क्या आप बिहार में हुई रेलवे भर्ती घोटाले की कहानी को जानते है?

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बिहार में हुए रेलवे भर्ती घोटाले के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे! राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह जनता दल(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सीएम नीतीश कुमार के सबसे करीबी और विश्वसनीय। नीतीश का राइट हैंड कह लीजिए। ललन सिंह ने जबसे बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सरकार बनी है तबसे एनडीए और बीजेपी के खिलाफ मुखर हैं। भर-भर के अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। कल यानि गुरुवार को तो ललन सिंह लालू यादव से मिल आए। मिलने के बाद साफ बता दिया कि 2024 में बीजेपी को उखाड़ फेकेंगे और 40 सीट का नुकसान भी होगा। अब जब लालू-ललन मेल मिलाप हो ही गया है तो आपको आज से 13-14 साल पहले लिए जाते हैं। नौकरी के बदले जमीन घोटाला याद ही होगा। क्या आपको पता है लालू यादव से मिलने के बाद भाजपा को उखाड़ फेंकने वाले ललन सिंह ‘नौकरी के बदले जमीन घोटाला’ मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुद्दे को बड़े लेवल पर लेकर गए थे। इसमें उन्होंने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से इस मामले में जांच की मांग की थी। तब लालू यादव रेल मंत्री थे। हम आपको इसी घोटाले से जुड़ी सारी डिटेल देंगे और यह भी बताएंगे कि अब राजद का साथ पसंद करने वाले नीतीश ने ही इस मामले में लालू यादव के खिलाफ ललन सिंह को आगे किया था।

जमीन घोटाला क्या है

लालू यादव के साथ दो घोटाले किसी जोंक की तरह चिपक गए हैं। चारा घोटाला और रेलवे भर्ती घोटोला। हम आज दूसरे वाले घोटाले की बात करेंगे यानि नौकरी के बदले जमीन घोटाले की। जानकारी के अनुसार, यह घोटाला 2004 से 2009 के बीच हुआ था। तब लालू यादव केंद्र में रेल मंत्री थे। उन्होंने जॉब लगवाने के बदले जमीन और प्लॉट लिए गए थे। आरोप यह भी है कि लालू यादव रेलवे ग्रुप डी में नौकरी के बदले पटना में प्रमुख संपत्तियों को लालू के परिवार के सदस्यों को बेची या गिफ्ट में दी गई थी। रेल मंत्री रहते हुए लालू पहले तो अस्थाई तौर पर नियुक्ति करते थे और जैसे ही जमीन की डील पूरी हो जाती थी नौकरी को पर्मानेंट कर दिया जाता था। इस तरह से लालू यादव ने सैकड़ों लोगों और अपने सगे-संबंधियों को यह लाभ पहुंचाया था। इस मामले में भोला यादव पर भी आय से अधिक संपत्ति करने के आरोप में सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने इस मामले में 17 जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गई वहीं मीसा भारती, हेमा यादव, राबड़ी देवी के खिलाफ FIR भी दर्ज हुई थी।

जब यह घोटाला सामने आया बिहार में जद यू की सरकार थी। जनता दल के नेताओं को यह लग गया था कि लालू यादव की राजद पहले से राज्य में कमजोर है।वहीं अगर इस घोटाले को हथियार बनाया जाए तो लालू यादव के लिए बड़ा झटका होगा। जनता दल को यह भी पता था कि साल 1995 के चारा घोटाला में लालू यादव पूर्ण रूप से संलिप्त नहीं थे। उन्हें षड़यंत्र रचने का दोषी पाया गया। लेकिन इस घोटाले में लालू सहित उनका परिवार सीधे जुड़ा हुआ है। लालू यादव उस समय रेल मंत्री के रूप में काफी चर्चित हो गए थे और इत्तेफाक से 2009 के लोकसभा चुनाव भी करीब थे। ऐसे में जेडीयू ने सोचा 2009 में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है।

रेलवे भर्ती घोटाले को लेकर सीएम नीतीश कुमार काफी गंभीर जान पड़ते थे। पार्टी के नेताओं ने कहा कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से देख रहे हैं। इसके बाद नीतीश ने सोचा कि इस मुद्दे को केंद्र में ले जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने दिवंगत अरुण जेटली, लालकृष्ण आडवाणी से इसके लिए अपील की। अरुण जेटली ने नीतीश की मांग पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ राजीव रंजन सिंह आका ललन सिंह भी मौजूद थे जिन्होंने इस मसले पर तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जांच की मांग की।

नीतीश कुमार रणनीति के तहत इस मामले में अगुआ नहीं बनने चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने सबसे विश्वसनीय ललन सिंह को आगे किया था। कुछ ऐसी ही रणनीति उन्होंने चारा घोटाले के समय भी अपनाई थी। तब भी उन्होंने अपने दोनों विश्वसनीय नेताओं ललन सिंह और शिवानंद तिवारी को आगे किया था। दोनों नेताओं ने चारा घोटाले में PIL दाखिल किया था। हालांकि इस बार दोनों नेताओं ने PIL दाखिल करने से पहले प्रधानमंत्री से जांच पर फैसले के बाद ही कोई कदम उठाने की कोशिश की थी।