क्या बीजेपी ने कांग्रेस को कर दिया है निहत्था?

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वर्तमान में बीजेपी ने कांग्रेस को निहत्था कर दिया है! अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विपक्षी गठबंधन इंडिया की ओर से एक भी नेता शामिल नहीं हुए। निमंत्रण मिलने के बाद भी कांग्रेस, सपा, जेडी यू, आरजेडी, एनसीपी, शिवसेना और टीएमसी ने समारोह का बहिष्कार किया। डीएमके नेता स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने राम मंदिर को लेकर विवादित बयान भी दिए। तमिलनाडु में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लाइव टेलिकास्ट पर विवाद भी हुआ। मगर 22 जनवरी को पूरे देश में खासकर हिंदी पट्टी में जो माहौल बना है, उसकी तुलना राम लहर से की जा रही है। राम नाम का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। सोशल मीडिया में रामलला के विग्रह ट्रेंड कर रहे हैं। गांव-गलियों में अयोध्या और राम छाए हुए हैं। माना जा रहा है कि राम लहर का असर अप्रैल में होने लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा। जाति के सहारे लोकसभा चुनाव की नैया पार करने की प्लानिंग कर रहे विपक्षी गठबंधन को अब राम लहर पार्ट-2 से जूझना होगा। 1991 में भी राम लहर राज्यों में जाति की राजनीति को छका चुका है। कम से कम हिंदी पट्टी में राम लहर की अनदेखी नहीं की जा सकती है, जहां 290 लोकसभा सीटें हैं। 22 जनवरी को जब पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे थे, तब विपक्ष के अधिकतर नेता खामोश थे। इंडिया गठबंधन के तीन नेता इस धार्मिक उत्सव के मौके पर एक्टिव दिखे। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ सुंदरकांड का पाठ किया। ममता बनर्जी कोलकाता में सभी धर्मगुरुओं के साथ सद्भाव यात्रा निकाली। उद्धव ठाकरे नासिक के उस राम मंदिर में गए, जहां पीएम मोदी अपने 11 दिवसीय व्रत के शुरुआत में पहुंचे थे। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी असम में न्याय यात्रा पर थे। शंकरदेव मंदिर में एंट्री नहीं मिलने पर वह हैबोरगांव में धरने पर बैठे रहे। अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, लालू यादव और शरद पवार जैसे दिग्गजों ने क्या किया, इसकी डिटेल मीडिया में नहीं आई। एक्सपर्ट मानते हैं कि राम मंदिर जैसे आयोजनों से दूरी बनाकर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने चुनाव से पहले बड़ी चूक कर दी है, जिसकी भरपाई करना मुश्किल है। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, टीडीपी प्रमुख एन. चंद्राबाबू नायडू और जनसेना के नेता पवन कल्याण समेत आए फिल्मी सितारे, क्रिकेटर समेत तमाम सेलिब्रेटी मौजूद रहे। अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत समेत सभी फिल्म स्टार घंटों राम मंदिर प्रांगण में बैठे रहे, जबकि ये सारे अपने-अपने क्षेत्रों में व्यस्त माने जाते हैं। आम दिनों में इनकी झलक के लिए लोग तरस जाते हैं। मीडिया से बातचीत में इन सेलिब्रेटिज इसे सौभाग्य का अवसर माना। ऐसे में विपक्षी दलों की नेताओं की गैरमौजूदगी पर भी खूब चर्चा हुई। लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी राम मंदिर का क्रेडिट लेगी तो विपक्ष की गैरहाजिरी को मुद्दा बनाएगी, यह भी तय है।

नवंबर-दिसंबर में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की गारंटी का जादू चला। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने नरेंद्र मोदी की गारंटी को और मजबूत दिया है। इससे पहले नरेंद्र मोदी की अपील पर कोरोना के दौरान लोगों ने थालियां बजाई थीं। दीये भी जलाए थे। इसकी काफी आलोचना भी हुई, मगर राम मंदिर के नाम पर फिर लोगों ने सोमवार शाम को दिवाली मनाई। इसके साथ ही 2024 में मंडल बनाम कमंडल करने की विपक्ष के प्लान को भी बड़ा झटका लगा है। इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ही कांग्रेस, जेडी यू और आरजेडी जैसे राजनीतिक दल जातीय जनगणना को तुरुप का इक्का मान रहे थे। बिहार में नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने के बाद ओबीसी आरक्षण की सीमा भी बढ़ा दी। कांग्रेस शासित राज्यों में भी राहुल गांधी ने जातीय जनगणना कराने का वादा किया। अब राम लहर पार्ट-2 में जाति वाला दांव कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। जिन युवाओं को 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा, राम मंदिर आंदोलन और 1992 में बाबरी विध्वंस को जानने का मौका नहीं मिला, वे नए वोटर राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के साक्षी बने। इससे उलट इन युवाओं को मंडल कमिशन लागू होने के बाद हुए आरक्षण आंदोलन की भनक तक नहीं है।

1989 के भारतीय आम चुनाव में बीजेपी को 85 सीटें मिली थीं। उसका वोट प्रतिशत 7.74 प्रतिशत से बढ़कर 11.36 फीसदी हो गया। वी पी सिंह की सरकार बनी। बीजेपी ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया। 1990 में वी पी सिंह ने मंडल कमिशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा कर दी। सारे देश में आरक्षण के समर्थन और विरोध में आंदोलन शुरू हो गया। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 26 अगस्त, 1990 को बैठक बुलाई और राम मंदिर आंदोलन को तेज करने का फैसला किया। 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। बिहार में लालू यादव की सरकार ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। फिर समाजवादी नेता चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से चार महीने की सरकार चलाई। मई-जून 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 120 सीटें जीतीं और उसे कुल 20.07 फीसदी वोट मिले। मंडल कमिशन लागू करने वाले जनता दल 59 सीटों पर सिमट गई। जनता दल का वोट प्रतिशत 17.79 से खिसककर 11.73 प्रतिशत हो गया। 20 मई 1991 को पहले चरण की वोटिंग हुई। 21 मई 1991 को राजीव गांधी की श्रीपेरम्बदूर में हत्या हो गई और कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर चल पड़ी। अगर राजीव गांधी की हत्या नहीं हुई होती तो लोकसभा चुनाव के नतीजे अलग ही होते।