुमार आरजेडी के करीब हैं। इस बार गले लगाने के लिए उनके पास लालू यादव नहीं हैं, उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वो दिल्ली में हैं। मगर उनके सियासी वारिस तेजस्वी यादव जरूर होंगे।
सियासी दुश्मनी
व्यक्तिगत तौर पर नीतीश कुमार ने लालू यादव या उनके परिवार को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि उसका ख्याल ही रखा। तभी तो एक कॉल पर अपने लिए स्पेयर में रखे बंगले को तेजप्रताप यादव को सौंप दिया, वो भी पूरी तरह से रेनोवेशन कराने के बाद। उस वक्त तेजप्रताप पारिवारिक टेंशन से गुजर रहे थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नीतीश के दिल में लालू यादव और उनके परिवार के लिए कितनी जगह है। लालू यादव ने भी उन्हें निराश नहीं किया। नीतीश कुमार ने जब चाहा अपने पुराने दोस्त (लालू यादव) को खुद के करीब पाया। 1994 के बाद 2014 और अब 2022 इसकी गवाह बनने को तैयार है। 1994 से पहले 1991 में नीतीश और लालू एक साथ मंच पर दिखे थे। इसके बाद नीतीश और लालू में मनमुटाव बढ़ता चला गया। चार साल बाद नीतीश कुमार और लालू यादव की सियासी राहें अलग हो गईं। 20 साल बाद एक बार फिर दोनों दोस्त गले मिले। मगर ये दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली। नीतीश फिर से बीजेपी के पाले में चले गए। पांच साल बाद एक बार फिर लालू परिवार के लिए नीतीश कुमार संजीवनी बनने को तैयार हैं। राबड़ी आवास में खुशी का माहौल है। इसकी गूंज दिल्ली तक जरूर पहुंचेगी।
12 फरवरी 1994 के बाद 11 अगस्त 2014 एक ऐतिहासिक दिन था। जब दो दशक बाद दो दोस्त (लालू-नीतीश) एक-दूसरे को गले लगा रहे थे। सामने मैदान में गवाह बनी जनता नारेबाजी कर रही थी। दोस्ती की मिसाल दे रही थी। वैशाली जिले के हाजीपुर विधानसभा उपचुनाव में लालू-नीतीश प्रचार करने पहुंचे थे। भीड़ काफी उत्साहित थी। बीजेपी को पटखनी देने वाले जोशीले भाषण दिए जा रहे थे। राज्य के दो बड़े सियासी सूरमा को एक मंच पर देखने के लिए काफी संख्या में लोग जुटे थे। तब बिहार में 10 सीटों पर उपचुनाव का मौका था, उसी में से एक हाजीपुर विधानसभा सीट भी थी। 1994 में दोनों नेताओं के रास्ते अलग हो गए, लेकिन बिहार में लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद साथ हो गए। लालू प्रसाद ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती से उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए एकजुट होने की अपील की, तब यूपी में बीजेपी ने 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर जीत दर्ज की थी। 2014 लालू यादव फिट एंड फाइन थे। ऐक्टिव पॉलिटिक्स में रेगुलर पार्टिसिपेट करते थे। मगर आठ साल बाद आरजेडी सुप्रीमो की तबीयत नासाज है। पटना से दूर वो दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। पहले वाली बात नहीं है। फिर दोस्त (लालू यादव) की तबीयत खराब हुई तो नीतीश कुमार बिना देर किए अस्पताल पहुंच गए। तमाम तरह के इंतजाम कर अपने दोस्त (लालू यादव) को बेहतर इलाज करने के लिए दिल्ली भिजवाया। फिलहाल लालू यादव पहले से काफी बेहतर हैं। नीतीश कुमार और अच्छा महसूस करने के लिए पटना में तमाम उपाय कर चुके हैं। हाजीपुर के मंच से लालू यादव ने कहा था कि भाजपा के खिलाफ समान विचारधारा वाले लोगों का मजबूत गठबंधन सुनिश्चित करने के लिए यह एक नई शुरुआत है। नरेंद्र मोदी से देश को बचाने की दुहाई दी गई। 17 साल के गठबंधन को समाप्त नीतीश कुमार लालू यादव के साथ थे। मगर ये ज्यादा दिनों तक नहीं चला। 2017 में नीतीश और लालू की राहें अलग हो गई। पांच साल बाद अब एक बार फिर से नीतीश और लालू यादव एक हो रहे।