नीतीश कुमार बिहार में महागठबंधन करना चाहते हैं! बिहार के कई सियासी जानकार मानते हैं कि राजनीति में सब लोग अटल बिहारी वाजपेयी नहीं होते। सवाल ये है कि बिहार की सियासत की चर्चा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को कोट करना कितना वाजिब है। जानकार कहते हैं कि अटल सियासत में समझौता कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और एजेंडे के आधार पर करते थे। केंद्र में अपनी सरकार के दौरान अटल ने ये नीति अपनाई। राजनीतिक साझीदारी के साथ विकास के रथ को कैसे दौड़ाया जाता है। अटल जी ने दिखा दिया। अब ऐसा नहीं है। सियासत में समझौते महज मौकापरस्ती की मिसाल बनते जा रहे हैं। बिहार में 7 दलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया है। इस महागठबंधन के मुखिया मात्र दो दल ही हैं। राजद और जेडीयू। दोनों दलों में ऊपरी स्तर पर रिश्ता सामान्य है। हां, पिछले एक सप्ताह से माहौल कुछ अलग सा है। राजद नेता और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिखंडी, भिखमंगा और न जाने क्या-क्या कह दिया। अचानक महागठबंधन में खलबली मच गई। सियासी जानकार ये बताते हैं कि खलबली ही नहीं मची है, गठबंधन में बड़ी ‘गांठ’ पड़ गई है। जिसके सूत्रधार सुधाकर सिंह बने हैं।
सुधाकर सिंह प्रकरण पर जानकार साफ कहते हैं कि जेडीयू की ओर से किसी एक नेता को इस पर टिप्पणी करनी चाहिए थी। जैसे, नीतीश कुमार ने जब इस पर बोल दिया कि कोई क्यों बोलता है, यह तो वही लोग बताएंगे। पार्टियों का इंटरनल चीज है। जब सभी लोग मिलकर काम कर रहे हैं, तो किसी भी पार्टी में इंटरनली जब कोई बोलता है तो पार्टी वाले ही न उसको देखेंगे। हम तो उसको नोटिस भी नहीं लेते हैं। इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है। इसका कोई अर्थ नहीं है। खाली प्रचार हो जाता है। इसीलिए न सबको मौका मिलता है। हम तो सभी लोगों का अभिनंदन करते हैं। नीतीश के इस बयान के बाद जेडीयू नेताओं को शांत हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उपेंद्र कुशवाहा से लेकर, जेडीयू एमएलसी रामेश्वर महतो और राजद की ओर से श्याम रजक भी इस मैदान में कूद पड़े। जानकार बताते हैं कि मामला यहां तक भी ठीक था। बीच में जीतन राम मांझी ने कूदकर मामले में भांजी मार दी। मांझी ने डायरेक्ट आरजेडी को धमकी देते हुए कहा कि इस तरह बिहार में महागठबंधन नहीं चलेगा। आरजेडी को तुरंत एक्शन लेना होगा। हालांकि, मांझी के बयान से पहले तेजस्वी यादव ने इस बात को राजद सुप्रीमो के संज्ञान में लाये जाने की बात कह दी थी। तेजस्वी ने यहां तक कहा था कि सुधाकर सिंह जैसे लोग अपने बयानों से बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं।
उधर, बीजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें, तो सुधाकर सिंह इन दिनों ‘सियासी सुपारी’ वाला गेम खेल रहे हैं। सुधाकर सिंह के मुखर होने के बाद प्रदेश बीजेपी का उत्साह इन दिनों चरम पर है। बीजेपी से जुड़े नेताओं में ये चर्चा है कि महज पांच महीने में महागठबंधन की सुधाकर सिंह ने ‘महागति’ कर दी। चर्चा ये भी है कि सुधाकर सिंह की बयानबाजी को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व नोटिस में ले रहा है। सूत्रों की मानें, तो बीजेपी इन दिनों सुधाकर सिंह को सह देने में लगी है। बीजेपी सुधाकर के जरिए नीतीश कुमार और तेजस्वी को बड़ा झटका देने की तैयारी में है। खासकर बिहार बीजेपी और सियासी गलियारों में ये चर्चा आम है कि सुधाकर सिंह को बीजेपी का साथ पसंद है। सुधाकर सिंह ने कृषि मंत्री पद छोड़ने के बाद से शपथ ली है कि नीतीश कुमार की कलई खोलकर रहेंगे। जानकार मानते हैं कि आप गौर कीजिए जिस दिन से सुधाकर सिंह ने इस्तीफा दिया। पिता जगदानंद सिंह राजनीतिक रूप से मौन हैं। सुधाकर सिंह मुखर हैं। जानकार यहां तक कहते हैं कि जगदानंद सिंह अभी भी नीतीश को खास पसंद नहीं करते। इसलिए बेटे की जुबां पर लगाम लगाने की कवायद नहीं कर रहे हैं। हां, बस छोटा-मोटा बयान दे दिये हैं कि सुधाकर सही नहीं कर रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि सुधाकर सिंह बीजेपी को सपोर्ट कर रहे हैं और नीतीश के खिलाफ तब तक आग उगलने की तैयारी में हैं, जब तक महागठबंधन में दरार स्पष्ट दिखने ना लगे।
हालांकि ज्यादातर केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहने वाले बिहार बीजेपी के युवा नेता राकेश उपाध्याय इन बातों से इनकार करते हैं। उनका साफ मानना है कि देखिए सियासत में बहुत कुछ संभव होता है। समय और परिस्थितियों पर चीजें निर्भर करती हैं। फिलहाल, नीतीश के साथ आने का कोई सवाल ही नहीं है। राकेश कहते हैं कि सुधाकर सिंह की बयानबाजी उनका निजी मामला है। उससे महागठबंधन पर पड़ने वाले प्रभाव का असर नीतीश और तेजस्वी देखें। बीजेपी को इससे कोई मतलब नहीं है। वहीं, सियासी गलियारों में चर्चा है कि ये विवाद यहीं पर नहीं थमेगी। सुधाकर सिंह राजद सुप्रीमो लालू यादव के मनाने से भी मानने वाले नहीं हैं, उन पर मीडिया का पूरा ध्यान है। गाहे-बगाहे महागठबंधन में गांठ डालने वाले बयान उनकी ओर से आते रहेंगे। वैसे भी पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार तीखी बयानबाजी के बाद जिस तरह जदयू के नेताओं ने आंखें तरेरी हैं, उससे साफ हो गया है कि सुधाकर अब महागठबंधन के लिए गांठ बनते जा रहे हैं। जदयू संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने तो सोशल मीडिया के जरिए तेजस्वी यादव को संबोधित करते हुए राजद शासन के जंगलराज की याद भी दिला दी।
सवाल सबसे बड़ा है कि सुधाकर पर जब से नीतीश ने बयान दिया है, सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि मामला गंभीर है। जानकार मानते हैं कि सुधाकर सिंह ने अपने बयानों से ही सही, ये जता दिया है कि उन्होंने महागठबंधन में दरार डालने की ‘सियासी सुपारी’ ले ली है। सुधाकर सिंह के बयान को लेकर भले ही महागठबंधन में दरार की बात दोनों दलों के नेता नहीं मान रहे हों, लेकिन कई नेता यह जरूर कह रहे हैं कि गठबंधन के लिए यह सही नहीं है। ऐसे में तय माना जा रहा है कि सिंह की तल्ख टिप्पणियां गांठ जरूर बना रही हैं। जानकारों की मानें, तो किसी भी गठबंधन में गांठ बनने की शुरुआत बयानों से होती है। स्थिति हाथ से निकल जाती है। नेताओं पर पार्टियों का कंट्रोल नहीं रहता। मीडिया में चेहरा चमकाने के लिए नेता बयान पर बयान देने लगते हैं। स्थिति अंत में बिगड़ जाती है। सुधाकर सिंह को बखूबी पता है कि वे सरकार के लू फॉल्ट जानते हैं। उनके बोलने को लोग नोटिस लेंगे। सुधाकर सिंह लगातार बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री के अलावा सरकार और कृषि विभाग को लेकर पहले भी बोल चुके हैं। अब जब उनके बयानों ने तल्खी की सीमा पार कर दी, तब अचानक जेडीयू नेता एक्टिव हुए हैं। राजद नेताओं के भी बयान आने लगे हैं। जानकार मानते हैं, बस कुछ दिन इंतजार कीजिए इस बयानबाजी पर लगाम नहीं लगी, तो नीतीश-तेजस्वी को बड़ा झटका लगेगा।