आज हम आपको बताएंगे कि पति से अलग होने वाली महिला को गुजारा भत्ता मिलेगा या नहीं! मध्य प्रदेश में जबलपुर के फैमिली कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर महिला अपनी मर्जी से अलग रह रही है तो उसे पति से गुजारा भत्ता पाने का कोई हक नहीं है। कोर्ट ने यह कहते हुए पति से अलग रह रही महिला की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला ने खुद ही पति से अलग रहने का फैसला किया था, इसलिए उसे गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार ही नहीं है। अदालत में जब महिला के आवेदन पर सुनवाई हो रही थी, उसके पति ने बताया कि दोनों 15 दिसंबर, 2020 से ही अलग हैं। पति ने कहा कि तब पत्नी खुद ही अलग हो गई थी। तब पति ने हिंदू विवाह कानून की धारा 9 के तहत प्राप्त दाम्पत्य अधिकारों की बहाली की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
उधर, पत्नी ने भी उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना की शिकायत कर दी थी। इसके साथ ही महिला ने समझौते के तहत पति से प्राप्त 12 लाख रुपये के चेक के बाउंस होने का आरोप लगाकर केस भी कर दिया था। परिवार अदालत के प्रधान न्यायाधीश केएन सिंह के सामने मामला आया तो उन्होंने महिला के बयान का हवाला देकर ही उसकी अर्जी खारिज करी दी। अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी करने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा। विधेयक में सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है। महिला-पुरुषों को समान अधिकारों की सिफारिश की गई है।अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया है।जज केएन सिंह ने कहा कि महिला ने खुद कहा है कि वो पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो फिर उसे गुजारा भत्ता पाने का हक कैसे है। जज ने यह कहते हुए महिला की मांग मानने से इनकार कर दिया।
उधर, अहमदाबाद के सत्र न्यायालय ने यह कहते हुए एक हिंदू दंपती का तलाक खारिज कर दिया कि हिंदुओं में विवाह बहुत पवित्र संस्था का नाम है, दूसरे धर्मों की तरह कोई समझौता नहीं। सेशंस कोर्ट ने इसी हवाले से ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। सेशंस कोर्ट ने यह हिदायत भी दी कि ट्रायल कोर्ट को तुरंत तलाक की अर्जी मंजूर करने के बजाय विवाह को बचाने का प्रयास करना चाहिए था। उसने पति-पत्नी से आग्रह किया कि वो आपसी मतभेद को दूर करने की कोशिश करें। वहीं दूसरी ओर बुधवार को सदन में विधेयक पर चर्चा के बाद सदन ने इसे पास कर दिया। अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी करने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा। विधेयक में सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है। महिला-पुरुषों को समान अधिकारों की सिफारिश की गई है।अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया है।
बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनता से किए गए वायदे के अनुसार पहली कैबिनेट बैठक में ही यूसीसी का ड्रॉफ्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर दी गई। समिति ने व्यापक जन संवाद और हर पहलू का गहन अध्ययन करने के बाद यूसीसी के ड्रॉफ्ट को अंतिम रूप दिया है। इसके लिए प्रदेश भर में 43 जनसंवाद कार्यक्रम और 72 बैठकों के साथ ही प्रवासी उत्तराखण्डियों से भी समिति ने संवाद किया।परिवार अदालत के प्रधान न्यायाधीश केएन सिंह के सामने मामला आया तो उन्होंने महिला के बयान का हवाला देकर ही उसकी अर्जी खारिज करी दी। जज केएन सिंह ने कहा कि महिला ने खुद कहा है कि वो पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो फिर उसे गुजारा भत्ता पाने का हक कैसे है। अहमदाबाद के सत्र न्यायालय ने यह कहते हुए एक हिंदू दंपती का तलाक खारिज कर दिया कि हिंदुओं में विवाह बहुत पवित्र संस्था का नाम है, दूसरे धर्मों की तरह कोई समझौता नहीं।जज ने यह कहते हुए महिला की मांग मानने से इनकार कर दिया। समान नागरिक संहिता विधेयक के कानून बनने पर समाज में बाल विवाह, बहु विवाह, तलाक जैसी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर रोक लगेगी, लेकिन किसी भी धर्म की संस्कृति, मान्यता और रीति-रिवाज इस कानून से प्रभावित नहीं होंगे। बाल और महिला अधिकारों की यह कानून सुरक्षा करेगा।