विश्लेषकों के अनुसार इस्लामी चरमपंथी दुनिया को बर्बाद करना चाहते हैं! 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के बर्बर आतंकी हमलों ने 2008 के मुंबई हमलों का जख्म हरा कर दिया। ये दोनों आतंकवादी हमले उन लोकतांत्रिक देशों पर हुए, जो देश के अंदर और बाहर कट्टरपंथी इस्लाम से निपट रहे हैं। चरमपंथी इस्लामी गुट इन दोनों ही देशों को खत्म करना चाहते हैं। ये हमले दोनों देशों की सुरक्षा को लेकर बनी-बनाई धारणाओं पर भी गंभीर सवालिया निशान हैं। दोनों हमलों में आतंकियों ने सुरक्षा एजेंसियों को हैरत में डाल दिया। मुख्य रूप से उनकी बर्बरता और उनके हमलों की बड़े पैमाने पर सफलता ने इस्लामी आतंकवाद के खतरों पर दुनिया को ज्यादा चिंतित कर दिया। कल ही मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों की 15वीं वर्षगांठ थी। इन हमलों को लश्कर-ए-तैय्यबा LeT के 10 आतंकियों ने अंजाम दिया था, जो पाकिस्तान स्थित एक इस्लामी जिहादी संगठन है। ढाई दिनों से ज्यादा वक्त तक चले आतंकी तांड़व में लगभग 170 लोगों की दुखद मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। बेहद प्रशिक्षित और भारी हथियारों से लैस हमलावरों को पाकिस्तानियों से समर्थन मिला। भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से जारी तनाव और कट्टरपंथी विचारधारा ने पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को इस बर्बर हमले के लिए उकसाया।
सरप्राइजिंग एलिमेंट, लक्ष्यों का चयन और ऐक्शन के पैटर्न से भारतीय सुरक्षा बल उहापोह में फंस गए और स्थिति को नियंत्रित करने में उन्हें 60 घंटे से अधिक का समय लग गया। हमलों का उद्देश्य न केवल भारत में मौजूदा तनावों को बढ़ाना था बल्कि देश के आर्थिक केंद्र मुंबई को निशाना बनाते हुए भीषण आर्थिक क्षति पहुंचाना था। हमलावर जताना चाहते थे कि भारत अपने नागरिकों और पर्यटकों की रक्षा करने में पर्याप्त सक्षम नहीं है।
सोच-समझकर किए गए बड़े पैमाने के हमलों ने भारत की सुरक्षा में कमजोरियों को उजागर किया। उसके बाद महत्वपूर्ण सुधार हुए और खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ा। मुंबई हमलों ने विश्व स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया। भारत वैश्विक मंच पर आतंक को मुद्दे को प्राथमिकता से उठाने लगा। इन घटनाओं के बाद हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल होने लगा। हमारी तरह ही इस्लामी आतंकवाद का सामना कर रहा इजराइल, भारत का स्वाभाविक सहयोगी बन गया। दूसरे देशों के साथ भारत के संबंधों में व्यावहारिक राष्ट्रीय हितों से निर्देशित दृष्टिकोण आतंकवादी हमलों के जियोपॉलिटिकल इंपैक्ट के बावजूद बरकरार रहा। 2008 के मुंबई हमलों के बाद के वर्षों में भारत और इजराइल के बीच सहयोग फलता-फूलता रहा।
दोनों देश ऐसे अभिनव वातावरणों में बातचीत करते हैं जिनमें प्रशिक्षित और सुसज्जित सेनाओं के अस्तित्व की आवश्यकता होती है जो बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के खतरों का सामना करती हैं। भारत को सामान्य रूप से आतंकवाद और विशेष रूप से समुद्री आतंकवाद से निपटने के दौरान रचनात्मक होने के लिए बाध्य है। भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अन्य देशों के साथ सहयोग करता है ताकि इस क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता को और विकसित किया जा सके।
पश्चिम एशिया में वर्तमान घटनाओं के आलोक में इस क्षेत्र में विशाल ज्ञान वाले देश इजराइल के साथ मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है। पिछले महीनों में इजराइल के लिए भारत के समर्थन ने इस धारणा को और तेज कर दिया है कि इजराइल और भारत महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार हैं जो 2014 से शुरू हुई एक प्रक्रिया है। फिलिस्तीनियों के साथ संबंध एक जीरो सम गेम नहीं है, बल्कि संतुलनकारी नीति अपनाने की आवश्यकता को उजागर करता है। भारत ने मानवीय सहायता के मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और पश्चिम एशिया में अपनी स्थिति को एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में आकार दिया है। इसलिए, इजराइल और फिलिस्तीनियों के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करना आवश्यक है।
आखिर में, 7 अक्टूबर की घटनाओं की तरह ही भारत के इतिहास में 2008 के मुंबई अटैक एक दर्दनाक अध्याय बना हुआ है, जो कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद की क्रूरता की कड़वी याद दिलाते हैं। इन दुखद घटनाओं ने भारत और इजराइल दोनों में रक्षा-सुरक्षा के क्षेत्र में बड़े सुधारों को प्रेरित किया। इजराइल विशेष रूप से भारत के लचीलेपन और सुरक्षा तंत्र में लागू किए गए परिवर्तनों से सीख सकता है। साझा खतरे को पहचानते हुए दोनों देशों को आतंकवाद का मुकाबला करने और इस वैश्विक चुनौती को प्रभावी ढंग से निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए अपने सहयोगी प्रयासों को जारी रखना चाहिए।