जी हाँ, आप बिलकुल सही पढ़ रहे हैं डॉग बाइट कभी सीज़न होता है डॉग बाइट यानी अब कुत्तों का भी काटने का सीज़न होता है तो आइए आपको बताते हैं कि हाल ही में 70, हज़ार से ज़्यादा डॉग बाइट की घटनाएँ सामने आई है. जिसके बाद हावर्ड मेडिकल स्कूल ने इस पर स्टडी की क्योंकि यह काफ़ी परेशान करने वाली बात है इस स्टडी में इस बात का पता चला है कि कुत्तों का हिंसक होना वक़्त के साथ-साथ बढ़ता चला जाएगा. जब गर्मी में इंसान ग़ुस्सा और चिड़चिड़ा हो जाता है तो पशु और पक्षी भी तो एक तरह से जीवित हैं उन्हें भी गर्मी धूप लगती है कि बढ़ती गर्मी और धूल-धुएं से भरे दिनों में कुत्ते इंसानों पर हमला करेंगे. प्रदूषण के ज़्यादा बढ़ने से कुत्ते अधिक आक्रमण और ख़तरनाक हो जाते हैं वह आम आदमी पर और दिनों की तुलना से 11% प्रतिशत ज़्यादा ख़तरनाक हो जाते हैं और लोगों को नुक़सान पहुँचा देते हैं. स्टडी करने के दौरान माना गया है कि इंसान की गलतियों की वजह से देश में ग्लोबल वॉर्मिंग की दिक़्क़त बढ़ रही है. जिसका असर इंसान के अलावा औरों में भी दिखाई दे रहा है जैसे की पशु–पक्षी. डॉग बाइट डॉग के मूड ऊपर भी डिपेंड करता है.
इस वर्ष 15 जून 2023, को नेचर जनरल के लिए साइंटिफिक रिपोर्ट में यह शोध प्रकाशित हुई है क़रीब सालों से अमेरिका के आठ बड़े शहरों में रिसर्च किए गए हैं जिसमें साफ़ पता चलता है कि जब भी ज़्यादा गर्मी का मौसम या फिर धूल ज़्यादा रहती है तो कुत्तों में आक्रमकता ज़्यादा तेज़ी से बढ़ती और दिखती है. अगर हम अल्ट्रा वॉलेट रेस् की बात करें तो इसके लेवल बढ़ने से डॉग बाइट के मामले में 11% प्रतिशत बढ़ जाते हैं और गर्म दिनों में 4% प्रतिशत बढ़ जाते हैं. जबकि जिस दिन ओज़ोन लेवल ज़्यादा रहता है तो उस दिन डॉग बाइट का डर 3% प्रतिशत तक बढ़ जाता है. यह बात समझें कि बारिश के दिनों में डॉग बाइट का ख़तरा ख़त्म हो जाता है बल्कि आपको बता दें बारिश के दिनों में 1% प्रतिशत डॉग बाइट का डर बढ़ जाता है.
कई अध्ययन जोर देते हैं कि गर्म देशों के मौसम का अपराध से डायरेक्ट नाता है. एम्सटर्डम की व्रिजे यूनिवर्सिटी ने इस पर एक स्टडी की, जिसके नतीजे बिहेवियरल एंड ब्रेन साइंसेज में छपे है. इसमें वैज्ञानिकों ने देखा कि आम लोग, जो क्रिमिनल दिमाग के नहीं होते, वो एकदम से अपराध कैसे कर बैठते हैं. इसके लिए क्लैश यानी क्लाइमेट, एग्रेशन और सेल्फ कंट्रोल इन ह्यूमन्स को वजह माना गया हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, लोग जिस क्लाइमेट में रहते हैं, वो गुस्से को उकसाता या उस पर कंट्रोल करता है. देखा गया है कि ग़रमी में लोग बड़ी जल्दी ग़ुस्सा हो जाते हैं और चिड़चिड़ापन आ जाता है. गर्म इलाकों में क्राइम ज्यादा होता है, जब कि ठंडे इलाकों में ये घट जाता है. इंसानों पर दिखने वाली यही बात कुत्तों पर भी लागू होती है.
पालतू कुत्तों की बात करें तो उनमें बढ़ते गुस्से की एक बहुत सीधी वजह है लोगों को एग्जॉटिक नस्ल को पालने का फितूर. उदाहरण के तौर पर, साइबेरियन, हस्की ब्रीड बेहद ठंडी जगहों पर रहने वाले कुत्ते हैं, लेकिन अब ये भारत जैसे अमूमन गर्म देश में भी मिलने लगे हैं. लोग विदेशों से उन्हें मंगवाते और घरों पर रखते हैं. इसी तरह से पिटबुल या अमेरिकन बुलडॉग को लें तो ये भी जंगली ब्रीड हैं. इन्हें घर पर रखने से पहले पक्की ट्रेनिंग न हो, तो वे हिंसक होकर सीधा इंसानों पर अटैक करते हैं. जो इंसानों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.
बहुत से लोग पेट लवर्स है जो कुत्ते, बिल्ली को अपने घर में पालते है और बहुत से ऐसे लोग हैं जो कुत्तों को अपना दोस्त और फ़ैमिली का एक हिस्सा समझते हैं लेकिन आपको बताते हैं कुत्ते आज कल छोटे बच्चों को भी नहीं छोड़ रहे हैं उनको साथ भी चीर फाड़ कर दे रहेहैं. यह कोई नया मामला नहीं है अक्सर ऐसा कुछ न कुछ सुनने में आता रहता है. बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग के ज़िम्मेदार भी कहीं न कहीं हम ही लोग हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉशिंगटन की रिसर्च ने एक ओर इशारा करते हुए बताया है कि बढ़ते तापमान और बदलते ख़ानपान की वजह से इंसानों और पशुओं के बीच 80% फीसदी टकराव की वजह बनेगा. डॉग अटैक का मामला इसलिए ज्यादा दिख रहा है क्योंकि ये पशु इंसानी आबादी के साथ ही रहता है.