15 तारीक को नामांकन,18 को मतदान और 21 को मतगणना
भारत में हर 5 साल में भारत का महामहिम चुन्ने के लिए चुनाव होता है। इसी कड़ी में भारत के18वें राष्ट्रपति के चुनाव की तारिको का ऐलान होते ही पक्ष और विपक्ष ने अपनी कमर कस ली है। और दोनो ही अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहते है। एक तरफ जहां सत्तापक्ष अपने को पूरी तरह से मजबूत करने में लगा है वही विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव जीत कर सरकार को दबाव में लाना चाहता है।
वर्तमान भारत के 17वें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है।बीते सप्ताह को भारतीय निर्वाचन आयोग ने देश के 17वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया था। वही मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग के अनुसार 15 को नामांकन होगा,18 को मतदान और 21 को मतगणना होनी हैं। मतगणना के बाद जीत के नतीजे आएंगे और इस कड़ी को बरकार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नए राष्ट्रपति को 25 जुलाई को शपथ दिलाएंगे।
कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव?
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया प्रधानमंत्री या लोकसभा के सदस्यों की तुलना में अधिक जटिल प्रक्रिया है। भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है।जिसमे लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुडुचेरी सहित राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।संसद के केवल चुने हुए प्रतिनिधि ही इस चुनाव में मत देने योग्य होते है।संसद या विधान सभाओं के मनोनित सदस्य इलेक्टोरल कॉलेज के पात्र नहीं हैं और मतदान नहीं कर सकते हैं। मत डालने के लिए होती है एकल हस्तांतरणीय मतदान प्रणाली।
क्या है एकल हस्तांतरणीय मतदान प्रणाली?
भारत में राष्ट्रपति चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मतदान यानी सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली के जरिए मतदान होता है। इसमें राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा का एक सदस्य एक ही वोट कर सकता है। इलेक्टोरल कॉलेज में 4,896 विधायक हैं। इसमें 776 लोकसभा और राज्यसभा सदस्य और 4,120 विधायक शामिल होते हैं।हालांकि इस बार यह संख्या 4,809 होगी इसके पीछे वजह है कि जम्मू-कश्मीर में एक भी विधानसभा नहीं है जहां 87 विधायक हुआ करते थे।जम्मू-कश्मीर में विधानसभा न होने के कारण जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में संसद सदस्य के वोट का वैल्यू 708 से घटकर 700 हो सकती है।
कैसे डाले जाते है वोट।
राष्ट्रपति चुनाव का मतदान पैटर्न सिंगल ट्रांस्फ़ेरेबल वोट (Single transferable vote) के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधान (Proportional representation) की प्रणाली पर आधारित है। बैलेट पेपर पर चुनाव चिन्ह नहीं होता है। इसके बजाय, दो कॉलम हैं। पहले कॉलम में उम्मीदवारों का नाम है और दूसरे में आर्डर ऑफ़ प्रेफरेंस (order of preference) है। निर्वाचक मंडल का सदस्य प्रत्येक उम्मीदवार के विरुद्ध अपनी प्रेफरेंस अंकित करता है और उसके बाद मतों की गणना की जाती है।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करते वक्त विधायक और सांसद अपने बैलेट पेपर पर अपना चुनाव करते हैं और इसमें वो अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद और तीसरी पसंद बता देते हैं। सबसे पहले पहली पसंद के वोट गिने जाते हैं। अगर पहली पसंद का उम्मीदवार जीत के लिए जरूरी वेटेज हासिल कर लेता है तो उसकी जीत हो जाती है वहीं अगर ऐसा नहीं होता तो दूसरी और फिर तीसरी पसंद के वोटों को गिना जाता है। इस सिस्टम और चुनाव की प्रक्रिया के आधार पर भारत में 14 राष्ट्रपति हुए हैं। अब सभी को भारत के 18वें राष्ट्रपति के शपथ लेने का इंतजार है।
जनता करती है अप्रत्यक्ष मतदान ।
राष्ट्रपति चुनाव में देश की जनता प्रत्यक्ष रूप से मतदान नहीं करती है बल्कि जनता के द्वारा चुने गए सांसद और विधायक इस चुनाव में भाग लेते हैं। इन चुनावों में राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और विधायकों को वोट देने का अधिकार होता है, हालांकि, विधान पार्षदों और नामित व्यक्तियों को वोट करने का अधिकार नहीं होता।
क्या हैं राष्ट्रपति की शक्तियाँ व कार्य
भारत सरकार के समस्त शासन संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों निम्नवत हैं-
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है।प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनके विभागों का बँटवारा करता है। राष्ट्रपति राज्यपालो उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।निर्वाचन आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है।
संसद का अंग होने के कारण कानून बनाने की प्रक्रिया में राष्ट्रपति की भूमिका प्रमुख है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना कानून नहीं बन सकता। यदि संसद के दोनों सदनों में विधेयक पारित हो भी जाए फिर भी राष्ट्रपति एक बार हस्ताक्षर करने से मना कर सकता है।
विधेयक में बदलाव के सुझाव दे सकता है और एक बार विधेयक वापस लौटा सकता है, पर यदि संसद के दोनों सदन दोबारा उसी विधेयक को राष्ट्रपति के सुझावों के बिना अथवा सुझावों सहित पारित कर देते हैं, तो राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने होते हैं।
यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति हेतु भेजा जाता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है या पुनर्विचार के लिए वापस लौटा सकता है। मृत्युदण्ड अन्य दण्ड प्राप्त व्यक्तियों को राष्ट्रपति क्षमा कर सकता है या दण्ड को कुछ समय के लिए स्थगित एवं परिवर्तित कर सकता है।
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों
निम्नलिखित परिस्थितियों में राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है –
युद्ध, पाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में (राष्ट्रीय आपात)
राज्यों में संवैधानिक तंत्र विफल होने पर (राष्ट्रपति शासन)
वित्तीय सकट के समय (वित्तीय आपात)।
इन्ही कारणों से भारत में राष्ट्रपति का पद एक अहम् और सर्वोच्च पद है जो भारत एक संविधान को मजबूत करता है; इसे दुनिया के संविधानो में एक अलग स्थान दिलाता है। अब देखना है की भारत के अगले राष्ट्रपति कौन होंगे।