नोएडा पुलिस ने फ़र्ज़ी मार्कशीट और सर्टिफ़िकेट बनाने वाले आरोपियों को दबोचा यह आरोपी हज़ारों रुपये कमाने के चलते नक़ली मार्कशीट, यूनिवर्सिटी की फ़र्ज़ी डिग्री और कई तरह के सर्टिफ़िकेट बनाया करते थे जिसका पर्दाफ़ाश हो चुका है आरोपियों द्वारा बताया गया है कि वह ऐसे व्यक्तियों के सर्टिफ़िकेट बनाते थे जो काम से बेरोज़गार थे साथ ही परीक्षा में फ़ेल और नौकरी की समय सीमा को पार कर चुके थे. आरोपियों को पकड़ने के बाद उनके पास से कई चीज़ें बरामद की गई है जैसे कि वह अलग–अलग राज्यों के और संस्थानों के फ़र्ज़ी मार्कशीट बनाया करते थे इतना ही नहीं यहाँ हर तरह के जाली सर्टिफ़िकेट बनाए जाते थे चाहे वह माइग्रेशन सर्टिफ़िकेट, करेक्टर सर्टिफ़िकेट हो या फिर एडमिट कार्ड बनाने वाले प्रिंटर और मशीन. सैंट्रल नोएडा के एडिशनल (DCP) डिसीपी राजीव दीक्षित द्वारा जानकारी मिली है कि ऐसे अपराधियों के ख़िलाफ़ एक अभियान चलाया जा रहा था जिसके तहत पुलिस ऐसे आरोपियों की तलाश में जुटी हुई थी.
कोतवाली सेक्टर-63 पुलिस की टीम ने शनिवार को बहलोलपुर अंडरपास के पास से तीनों को गिरफ्तार किया है. नोएडा सेंट्रल जोनके डीसीपी ने बताया कि आरोपी अलग–अलग राज्यों के बोर्ड व इंटरमीडिएट काउंसिल के फर्जी दस्तावेज बनाकर बेच रहे थे. पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि कम समय में अधिक कमाई करने के चक्कर में गिरोह बनाकर वारदात कर रहे थे. पुलिस द्वारा तीन अपराधियों को पकड़ा गया है. जिसमें से एक आरोपी गौतम बुद्ध नगर का रहने वाला है पुलिस ने गिरोह के बीटेक पास सरगना बहलोलपुर निवासी थानचंद शर्मा समेत गढ़ी चौखंडी निवासी पुष्पेंद्र यादव और मथुरा निवासी गोविंद अग्रवाल को गिरफ्तार किया है. इन आरोपियों ने क़रीब 150 फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाकर लोगों से हज़ारों रुपये कमाए थे. पुलिस द्वारा 66 सर्टिफ़िकेट बरामद की गई है संख्या के मुताबिक़ 30 फर्जी मार्कशीट, आठ फर्जी एडमिट कार्ड, 23 फर्जी स्थानांतरण प्रमाणपत्र (टी.सी), 13 फर्जी प्रमाण पत्र, सात फर्जी चरित्र प्रमाण पत्र, आठ फर्जी मुहर और दो कार बरामद की है.
आरोपी सर्टिफ़िकेट अपने ग्राहकों के इच्छा अनुसार बनाया करता था जिसके बदले हज़ारों रुपया लिया करता था. दस्तावेज़ में हर चीज़ को बदला जाता था. जैसे की आयु, अंक, प्रतिशत और ग्रेड. ग्राहक ऐसी मशीनें और सर्टिफ़िकेट बनाने के बाद कई जगह इस्तेमाल करते थे चाहे वह नौकरी पाना हो या फिर यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना हो. हर ग्राहक के लिए सर्टिफ़िकेट और मार्कशीट बनाने के रेट अलग-अलग हुआ करते थे. अगर कोई पैसे वाला है तो उसे ज़्यादा पैसे लिए जाते थे और अगर कोई थोड़ा ग़रीब है तो उससे थोड़े कम पैसे लिए जाते थे. इस मामले में गोविंद अग्रवाल पहले भी पकड़ा जा चुका था लेकिन जेल से छूटने के बाद उसने फिर से यह कार्य जारी रखा.
अब आप सोच रहे होंगे इन आरोपियों को ग्राहक कैसे मिलते थे तो आपको बता दें इन तीन आरोपियों में से एक आरोपी बीटेक (BTech) पास सरगना कोचिंग सेंटर चलाता था जिसकी मदद से वह ऐसे छात्र-छात्राओं को खोजता था जो नक़ली मार्कशीट और सर्टिफ़िकेट बनवाना चाहते थे. गिरोह में शामिल गोविंद बी.ए. (BA) और पुष्पेंद्र 12वीं कक्षा पास है. वहीं ग्राहकों को तलाशने के लिए आरोपी सोशल नेटवर्किंग साइट की भी मदद लेते थे. पुलिस द्वारा जब आरोपी से पूछा गया दो आरोपियों ने बताया उन्होंने यह काम कोविड-19 लॉकडाउन के समय से शुरू किया था क्योंकि वह बेरोज़गार थे. पुलिस के पास उनके मोबाइल और लैपटॉप समेत कई चीज़ें बरामद की गई है जिसकी जाँच करी जा रही है ऐसा मुमकिन है कि जाँच के दौरान और भी चीज़ों का पर्दाफ़ाश होगा.
पैसे कमाने के चलते चल रहा है फ़र्ज़ी कार्य मातापिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते हैं कोचिंग सेंटर परंतु कोचिंग वाले देते हैं आइडिया नक़ली मार्कशीट और सर्टिफ़िकेट बनाने का आईडिया. ऐसे आरोपियों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि वह ऐसा है तुम्हारा करने के बारे में सोच न सके. भारतीय दंड संहिता में कोर्ट (Court) की कार्यवाही से जुड़े कई तरह के कानूनी प्रावधान मौजूद हैं. जिनमें सबूतों और जांच के बारे में भी बताया गया है. इसी तरह से आई.पी.सी की धारा 197 (IPC Section 197) में जाली प्रमाण–पत्र जारी करने या उस पर साइन करने को लेकर प्रावधान किया गया है. ऐसा करने वाले दोषी को किसी भांति के कारावास से दंडित किया जाता है साथ ही उस पर जुर्माना भी लगादिया जाएगा. या फिर उसे दोनों तरह से दंडित किया जाएगा.