बीजेपी अब तमिलनाडु में भी धूम मचाने की फिराक में है! उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी तमिल संगमम कार्यक्रम का समापन हो गया। समापन कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे। उन्होंने जो कहा उसके अर्थ भविष्य की राजनीति के संकेत देते हैं। अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद ऐसा समय आया, जब देश की सांस्कृतिक एकता में जहर घोलने का प्रयास हुआ। अब समय आ गया है एक भारत श्रेष्ठ भारत की रचना करने का। यह भारत की सांस्कृतिक एकता से ही संभव हो सकता है। इसमें काशी तमिल संगमम जैसे कार्यक्रम की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि लंबे समय से देश की संस्कृतियों को जोड़ने का प्रयास नहीं किया गया। अब इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री पीएम नरेंद्र मोदी की उन बातों को कह रहे थे, जो उन्होंने इस कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर कह रहे थे। पीएम ने पूर्ववर्ती सरकारों पर भाषायी आधार पर बंटे समाज को एकसूत्र में बांधने के लिए प्रयास नहीं किए जाने की बात कही थी। कार्यक्रम में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आईं। विदेश मंत्री एस जयशंकर आए। उनके अलावा धर्मेंद्र प्रधान से मनसुख मांडविया तक कई मंत्री और सांसद यहां पहुंचे। संदेश साफ था कि लोगों के बीच एकता का संदेश देना। एक तरफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तमिलनाडु की कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर कश्मीर तक जा रहे हैं। वहीं, भाजपा ने तमिलनाडु और उत्तर भारत को जोड़ने के लिए सांस्कृतिक एकतावाद का एक नया प्रयोग कर डाला है। एक राहुल गांधी के जवाब में भाजपा ने 2500 तमिल यात्रियों के जरिए अपना संदेश तमिलनाडु के गांव-गांव तक पहुंचाने की कोशिश की है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से काशी तमिल संगमम कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। भले इस कार्यक्रम का उद्देश्य वाराणसी और तमिलनाडु के बीच ज्ञान प्राचीन सभ्यता और संबंधों के सदियों पुराने बंधन को फिर से खोजना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान शुरू कराना कहा गया है। लेकिन, इसके राजनीतिक मायने भी हैं। काशी तमिल संगमम का आयोजन देश में होने वाले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हो रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इस कार्यक्रम के जरिए उत्तर और दक्षिण के बीच के विभेद को पाटने की कोशिश करती दिख रही है। हाल के दिनों में जिस प्रकार से दक्षिण और उत्तर के बीच का सांस्कृतिक भेद फिल्मों की स्वीकार्यता के साथ मिलता दिखा है। साउथ इंडस्ट्री की फिल्में अब पैन इंडिया होने लगी हैं। दक्षिण ने सांस्कृतिक और सामाजिक स्वरूप का प्रदर्शन किया है। उस स्थिति में उत्तर में प्रभावी भाजपा भी अब पैन इंडिया बनने की कोशिश में लगती दिख रही है। दक्षिण भारतीय अभिनेताओं को साधने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब वहां की धार्मिक जमीन पर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
काशी तमिल संगम का एक बड़ा उद्देश्य काशी के बाबा विश्वनाथ और तमिलनाडु के रामेश्वरम के बीच की कड़ी को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने रहा है। यह संबंध सदियों पुराना है। ऐसे में दक्षिण की राजनीति में हाशिए पर खड़ी दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां जोर-आजमाइश करती दिखी हैं। कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के जरिए। भाजपा काशी तमिल संगमम के जरिए। काशी तमिल संगम कार्यक्रम में तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से 210 लोगों के समूह को 8 दिनों के लिए काशी लाया गया। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के बाद इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इससे काशी की भव्यता को तमिलनाडु के गांवों तक पहुंचाने और चर्चा का विषय बनाने की कोशिश हुई है। राजनीति में माउथ पब्लिसिटी का महत्व है। पीएम नरेंद्र मोदी यहां से सांसद हैं। ऐसे में कार्यों का श्रेय तो उन्हें मिलेगा ही। बहरहाल, काशी तमिल संगमम कार्यक्रम के तहत करीब 12 समूह में ढाई हजार लोग काफी पहुंचे। रामेश्वरम, चेन्नई, कोयंबटूर से ट्रेनें नियमित तौर पर चलाई गईं। ट्रेनों में विशेष कोच लगाए गए। कार्यक्रम के दौरान पहुंची हस्तियों ने आम लोगों के बीच चर्चा के माहौल को बढ़ाया।
आपके मन में सवाल उठ सकता है कि काशी और तमिलनाडु के बीच ऐसा क्या संबंध है, जिसको लेकर संगमम जैसे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इतिहासकारों की मानें तो चोल काल के शिलालेखों में वाराणसी का जिक्र किया गया है। तमिलनाडु में कई जगहों पर काशी विश्वनाथ और विशालाक्षी मंदिर पाए जाते हैं। तमिलनाडु में एक काशी नाम का शहर भी है। वहीं, बड़ी संख्या में तमिल जन काशी में आकर निवास करते हैं। पिछले दिनों काशी विश्वनाथ मंदिर के बोर्ड में भी एक तमिल सदस्य की एंट्री हुई है। इसी प्रकार काशी से रामेश्वरम भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं। मतलब, धार्मिक यात्राओं का दौर दोनों शहरों के बीच चलता रहता है। यह वर्तमान समय में नहीं, प्राचीन काल से होता चला आया है। 17 वीं शताब्दी में शैव कवि कुमारागुरुपरार तमिलनाडु से काशी आए थे। यहां उन्होंने मठ का निर्माण किया। मठ बनाने के बाद वे वापस थानजावुर जिले चले गए। वहां मठ बनाया। उस मठ को लोग आज भी काशी मठ के नाम से जानते हैं।
तमिलनाडु में हिंदी विरोध के बाद द्रविड़ राजनीति की शुरुआत हुई। द्रविड़ राजनीति तमिल भाषा के मसले को बड़े स्तर पर उठाती रही है। काशी तमिल संगम का पिछले दिनों खूब विरोध भी हुआ था। कारण, इस कार्यक्रम को तमिलनाडु में हिंदी को स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा गया। हालांकि, काशी तमिल संगमम कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तमाम विवादों पर विराम लगा दिया। उन्होंने कहा कि तमिल भाषा विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है। हमें उस पर गर्व है। उसके विकास के लिए काम होने चाहिए। उसके बारे में सभी को जानना चाहिए। काशी तमिल संगमम कार्यक्रम में काशी के लोगों ने तमिलनाडु के संस्कृति को न केवल देखा बल्कि उसे जिया।
पीएम मोदी ने उद्घाटन समारोह में कहा था कि देश में आजादी के बाद उत्तर और दक्षिण के भेद को मिटाने की कोशिश नहीं की गई। इस तरह के आयोजन से उत्तर और दक्षिण के बीच बनी खाई को पाटने का काम होगा। साफ है कि वह उत्तर और दक्षिण के बीच के मसले को भाषाई आधार पर बांटने वाली राजनीति से आगे की देख रहे हैं। दिल को जीतने की कोशिश के साथ यह प्रयास तमिलनाडु की राजनीति में भाजपा को स्थापित करने का भी माना जा रहा है।
2014 से देश की सत्ता से बाहर कांग्रेश पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले। पिछले दिनों उनकी भारत जोड़ो यात्रा का 100 दिन पूरा हुआ है। उन्होंने अपनी भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत तमिलनाडु के कन्याकुमारी से की। तमिलनाडु में उनका कार्यक्रम 18 से 20 दिनों का रहा। 7 सितंबर को राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से यात्रा शुरू की थी। उसके बाद माना जा रहा था कि तमिलनाडु में कांग्रेस अपनी स्थिति को इससे मजबूत करेगी। तमिलनाडु से उनके निकलते ही केंद्र सरकार की काशी तमिल संगमम कार्यक्रम का आयोजन हुआ है। तमिलनाडु की राजनीति में पिछले करीब छह दशकों से राष्ट्रीय पार्टियों को कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है। द्रविड़ राजनीति हावी है। डीएमके और एआईएडीएमके समय-समय पर सत्ता ट्रांसफर करती रही है।
इस सबके बीच दोनों राष्ट्रीय पार्टियां वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस राजनीतिक जमीन पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करती दिखती है। राहुल गांधी ने पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा के तहत तमिलनाडु में अच्छा खासा समय बिताया। लोगों को पार्टी से जुड़ने का संदेश दिया। वहीं, मोदी सरकार ने एक प्रकार से तमिलनाडु को ही काशी में लाकर एक अलग रणनीति पर काम शुरू कर दिया। कार्यक्रम का संदेश तमिलनाडु के गांव- गांव तक पहुंचाने की तैयारी है।
तमिलनाडु के राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके के बीच में जिस प्रकार से राजनीति होती रही है। उसमें अन्य राजनीतिक दलों को अब तक कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं हुआ है। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2021 में कमल हासन जैसे अभिनेता ने अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए। 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सेक्यूलर प्रोग्रेसिव रिलायंस का हिस्सा थी, जिसकी अगुवाई डीएमके कर रही थी। डीएमके ने 234 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से 173 सीटों पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस के हिस्से में 25 सीटें आई थी। कुछ यही हाल राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए को लीड करने वाले भाजपा का था। एनडीए की अगुवाई तमिलनाडु में एआईएडीएमके कर रही थी। एआईएडीएमके ने 179 सीटों पर चुनाव लड़ा। पीएमके को 23 सीटें दी गई। भाजपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ी। वोट परसेंटेज के लिहाज से देखें तो सेक्यूलर प्रोग्रेसिव एलायंस ने 45.38 फीसदी और एनडीए ने 39.72 फीसदी वोट शेयर हासिल किया।
सेक्यूलर प्रोग्रेसिव एलायंस 159 सीटों पर जीती। वहीं, एनडीए 75 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। दो राष्ट्रीय पार्टियों के प्रदर्शन पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 8 सीटों पर सिमटी थी। इस लिहाज से 10 सीटों का फायदा हुआ। वहीं, भाजपा 4 सीटों पर जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव 2016 में भाजपा को कोई सीट नहीं मिली थी। कुल वोट शेयर को देखें तो डीएमके 37.70 फीसदी वोट शेयर हासिल की, जबकि कांग्रेस को 4.27 फीसदी वोट शेयर मिला। वहीं, एनडीए के एआईएडीएमके को 33.29 फीसदी और भाजपा 2.6 फीसदी वोट शेयर हासिल कर पाई।
काशी तमिल संगमम के जरिए भाजपा हिंदू वोट बैंक को साधने की कोशिश करती दिख रही है। तमिलनाडु में सबसे बड़ा धर्म हिंदू ही है। यहां की 87.58 फीसदी आबादी हिंदू धर्म मानती है। प्रदेश के सभी 32 जिलों में हिंदू बहुसंख्यक धर्म है। 2011 की जनगणना के अनुसार तमिलनाडु की 7.21 करोड़ की आबादी में से करीब 6.31 करोड़ हिंदू थे। वहीं, मुसलमानों की आबादी करीब 42 लाख और इसाई की आबादी करीब 44 लाख थी। हालांकि, तमिलनाडु का हिंदू वर्ग तमिल अस्मिता के मुद्दे को सबसे प्रमुख मानता रहा है। ऐसे में धार्मिक भावनाओं को जगाने की कोशिश अब होती दिख रही है। धार्मिक कार्यक्रम और सांस्कृतिक गठजोड़ के जरिए उत्तर को दक्षिण से बांधने का प्रयास तमिल काशी तमिल संगम के जरिए होता दिख रहा है।