Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsक्या अमृतपाल सिंह पाकिस्तान में लाना चाहता है आतंक?

क्या अमृतपाल सिंह पाकिस्तान में लाना चाहता है आतंक?

अमृतपाल सिंह पाकिस्तान में आतंक लाना चाहता है! कोई ऐसा जो धर्म के लिए अपने प्राण दे सके ?’ यह सुनते ही सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने फिर से कहा, सन्नाटा और गहरा हो गया। जब बड़ी तीखी आवाज में उन्होंने तीसरी बार अपनी बात दोहराई तो लाहौर के एक खत्री दयाराम ने अपने स्थान पर खड़े होकर कहा- ‘मैं प्रस्तुत हूं।… गुरु गोविंद सिंह के आह्वान पर कई सिख अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार हो गए और इस तरह शुरू हुआ खालसा पंथ। देश में जब मुगलों का अत्याचार चरम पर पहुंच गया तब सरदारों ने गुरु गोविंद सिंह के आह्वान पर तलवारें उठाईं। लेकिन एक बार फिर से ये खालसा इन दिनों काफी चर्चा में है। वारिस पंजाब दे संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह अब ये किस्सा भूल चुके हैं। पंजाब के अमृतसर के अजनाला थाने पर बवाल मचाने वाले अमृतपाल सिंह ने कहा है कि खालिस्तान के हमारे उद्देश्य को बुराई और वर्जित के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह एक विचारधारा है और विचारधारा कभी मरती नहीं है। खालिस्तान के उद्देश्यों के हवाला देने वाले वारिस पंजाब दे प्रमुख को खालसा की स्थापना की कहानी जरूर जाननी चाहिए। गुरु गोविंद सिंह के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य ‘खालसा निर्माण’ का है। 14 अप्रैल 1699 ई. को बैशाखी के दिन उन्होंने आनन्दपुर में अपने शिष्यों का एक विशाल सम्मेलन किया। सिख गुरुओं का शिष्य वर्ग सम्पूर्ण भारत और अफगानिस्तान-ईरान तक फैला हुआ था। इस सम्मेलन में दूर-दूर से आए लोगों का एकत्रीकरण हुआ। इसी सम्मेलन में खालसा की स्थापना हुई।

बैशाखी के उस ऐतिहासिक अवसर पर हजारों शिष्यों के समुदाय के सामने हाथ में नंगी तलवार लेकर गुरु जी ने प्रश्न किया— “है कोई ऐसा जो धर्म के लिए अपने प्राण दे सके ?” यह सुनते ही सन्नाटा छा गया। उन्होंने अपनी बात दुबारा कही, सन्नाटा और गहरा हो गया। जब बड़ी तीखी आवाज में उन्होंने तीसरी बार अपनी बात दोहराई तो लाहौर के एक खत्री दयाराम ने अपने स्थान पर खड़े होकर कहा—“मैं प्रस्तुत हूं।’ वे उसे साथ के खेमे में ले गये। लोगों ने ‘खटाक’ की तेज आवाज सुनी। खून से सनी हुई तलवार लेकर वे बाहर आये और अधिक गम्भीरता से बोले ‘कोई और शिष्य है जो धर्म के लिए अपने-आपको प्रस्तुत कर सके ? इस पर हस्तिनापुर के एक जाट धर्मदास ने अपने-आपको प्रस्तुत किया। वे उसे भी साथ के खेमे में ले गये लोगों ने उसी तरह ‘खटाक’ की तीखी आवाज सुनी। इसी प्रकार तीन और व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। एक था द्वारका का एक धोबी मोहकमचन्द, दूसरा था जगन्नाथ पुरी का एक कहार हिम्मत राय और तीसरा था बीदर का एक नाई साहबचंद । यह एक परीक्षा थी। इस परीक्षा में देश के विभिन्न भागों से आए हुए ये पांच अति साधारण व्यक्ति पूरी तरह सफल हुए थे।”

गुरु गोविंद सिंह ने इन पांचों निडर शिष्यों को सुंदर कपड़े पहनाए और इन्हें ‘पंज प्यारे’ कहकर संबोधित किया। इसके बाद गुरु जी पांचों सिखों को लेकर सभा में आए। सभा में आए हजारों लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए। सभी को आश्चर्य हुआ कि ये लोग जिंदा कैसे हैं। गुरु गोविंद सिंह ने कहा, ‘यह शकुन बड़ा शुभ है और खालसा की विजय निश्चित है।’

गुरु गोविंद सिंह ने इन पांच शिष्यों को विशेष दीक्षा दी। उन्होंने इसे वाहेगुरु का खालसा कहा था। सिख पंथ में वाहेगुरु परब्रह्म के लिए कहा जाता है। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पूर्व की नौ पीढ़ियों के सिख समुदाय को ‘खालसा’ में परिवर्तित किया। उन्हीं के शब्दों में “जो सत्य की ज्योति को सदैव प्रज्ज्वलित रखता है, एक ईश्वर के अतिरिक्त और किसी को नहीं मानता, उसी में उसका पूर्ण प्रेम और विश्वास है और भूलकर भी मृत व्यक्तियों की समाधियों दरगाहों पर नहीं जाता। ईश्वर के निश्छल प्रेम में ही उसका तीर्थ, दान, दया, तप और संयम समाहित है, इस प्रकार जिसके हृदय में पूर्ण ज्योति का प्रकाश है, वह पवित्र व्यक्ति की ‘खालसा’ है। “

दरअसल, गुरुवार को वारिस पंजाब दे संगठन के मुखिया अमृतपाल और उसके समर्थकों ने गुरुवार को अमृतसर के अजनाला थाने पर भारी बवाल मचाया था। अमृतपाल और उसके समर्थक तलवार और बंदूकों के साथ थाने के अंदर घुस गए और जमकर हंगामा किया। इन लोगों के हाथ में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब भी था। पुलिस मूकदर्शक बने सबकुछ देखती रही। हंगामा मचाने वाले अमृतपाल ने मीडिया से सामने अजीबोगरीब तर्क भी दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने हम चर्चा कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘खालिस्तान के हमारे उद्देश्य को बुराई और वर्जित के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे बौद्धिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए कि इसके भू-राजनीतिक लाभ क्या हो सकते हैं। यह एक विचारधारा है और विचारधारा कभी मरती नहीं है। हम दिल्ली से नहीं मांग रहे हैं।’ अमृतपाल सिंह को खालसा की स्थापना और इसको लेकर गुरु गोविंद सिंह की बात पढ़नी चाहिए। शायद उनको ये भी पता नहीं कि खालसा का मतलब क्या होता है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments