आँख संबंधी बीमारियों में चाहिये आराम, तो करे ये उपाय!

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सामान्य तौर पर तिंदुक हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा लाभदायी होता है! क्या आपने तिंदुक नाम पहले कभी सुना है?असल में तिंदुक नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा लेकिन तेंदू, गाब, गाभ नाम बहुत जाना पहचाना है। तेंदू एक प्रकार का फल होता है जो चीकू से भी मीठा होता है और आयुर्वेदिक गुणों का भरमार होता है। तेंदू के फल हल्के पीले रंग के होते हैं। शायद आप सोच रहे होंगे इस छोटे-से फल को बीमारियों के उपचार के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाता है, तो ये बात जानने से पहले इसके बारे में पहले जान लेते हैं।

तिंदुक क्या होता है?

तेंदू के पेड़ मध्यामाकार होते हैं।  इसके पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है। इसकी लकड़ी चिकनी तथा काले रंग की होती है। इसका उपयोग फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है। चरक-संहिता से उदर्द प्रशमन महाकषाय तथा सुश्रुत-संहिता के न्यग्रोध्रादि-गण में इसका वर्णन मिलता है।

यह 8-15 मी ऊँचा, मध्यमाकार, सघन शाखा-प्रशाखायुक्त सदाहरित वृक्ष होता है। इसकी प्रशाखाएँ अरोमिल तथा तने की छाल गहरे-भूरे अथवा लाल रंग के, हल्के खांचयुक्त होते हैं। इसके पत्ते सरल, एकांतर, 13.7-24 सेमी लम्बे एवं 5 सेमी चौड़े कुंठाग्र अथवा लगभग-लम्बाग्र चिकने तथा चमकीले होते हैं। इसके फूल एकलिंगी, छोटे, सफेद- पीले रंग के, सुगन्धित गुच्छों में होते हैं। इसके फल साधारणतया एकल, 2.5-5 सेमी व्यास (डाइमीटर) के, अण्डाकार-नुकीले,अर्धगोलाकार,अत्यन्त कषाय रस प्रधान कच्ची अवस्था में हल्के भूरे रंग के तथा पक्के अवस्था में पीले रंग के होते हैं। इसके फलों के भीतर चीकू (चीकू के फायदे) के समान मधुर तथा चिकना गूदा रहता है, जिसे खाया जाता है। बीज संख्या में 4-8, गोलाकार अथवा अण्डाकार तथा चमकीले होते हैं। यह मार्च-जून महीने में फलते-फूलते हैं।तेंदू स्वाद में थोड़ा कड़वा और प्रकृति से अम्लिय, गर्म और रूखा होता है।  तेंदू कफपित्त दूर करने वाला, संग्राही, लेखन, स्तम्भक, खाने में अरुचि उत्पन्न करने वाला, व्रण (अल्सर) में फायदेमंद होता है।यह प्रमेह या डायबिटीज, व्रण, रक्तदोष, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना), दाह या जलन, मेदोरोग (मोटापा), योनिदोष (योनिरोग) तथा पित्तदोष को ठीक करने वाला होता है।

पका तिंदुक फल मधुर, हजम करने में थोड़ा, देर से पचने वाला, कफ बढ़ाने वाला, पित्त कम करने वाला तथा प्रमेह यानि सुजाक रोग में हितकर होता है।

इसका  लकड़ी का सार पित्त संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है।

इसका कच्चे फल-स्निग्ध, थोड़े कड़वे, लेखन, लघु, मल को रोकने वाला, शीतल, रूखे, कब्ज दूर करने वाले, वातकारक तथा अरुचिकारक होते हैं।

तिंदुक फल एवं त्वचा स्तम्भक, दस्त को रोकने वाला, बुखार में उपकारी, जीवाणुरोधी, मुख व गले के रोग में फायदेमंद तथा घाव को जल्दी सुखाने में मदद करती है।

तेंदू के फायदे

आँख संबंधी बीमारियों में बहुत कुछ आता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में तेंदू से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। फल के रस का अंजन यानि काजल की तरह लगाने से आँख संबंधी रोगों में फायदा मिलता है।अगर सर्दी-खांसी या  किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर कान में दर्द होता है तो तेंदू से इस तरह से इलाज करने पर आराम मिलता है। तिंदुक, हरीतकी, लोध्र, मंजिष्ठा तथा आँवला के 1-3 ग्राम चूर्ण में मधु एवं कपित्थ रस मिलाकर छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान दर्द में लाभ होता है।अगर बार-बार मुँह में छाले हो रहे हैं तो तेंदू का घरेलू इलाज बहुत ही फायदेमंद साबित होगा। तिंदुक फल के जूस का गरारा करने से मुँह के छाले तथा गले का घाव भी जल्दी भरते हैं। इसके अलावा फलों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह के छालों दूर होते हैं।

अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो तेंदू से इसका इलाज किया जा सकता है। तिन्दुक छाल की गोलियां बनाकर चूसने से खाँसी से राहत मिल सकती है।अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो तेंदू का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।

तिन्दुक त्वचा के पेस्ट को गम्भारी पत्ते से लपेट कर पुटपाक-विधि से रस निकाल कर 5-10 मिली रस में मधु मिलाकर सेवन करने से अतिसार या दस्त में लाभ मिलता है।

10-20 मिली तिंदुक छाल काढ़े को पीने से पेचिश (प्रवाहिका), अतिसार व मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।

तेंदू  फल के गूदे को खिलाने से अतिसार में लाभ होता है।

1 ग्राम बीज चूर्ण का सेवन करने से अतिसार ठीक होता है।तेंदू के औषधीय गुण मूत्र मार्ग से पथरी निकालने में फायदेमंद होते हैं। तेंदू के पके हुए फल को खाने से मूत्रमार्ग की पथरी टूट-टूट कर निकल जाती है।

महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है। सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है। इससे राहत पाने में तेंदू का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। तेंदू के फल के रस  में जल मिलाकर योनि का प्रक्षालन (धोने) करने से श्वेत प्रदर (सफेद पानी) में लाभ होता है या तिन्दुक फलों का काढ़ा बनाकर योनि का प्रक्षालन करने से योनिस्राव कम होता है।लकवा के कष्ट से राहत दिलाने में तेंदू के औषधीय गुण बहुत काम आते हैं। लकवा के कारण यदि जिह्वा-स्तम्भ या जीभ हिल नहीं रहा है तथा बोलने की शक्ति अस्पष्ट हो गई है तो, तिन्दुक जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से तथा 1-2 ग्राम छाल चूर्ण में 1 ग्राम मरिच चूर्ण मिलाकर जिह्वा में घिसने से लाभ होता है।आजकल प्रदूषण के कारण चेहरे की रंगत खोने लगी है लेकिन तेंदू का इस्तेमाल करने से चेहरे पर अलग चमक आ जाती है। तिन्दुक रस से तिन्दुक फल को पीसकर लेप करने से त्वचा की रंगत दूर हो जाती है तथा मुख के रंग तथा कान्ति की वृद्धि होती है।

अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में तेंदू बहुत मदद करता है। 10-15 मिली तिंदुक छाल काढ़े में मधु मिलाकर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।

अगर किसी चोट के कारण या बीमारी के वजह से किसी अंग में हुए सूजन से परेशान है तो तेंदू के द्वारा किया गया घरेलू इलाज बहुत ही फायदेमंद होता है। तिंदुक की काष्ठ को घिसकर सूजन वाली जगह पर लगाने से सूजन कम होता है।