मुलायम सिंह के बारे में एक बात कही जाती है कि वह किसी के भी साथ अन्याय नहीं होने देते थे! उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद तमाम नेता, अफसर, समाजसेवी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और अपनी-अपनी यादों में दर्ज किस्से शेयर कर रहे हैं। इन्हीं में रिटायर्ड आईपीएस और यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह भी हैं। सुलखान सिंह ने मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए फेसबुक पर पोस्ट शेयर की है। उन्होंने बताया है कि कैसे आजम खान की नाराजगी के चलते उनका ट्रांसफर कर दिया गया लेकिन मुलायम सिंह से सिर्फ एक मुलाकात ने उनका ट्रांसफर ऑर्डर बदल दिया गया। सुलखान सिंह बताते हैं कि खुद तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह ने उनसे खुलासा किया कि क्यों उनकी लखनऊ में आईजी जोन के पद पर तैनाती की गई। जबकि अफवाह ये उड़ रही थी कि राजा भैया ने ये पोस्टिंग कराई थी। वह याद करते हैं कैसे राजधानी लखनऊ शिया-सुन्नी दंगे के मुहाने पर खड़ी थी और अचानक मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अकेले दम पर ही हालात काबू में कर लिए।
यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने लिखा है कि आज, ‘नेता जी’ के नाम से विख्यात, मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश नहीं रहे। इस अवसर पर मुझे उनके साथ अपने कुछ अनुभव याद आ रहे हैं। सर्वप्रथम मैंने उन्हें वर्ष 1982-83 में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लखनऊ के छतरमंजिल स्थित कार्यालय के पास एक-डेढ़ दर्जन लोगों के साथ कुछ भाषण करते सुना था। मैं उस समय एस.एस.पी. कार्यालय में अन्डर ट्रेनिंग था। सिपाहियों ने बताया कि मुलायम सिंह जी बोल रहे हैं। जब तक मैं बाहर आया, वे जा चुके थे।
सुलखान सिंह लिखते हैं कि नेता जी से मेरी दूसरी मुलाकात वर्ष 1990 में हुई जब वे मुख्यमंत्री थे। हुआ यह कि उनकी सरकार बनने पर मुझे एस.पी. रेलवे मुरादाबाद से एस.पी. रामपुर तैनात किया गया। छह महीने बाद रामपुर से तत्कालीन मंत्री आजम खान कुछ मामलों को लेकर रुष्ठ हो गये और उनकी शिकायत पर मेरा तबादला रामपुर से एस.पी. पौड़ी गढ़वाल कर दिया गया। मुझे लगा कि 10 साल की वरिष्ठता में मुझे बड़ा जिला मिलना चाहिए और मैंने मुख्यमंत्री जी से मिलने का फैसला किया। मुख्यमंत्री आवास पर बताया गया कि मुख्यमंत्री जी 10 बजे तक आयेंगे। मुलायम सिंह जी जब आये तो सीधे पुराने सचिवालय के अपने कार्यालय चले गये। मै भी सचिवालय पहुंच गया। अंदर इंटरकॉम से बताया गया। थोड़ी देर बाद रेवती रमन सिंह आये और सीधे अंदर चले गए।
फिर मेरे दुबारा कहने पर पी.एस. ने फिर इंटरकॉम से बताया कि सर पूर्व एस.पी. रामपुर बैठे हैं। इस पर तुरंत मुलायम सिंह जी ने मुझे बुला लिया और बाहर के कक्ष में आकर मुझसे मिले। मैंने कहा कि सर मैं बहुत सीनियर हूं। मुझे पौड़ी जैसे छोटे जिले की बजाय पी.ए.सी. में कर दें। उन्होंने कहा, “तुम्हारी शोहरत अच्छी है। अभी चले जाओ। जल्दी ही अच्छी जगह कर देंगें।” मैंने आग्रह किया तो बोले ठीक है। अगले दिन खुद उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सुलखान सिंह को पी.ए.सी. में करना है और मैं 44 वीं वाहिनी मेरठ पहुंच गया।
सुलखान सिंह बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव की निर्णयात्मक दृढ़ता अद्वितीय थी। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में ए.डी.जी. के पद सृजित किए जबकि आई.पी.एस. रूल्स में ऐसा कोई पद नहीं था। उस समय बड़े और छोटे राज्यों के डी.जी.पी. के लिए दो अलग-अलग पे-स्केल थे। मुलायम सिंह ने छोटे राज्यों के डी.जी.पी. वाली पे स्केल पर एडीशनल डी.जी. के पद सृजित कर दिये। आई.ए.एस. अधिकारियों ने केन्द्र सरकार से विरोध करवाया, महालेखाकार से आपत्ति करवाई लेकिन जो डिग जाये वो मुलायम सिंह नहीं। बाद में केन्द्र ने भी ए.डी.जी. नाम से पद सृजित किये।
एक और महत्वपूर्ण मामले का जिक्र करना जरूरी है। घटना कुछ यूं हुई कि पुराने लखनऊ में शिया-सुन्नी झगड़ा हुआ। कुछ घायल अस्पताल गये जहां 3 मृत घोषित किए गए और तीनों सुन्नी थे। अब क्या था। पुलिस और प्रशासन को लगा कि अब शिया-सुन्नी दंगा अवश्यंभावी है। मुलायम सिंह जी दिल्ली में थे वहीं तत्काल खबर दी गई। लखनऊ का रिकॉर्ड है कि दोनों समुदाय मृतकों की गिनती बराबर करते हैं। हमारी ओर से पूरी तैयारियां की गईं। रात में जब मुख्यमंत्री जी लौटे तो एयरपोर्ट से सीधे पहले टीले वाली मस्जिद गये और फिर कुछ अन्य लोगों के घर गये। मैं साथ में नहीं था। उन्होंने सुन्नी साहबान को जो भी समझाया हो, परिणाम यह हुआ कि अगले दिन तनाव काफी कम हो गया और बाद में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, पूरी शान्ति बनी रही। एक साल पूरा होते होते, अंबेडकर नगर के एक मामले में वहां के कद्दावर मंत्री और पूर्व पुलिस अधिकारी ने कुर्की रोकने का दबाव बनाया लेकिन मैंने साफ इंकार कर दिया और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से शिकायत करके मेरा तबादला करा दिया।
सुलखान सिंह कहते हैं कि मैं जब डी.जी.पी. था, तब भी अक्सर अपनी पार्टी और क्षेत्र के लोगों के लिए फोन करते थे। उनकी जो बात मुझे अद्वितीय लगी, वह थी उनका लोगों से मिलना। वे नेताओं, अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और सामान्य नागरिकों सभी से हमेशा तुरंत मिलते थे। सबसे अलग-अलग अकेले मिलते थे और पूरी बात सुनते थे। इन सब बातों से सभी को यह आभास बना रहता था कि मुलायम सिंह जी तक बात पहुंचा दी गई तो ज्यादा अन्याय नहीं हो पायेगा। उनका यही व्यवहार, सभी वर्ग के वोटरों पर उनकी पकड़ बनाए रखता था।