क्या बीजेपी में आकर नेताओं के धुल जाते हैं पाप?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी में आकर नेताओं के पाप धुल जाते हैं या नहीं! देश में लोकसभा चुनाव को लेकर हलचल काफी तेज है। चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया हुआ है। दरअसल शराब घोटाले के आरोप में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि बीजेपी विपक्षी दलों के नेताओं को चुन-चुनकर टारगेट कर रही है। बीजेपी में शामिल होने के बाद नेताओं से भ्रष्टाचार के आरोप हटा लिए जा रहे हैं। इस बीच इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट में है कि 2014 के बाद से कथित भ्रष्टाचार के लिए विपक्ष के 25 नेता जो केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर रहे थे, बीजेपी में शामिल हुए और उनमें से 23 को राहत मिल गई। उनके खिलाफ जांच या तो बंद हो गई या ठंडे बस्ते में चली गई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है कि 2014 के बाद जिन प्रमुख राजनेताओं का जिक्र किया जा रहा है, वे विपक्षी दलों से बीजेपी में शामिल हो गए थे। इनमें से 10 कांग्रेस से हैं, एनसीपी और शिवसेना से चार-चार, टीएमसी से तीन, टीडीपी से दो और समाजवादी पार्टी और वाईएसआरसीपी से एक-एक नेता शामिल है। विपक्षी दलों के पार्टी बदलने के बाद जांच एजेंसी की कार्रवाई अमूमन निष्क्रिय रही है। इस सूची में शामिल 6 राजनेता आम चुनाव से कुछ हफ्ते पहले अकेले इसी साल बीजेपी में गए हैं। 2022 में द इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच से पता चला था कि 2014 के बाद जब एनडीए सत्ता में आया तो कैसे प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 95 प्रतिशत प्रमुख विपक्षी राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की। विपक्ष इसे ‘वॉशिंग मशीन’ के जरिए भ्रष्टाचार के आरोपों को धोने की कवायद बताता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 और 2023 की राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान केंद्रीय कार्रवाई का एक बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र पर केंद्रित था। 2022 में एकनाथ शिंदे गुट ने शिवसेना से अलग होकर बीजेपी के साथ नई सरकार बना ली। एक साल बाद अजित पवार गुट एनसीपी से अलग हो गया और सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में शामिल हो गया। अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल के मामले भी बंद हो गए हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र के 12 प्रमुख राजनेता 25 की सूची में हैं, जिनमें से 11 नेता 2022 या उसके बाद बीजेपी में चले गए, जिनमें एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के चार-चार शामिल हैं। इनमें से कुछ मामले गंभीर हैं।

शुभेंदु अधिकारी इस समय पश्चिम बंगाल में बीजेपी के कद्दावर नेता और नेता प्रतिपक्ष हैं। ममता सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु से सीबीआई ने शारदा घोटाला मामले में पूछताछ की थी। टीएमसी आरोप लगाती रही है कि जब अधिकारी टीएमसी में थे तो जांच एजेंसियां उन्हें परेशान करती थी लेकिन, बीजेपी में जाते ही उन्हें क्लीन चिट मिल गई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के खिलाफ मामले भी अटके हुए हैं। हिमंता को 2014 में सारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई की पूछताछ और छापेमारी का सामना करना पड़ा था, लेकिन 2015 में उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद से उनके खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ा है। चव्हाण इस साल बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि आदर्श हाउसिंग मामले में सीबीआई और ईडी की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी हुई है।

25 मामलों में से केवल दो में कार्रवाई नहीं रुकी। इनमें पूर्व कांग्रेस सांसद ज्योति मिर्धा और पूर्व टीडीपी सांसद वाईएस चौधरी का है। दोनों नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के बाद भी ईडी द्वारा ढील दिए जाने का कोई सबूत नहीं है। कम से कम अभी तक तो कोई सबूत नहीं मिला। सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग से इस बारे में कमेंट मांगने पर द इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि उनके सवालों का जवाब नहीं दिया। हालांकि, सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि एजेंसी की सभी जांच सबूतों पर आधारित हैं। जब भी सबूत मिलते हैं उचित कार्रवाई की जाती है। उन मामलों के बारे में पूछे जाने पर जहां आरोपी के पक्ष बदलने के बाद एजेंसी ने अपना रास्ता बदल लिया है, अधिकारी ने कहा, ‘कुछ मामलों में विभिन्न कारणों से कार्रवाई में देरी होती है। लेकिन वे खुले हैं।’ ईडी के एक अधिकारी ने कहा कि उसके मामले अन्य एजेंसियों की एफआईआर पर आधारित हैं। अगर अन्य एजेंसियां अपना मामला बंद कर देती हैं, तो ईडी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। फिर भी, हमने ऐसे कई मामलों में आरोपपत्र दायर किए हैं। जिन मामलों में जांच चल रही है, जरूरत पड़ने पर कार्रवाई की जाएगी।