प्रशांत किशोर नीतीश कुमार की हर कमजोरी के बारे में सब कुछ जानते हैं! आज की सियासत का ‘चाणक्य’ अब ‘चंद्रगुप्त’ बनने की राह पर निकल पड़ा है। उसकी नजर पाटलिपुत्र की गद्दी पर है। भले ही वो इस बात को साफ-साफ नहीं कह रहा। मगर उसके तीर बिल्कुल निशाने पर लग रहे। पावर पॉलिटिक्स के कैलकुलेशन में माहिर प्रशांत किशोर अब खुद के लिए बैटल ग्राउंड तैयार कर रहे हैं। पाटलिपुत्र की गद्दी पर सत्तासीन नीतीश कुमार इस बात को बखूबी समझ रहे हैं। चूंकि, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार दोनों एक साथ बंगले में रह चुके हैं। पिता-पुत्र जैसे संबंध की बात कहते रहे हैं। मगर कल तक जो नीतीश के लिए चाणक्य था, अब उसकी नजर सीधे-सीधे तख्त-ओ-ताज पर है। राजा बनने की ख्वाब देखना और राजा बनना, दो अलग-अलग खासियतें हैं। सत्ता हासिल करने के लिए बहुत सारी कुर्बानियां देनी पड़ती है। संबंधों की तिलांजलि देनी पड़ती है। बंद कमरे की बातों को सार्वजनिक करना पड़ता है। राज़ खोलने पड़ते हैं। प्रशांत किशोर उस रास्ते पर निकल पड़े हैं। नीतीश कुमार तो पहले से ही इसके यूनिवर्सिटी हैं।
बिहार के नेताओं में प्रशांत किशोर सिर्फ नीतीश कुमार के बातों का जवाब देते हैं। नीतीश कुमार भी पीके को पूरा ‘भाव’ देते हैं। प्रशांत किशोर ने नया खुलासा किया कि ‘जो लोग ये सोच रहे हैं कि नीतीश कुमार सक्रिय रूप से भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन बना रहे हैं, उन्हें ये जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने भाजपा के साथ एक लाइन खुली रखी है। वो अपनी पार्टी के सांसद और राज्यसभा उपाध्यक्ष हरिवंश के माध्यम से भाजपा के संपर्क में हैं। हरिवंश को इसी वजह से अपने राज्यसभा पद से इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा गया है। भले ही JDU ने भाजपा से नाता तोड़ लिया हो। लोगों को ये ध्यान में रखना चाहिए कि जब भी ऐसी परिस्थितियां आती हैं, तो वो भाजपा में वापस जा सकते हैं और भाजपा के साथ काम कर सकते हैं।’ हालांकि प्रशांत के इस बयान पर नीतीश कुमार का रिएक्शन नहीं आया है। मगर उनकी पार्टी ने इसे खारिज किया है।
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के संबंध वैसे तो बहुत पहले खराब हो गए थे। मगर बीच के कुछ दिनों में बर्फ पिघलनी शुरू हुई थी। पवन वर्मा के जरिए नीतीश कुमार ने पानी बहाने की कोशिश की थी। 13 सितंबर को पटना में नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर प्रशांत मिलने पहुंचे थे। दोनों के बीच करीब ढाई घंटे तक चली मीटिंग का एजेंडा काफी दिनों तक सीक्रेट रही। नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा कि वो (प्रशांत किशोर) मिलने आए थे। मगर क्या बात हुई इस बारे में नहीं बताया। इस मुलाकात के बाद PK ने दिनकर की कविता ट्वीट की। उन्होंने लिखा कि ‘तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा। आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?’ माना गया कि प्रशांत और नीतीश में डील नहीं हो सकी। इसके बाद 2 अक्टूबर से प्रशांत किशोर अपनी जन सुराज यात्रा में लग गए। जो करीब एक से डेढ़ साल तक चलेगी।
बंद कमरे की डील को नीतीश कुमार ने सार्वजनिक किया। उन्होंने कहा कि ‘प्रशांत मेरे साथ रहते थे, मेरे साथ खाते पीते थे, मेरे घर में रहते थे लेकिन, अब वह बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। अब उनसे मेरा कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने (प्रशांत किशोर) तो मुझसे आकर JDU को कांग्रेस में मर्ज करने के लिए कह दिया था। वो बिल्कुल पॉलिटिकल व्यक्ति नहीं है। उनको राजनीति की समझ नहीं है। अब वो बीजेपी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं और बीजेपी के लिए ही कैंपेन कर रहे हैं।’ चूंकि प्रशांत किशोर अब तक ‘चाणक्य’ के रोल में थे, ‘चंद्रगुप्त’ बनने के तौर-तरीके बड़ी तेजी से सीख रहे हैं। अगले ही दिन बयान जारी कर कहा कि ‘नई सरकार बनने के बाद से नीतीश को कुछ समझ नहीं आ रहा है। उनके पास जो लोग हैं, उन पर भी वे भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए उनको अलग-थलग पड़ने का डर सता रहा है। अगर मैं भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहा होता तो मैं कांग्रेस को मजबूत करने की बात क्यों करता? नीतीश जी की उम्र ज्यादा हो गई है, उनको कुछ याद नहीं रहता है।’
चाणक्य से चंद्रगुप्त बनने की मुश्किलों को प्रशांत किशोर आत्मसात करना चाहते हैं। चंद्रगुप्त बन पाते हैं कि नहीं, इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा। वैसे, प्रशांत किशोर एनडीए और महागठबंधन दोनों के खिलाफ बोल रहे हैं। नीतीश के ज्यादा आहत होने की वजह बिहार में 32 सालों से लालू और नीतीश की सरकार का होना है। मौजूदा हालात में लालू-नीतीश दोनों ही साथ हैं। इनके लिए बीजेपी से मुकाबला करना ज्यादा आसान है, मगर प्रशांत किशोर से कैसे निपटें, इन्हें समझ में नहीं आ रहा। तेजस्वी यादव की पहचान लालू यादव से है, जो अस्वस्थ चल रहे। नीतीश की पार्टी जेडीयू का संगठन ग्राउंड पर उतना मजबूत नहीं है। जो दिखता है वो सिर्फ सत्ता की वजह से। पिछले 17 सालों से बिहार का पावर सेंटर नीतीश हैं तो पीके की जन सुराज से सबसे ज्यादा परेशानी नीतीश कुमार को ही है।
2005 में सत्ता में आने से पहले नीतीश कुमार ने पूरे राज्य में एंटी लालू मुहिम खड़ा किया। बीजेपी ने सपोर्ट दिया और लालू-राबड़ी राज का सफाया हो गया। किसी को सत्ताच्यूत कैसे किया जाता है, इसे प्रशांत किशोर से बेहतर कौन समझ सकता है? कई लोगों को सिंहासन दिलाने वाले प्रशांत किशोर अब खुद के लिए निकल पड़े हैं। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने तो उन्हें डकैत तक करार दिया था। मगर पीके जरा-सा भी परेशान नहीं हुए। कुशल रणनीतिकार से इतर राह पर निकल पड़े। वैसे किसी बड़े आदमी का राज़दार जब अपने मालिक के कामों की निंदा करने लगे तो उसे तवज्जो जनता के बीच ज्यादा मिलती है। बंद कमरे की बातों को लोग जानना चाहते हैं। प्रशांत किशोर जितना करीब से नीतीश कुमार को जानते हैं, उतना ही करीब से लालू और उनके परिवार को भी पहचानते हैं। लिहाजा दोनों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। डेटा के माहिर प्रशांत किशोर के पास स्किल्ड लोगों की टीम है तो हवा-हवाई बातें काम नहीं आ रही। इन तमाम ‘पीकेगीरी’ के बावजूद चुनाव में तीन साल का वक्त है तो नीतीश कुमार उस आखिरी ‘किक’ की तलाश में हैं, जो सब पर भारी पड़ जाए। मगर इस बार मुकाबला टफ है।