देर आए दुरुस्त आए की कहावत हम सब ने सुनी ही है। वैसा ही कुछ वाक्या अभी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से आया है। मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है की अब से जहां भी पेड़ की कटाई की जाएगी वही पर ( उसके आस पास) पौधे का रोपण होना जरूरी है।
मंत्रालय ने ये भी साफ किया की अगर किसी परियोजना को लेकर भी यदि पेड़ों की कटाई की जा रही है तो उन्हे काटने पर भरपाई के लिए उसके आसपास ही अच्छी गुणवत्ता की जमीन पर पौधारोपण किया जाना जरूरी है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी (एफएसी) ने राज्यों को भी ऐसा कदम उठाने को कहा ताकि पेड़ो को और जीवन को बचाया जा सके। वन संरक्षण कानून के तहत जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, पेड़ों की कटाई होने पर उसकी भरपाई के लिए संबंधित एजेंसी के खर्च पर काम से कम उतनी ही जमीन पर पौधारोपण तो होना ही चाहिए जितनी जमीन पर पेड़ो को काटा गया है।
पेड़ो की कटाई के बाद दोगुना पड़े का करना होगा पौधारोपण ।
मंत्रालय ने साफ साफ बता दिया की वह पर्यावरण को लेकर अब कोई कोताही नहीं बरतना चाहते इसलिए मंत्रालय ने कहा यदि केंद्र सरकार की या किसी पीएसयू की कोई परियोजना है, तो पौधारोपण के लिए कम गुणवत्ता की जमीन को भी चुना जा सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में दोगुनी जमीन पर पौधारोपण करना होगा जिसे काटे ये पेड़ो की क्षतिपूर्ति की जा सके। एफ ए सी ने पिछले दिनों अपनी जांच में पाया था कि जब भी कोई ऐसी परियोजना बनती है तो इसमें वन्य नियमो की अनदेखी की जा जाती है पर इस पर भी अब मंत्रालय सख्त रुख दिखाता नजर आ रहा है।
राज्यों को निभानी होगी अहम जिम्मेदारी।
मंत्रालय ने जारी निर्देश स्पष्ट रूप से राज्यों को कहा हैं कि अगर जहां से पेड़ो को काटा जाएगा उसके आस पास ही पौधारोपण के लिए जमीन के आसपास ही होनी चाहिए। पर इस पर कुछ रियात देते हुए मंत्रालय ने कहा की अगर उस क्षेत्र में जमीन न मिले तो नजदीकी जिले में जमीन ली जा सकती है। कमेटी ने कहा कि इस मामले में राज्यों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
एफ ए सी ने कहा कि अगर कोई परियोजना के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली वन की जमीन दी जाती है और उसके अगर उसकी जगह पर संबंधित कंपनियां या एजेंसियां पौधारोपण के लिए कम गुणवत्ता वाली जमीन दे देती हैं। तो उनको जमीन दो गुनी देनी पड़ेगी और ऊपर पौधा रोपण भी करना होगा। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा की जमीन कहीं दूर न हो।
करनी पड़ेगी नुकसान की भरपाई।
एफ ए सी ने साफ किया की अगर कोई एजेंसी नियमो की अनदेखी करती है। तो उसे उसका खामियाजा भुगतना होगा।
जमीन ऐसी जगह पर और ऐसी गुणवत्ता वाली होनी चाहिए।
आइए जानते है क्या है पूरे भारत में पेड़ो के कटने पर लगाने का आंकड़ा।
वर्ष 2016-2019 के बीच देश भर में पेड़ों की कटाई लगभग दोगुनी हो गई है, यह बात लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया था।
वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2018-19 की अवधि के बीच कुल 76,72,337 पेड़ों को काटा गया, जिसमें वित्तीय वर्ष 2016-17 में 17,31,957 पेड़ों को ‘पूर्ण आवश्यकता’ का हवाला देते हुए काटा गया, जो वर्ष 2018-2019 में बढ़कर 30,36,642 हो गया।
केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्कालीन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने एक जवाब में कहा गया, “पेड़ों को तभी हटाया जाता है जब यह बिल्कुल जरूरी हो। एक सामान्य नीति के रूप में, हटाने के लिए स्वीकृत पेड़ों की संख्या से अधिक पेड़ लगाए जाते हैं। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत।”
तेलंगाना राष्ट्र समिति के लोकसभा सांसद बीबी पाटिल के एक सवाल के जवाब में जवाब में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में 76,72,337 पेड़ों को हटाया गया और 7,87,00,000 से अधिक पेड़ों को प्रतिपूरक वनीकरण के तहत निर्धारित किया गया है।
उत्तराखंड में इसी अवधि में कुल 1,05,461 पेड़ काटे गए, जिसमें वित्तीय वर्ष 2017-18 में अधिकतम 69623 पेड़ काटे गए।
तेलंगाना में पेड़ों की सबसे अधिक संख्या 12,12,753 हो गई, जबकि नागालैंड, पांडिचेरी, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, जम्मू और कश्मीर, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली में एक भी पेड़ नहीं काटा गया।
महाराष्ट्र में भी 10,73,484 के साथ सबसे अधिक पेड़ काटे गए, इसके बाद मध्य प्रदेश (9,54,767), छत्तीसगढ़ (6,65,132), उड़ीसा (6,58,465), आंध्र प्रदेश (4,95,269), झारखंड का स्थान रहा। (4,34,584), अरुणाचल प्रदेश (3,25,260), पंजाब (2,28,951), राजस्थान (2,28,580), उत्तर प्रदेश (2,055,51), पश्चिम बंगाल (1,76,685), हरियाणा (1,72,194) , गुजरात (1,65,439), हिमाचल प्रदेश (1,61,677), मणिपुर (1,23,888), असम (1,18,895), बिहार (91,850), कर्नाटक (40,776), अंडमान और निकोबार (12,467), सिक्किम (8,630) ), गोवा (3765), दिल्ली (3236), तमिलनाडु (2025), मिजोरम (748),
केरल (725), त्रिपुरा (583) और मेघालय (317)।
विशेष रूप से, ISFR-2019 में बताए गए वन और वृक्षों के आवरण में ISFR 2015 के आकलन की तुलना में 13,209 वर्ग कि.मी. की वृद्धि हुई है।