पीएम मोदी की भक्ति को कौन नहीं जानता!माथे पर चंदन का तिलक। हाथों में रुद्राक्ष की माला। पूरे मन से पूजा-अर्चना में तल्लीन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आपने इस तरह कई बार देखा होगा। शिव में उनकी गहरी आस्था है। वह जब तब बाबा के दरबार में दिखते हैं। काशी विश्वनाथ, महाकाल से लेकर बैद्यनाथ धाम और केदारनाथ तक वह भोले का बार-बार आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने मंदिरों की शोभा बढ़ाने में पूरी ताकत झोंक दी। काशी विश्वनाथ और उज्जैन का महाकाल लोक कॉरिडोर इसका उदाहरण हैं। प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को एक बार फिर केदारनाथ पहुंचने वाले हैं। पीएम बनने के बाद छठी बार वह केदारनाथ पहुंचेंगे। उनसे पहले शायद ही कोई प्रधानमंत्री बाबा भंडारी के दरबार में इतनी बार गया हो। पीएम मोदी का मंदिरों में जाना एक बड़ा संकेत है। यह संकेत है नए और बदलते भारत का। इसके केंद्र में भारतीय संस्कृति है। इसके जरिये उन्होंने वो लकीर खींच दी है जिसका तोड़ शायद ही आज विरोधियों के पास है। उन्होंने साफ मैसेज दे दिया है कि नए भारत की नींव उसकी अपनी सांस्कृति धरोहरों पर पड़ेगी। इसके केंद्र में मंदिर हैं। हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दे पर आज भारतीय जनता पार्टी इतनी सफल दिख रही है तो इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंदिर प्रोजेक्टों के लिए काम करना बड़ी वजह है।
शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ पहुंचेंगे। उनकी यात्रा को लेकर केदारनाथ में जोरदार उत्साह है। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। केदारनाथ में अपने ढाई घंटे के कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी भगवान शिव के दर्शन करेंगे। इसके साथ ही गौरीकुंड-केदारनाथ रज्जू मार्ग परियोजना की आधारशिला भी रखेंगे। फिर प्रधानमंत्री केदारनाथ से बदरीनाथ जाएंगे। रात यहीं ठहरने के बाद बदरीनाथ के निकट सीमांत गांव माणा में वह ग्रामीणों और रक्षाबलों के सदस्यों से मुलाकात करेंगे।
मंदिरों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की पॉलिसी पिछली सरकारों से बिल्कुल अलग है। पिछली सरकारें मंदिर प्रोजेक्टों को लेकर अलग रही हैं। यह विचार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से नीचे आया। 1951 में नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में सरकार की सीधी भूमिका का विरोध किया था। वहीं, मोदी ने कई मंदिर प्रोजेक्टों को अपनी पॉलिसी के केंद्र में रखा। मसलन, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का 2021 में शुभारंभ किया। अगस्त 2020 में अयोध्या में रामजन्मभूमि का भूमि-पूजन किया।
मोदी की स्ट्रैटेजी थोड़ी अलग है। वह मंदिरों के जरिये पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते हैं। इसके लिए नए ट्रासंपोर्ट लिंक बनाए जा रहे हैं। हाई स्पीड बुलेट ट्रेन के जरिये दिल्ली से अयोध्या को जोड़ने की तैयारी है। दिल्ली-वाराणसी बुलेट ट्रेन का प्रस्ताव है। मथुरा और प्रयागरात को जोड़ा जा रहा है। नई स्वदेश दर्शन स्कीम के तहत 15 थीम आधारित सर्किट बनाए जा रहे हैं। इसमें रामायण सर्किट और बौद्ध सर्किट शामिल हैं। उदाहरण के लिए आईआरसीटीसी ने श्री रामायण एक्सप्रेस को लॉन्च किया है।
प्रधानमंत्री मोदी भारतीय संस्कृति की ग्लोबल ब्रांडिंग कर रहे हैं। उज्जैन, काशी और बैद्यनाथ धाम में जब वह भोले का जयघोष करते हैं तो हिंदुओं की आस्था को सीधा छू लेते हैं। देश में भगवान भोले के अनगिनत भक्त पीएम मोदी को अपने से जुड़ा हुआ देखने लगते हैं। वे पीएम की आस्था में अपनी आस्था को मिला हुआ पाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने शिव और मंदिरों को केंद्र में लाकर हर समीकरण को ध्वस्त कर दिया है। जब बात भगवान भोले और मंदिरों की आती है तो हिंदुओं में जातियों का फर्क मिटने लगता है। वे सभी एक छतरी के नीचे खड़े हो जाते हैं। 2014 से बीजेपी को हिंदुओं को एकसाथ लाने में इसने बड़ी भूमिका अदा की है।
उज्जैन, काशी से लेकर केदारनाथ तक मंदिर अब नए भारत की पहचान से जुड़ गए हैं। मंदिरों के जरिये पीएम मोदी युवाओं को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें पता है कि इसके लिए ऐसे बदलाव करने होंगे जो युवाओं को पसंद हों। मंदिर की आभा को बढ़ाना और उन्हें नया कलेवर देना इसका हिस्सा है। शिव और मंदिरों के मार्फत मोदी ने वो कदम बढ़ाया है जिसके पीछे आने के लिए विपक्ष के दूसरे दल भी मजबूर हैं। आज देश में इस तरह का माहौल बन चुका है कि हर नेता चुनाव से पहले मंदिरों में भोले के दर पर आशीर्वाद लेता हुआ दिखता है। इस ट्रेंड की अगर किसी ने सबसे मुखरता से अगुवाई की है तो वो पीएम मोदी ही हैं।