Thursday, September 19, 2024
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क्या बीजेपी ने वरुण गांधी को पार्टी से कर दिया है दूर?

वर्तमान में बीजेपी ने वरुण गांधी को पार्टी से दूर कर दिया है! उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तेज हो गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची रविवार को जारी की। इसमें पीलीभीत लोकसभा सीट से यूपी सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद का नाम आया। जितिन प्रसाद यूपी के काद्यावर ब्राह्मण नेताओं में से एक माने जाते हैं। उन्हें वरुण गांधी की सीट से चुनावी मैदान में उतर कर भारतीय जनता पार्टी ने एक तीर से कई शिकार कर दिए हैं। दरअसल, पिछले काफी समय से वरुण गांधी भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को लेकर सवाल खड़े कर रहे थे। पार्टी लाइन से बाहर जाकर उन्होंने कई मुद्दों पर केंद्र की नरेंद्र मोदी और यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरा। खामियाजा टिकट कटने के रूप में उन्हें भुगतना पड़ा। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कुछ इसी प्रकार की स्थिति अभिनेता से राजनेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने भारतीय जनता पार्टी के समक्ष खड़ी की थी। पटना साहिब लोकसभा सीट से शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काटकर भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतार दिया था। बाद में शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस से होते हुए तृणमूल कांग्रेस तक पहुंचे। आसनसोल से उप चुनाव लड़ा और लोकसभा तक का सफर तय किया। वरुण की राह भाजपा ने अपने निर्णय से मुश्किल कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने बेटे का टिकट काट दिया। वहीं, मां का टिकट फाइनल कर दिया है। दरअसल, मेनका गांधी ही वरुण को चुनावी राजनीति में लेकर आई थीं। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पीलीभीत सीट बेटे के लिए खाली कर दी। वहां से वरुण पहली बार चुनावी मैदान में उतरे। इससे पहले 1989 से लेकर 2004 तक मेनका पांच बार जीत दर्ज कर चुकी थी। परंपरागत सीट से जीत दिलाने में मेनका कामयाब हो गईं। 2009 में उन्होंने आंवला सीट से चुनाव लड़ा और कांटे के मुकाबले में जीत दर्ज करने में सफल हुईं। 2014 में प्रदेश में मोदी लहर चल रही थी। इस बार सीट बंटवारे में उनकी नहीं चली। हालांकि, एक बार फिर मेनका पीलीभीत से चुनावी मैदान में उतरीं। वहीं, वरुण सुल्तानपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए गए। दोनों सीट भाजपा के पाले में आई। 2019 के लोकसभा चुनाव में वरुण का टिकट कटने की चर्चा थी। लेकिन, गांधी परिवार के चेहरे को बनाए रखने के लिए भाजपा ने मां- बेटे के सीट में बदलाव कर दिया। मेनका सुल्तानपुर से चुनावी मैदान में उतरीं। वहीं, वरुण पीलीभीत से चुनावी मैदान में उतारे गए। दोनों सीटों से जीत दर्ज करने में दोनों कामयाब रहे। हालांकि, इसके बाद से लगातार वरुण गांधी पार्टी पर हमलावर हो गए। इस कारण भाजपा ने मेनका का तो टिकट बरकरार रखा। वरुण गांधी अलग- थलग कर दिए गए।

वरुण गांधी के राजनीतिक महत्वाकांक्षा काफी बड़ी रही है। लोकसभा चुनाव 2009 से पहले वरुण अपनी मां के लिए पीलीभीत में प्रचार अभियान का जिम्मा संभालते रहे थे। वह अपने फायरब्रांड बयानों के जरिए भारतीय जनता पार्टी में काफी कम समय में खूब पॉपुलर हो गए। उनके हिंदूवादी बयानों ने उन्हें पार्टी में लगातार आगे बढ़ाया। 2009 में पीलीभीत से उम्मीदवारी पेश करने और सांसद बनने के बाद वरुण लगातार अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे। वरुण गांधी ने केंद्र से लेकर यूपी की राजनीति तक अपनी दखल रखी। वे राहुल गांधी और अखिलेश यादव पर खूब हमलावर रहे थे। इसी कारण उन्हें युवा नेताओं में काफी आगे गिना जाता था। पीएम नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले वरुण गांधी को संगठन की बड़ी जिम्मेदारी दी गई। उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के साथ पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया। वरुण गांधी ने पार्टी के संगठनात्मक कार्य में रुचि नहीं ली। वरुण के साथ बंगाल के सह प्रभारी बनाए गए सिद्धार्थनाथ सिंह खूब सक्रिय रहे और पार्टी में उनकी छवि बड़ी होती गई। वहीं वरुण गांधी केवल अपने बयानों को लेकर ही लोकसभा चुनाव 2014 में अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।

भाजपा के लिए वरुण गांधी ने वर्ष 2026 में पहली बार परेशानी खड़ी कर दी। वरुण ने पार्टी के भीतर पोस्टर वॉर जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी। दरअसल, 2016 में प्रयागराज में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसी दौरान पूरे शहर में वरुण गांधी का चेहरा चमकाने वाले पोस्टर लगाए गए। पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ बड़े- बड़े पोस्टरों में केवल वरुण नजर आ रहे थे। माना जा रहा था कि यूपी चुनाव 2017 से पहले वरुण खुद को भाजपा के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश किए जाने की कोशिश में थे। इसे भाजपा कैडर पॉलिटिक्स के खिलाफ माना गया। यूपी चुनाव को लेकर इन पोस्टरों में ‘न अपराध, न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार’ का नारा दिया गया। इसे सीएम फेस के रूप में खुद को पेश किए जाने के तौर पर देखा गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट से उतरे वरुण पर नारा लगा था, सुल्तानपुर को मिला नया सुल्तान। इस नारे को वरुण 2017 के चुनाव से पहले सीरियसली लेते दिखे। भाजपा नेतृत्व ने उन्हें अपने लोकसभा सीट तक राजनीतिक गतिविधियों को सीमित रखने को कहा था। लेकिन, वरुण ने अपना प्रभाव बढ़ाने का फैसला अपने ही स्तर पर ले लिया।वरुण गांधी ने वर्ष 2016 में आवास योजना की शुरुआत की। 

यहां से उन्होंने अपने कट्‌टर हिंदुत्व और फायरब्रांड की छवि को बदलने का प्रयास किया। उन्होंने अपने सांसद निधि से गरीबों, मुसलमानों और पिछड़ी जातियों के घरों का निर्माण कराया। अपने स्तर पर निजी तौर पर भी पैसे खर्च किए। इस दौरान उनका एक बयान खूब चर्चा में आया था। वरुण ने कहा था कि मैं एक आशावादी व्यक्ति हूं। मैं उन चीजों को करने में विश्वास करता हूं जो लोगों की मदद कर सकती हैं। जनता पुराने राजनीतिक तरीकों से तंग आ चुकी है। आज के युवा केवल बयानबाजी की जगह रिजल्ट पर विश्वास करते हैं। इसे केंद्र सरकार पर हमले के तौर पर देखा गया। बाद में यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार बनी। इसके बाद गाहे- बगाहे वे यूपी सरकार की योजनाओं को लेकर सीएम योगी को घेरते रहे।

कोरोना काल में सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से नाइट कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया गया। इसका वरुण ने विरोध किया था। उन्होंन कहा था कि दिन में रैलियों के लिए लाखों लोगों को इकट्ठा करने के बाद रात में कर्फ्यू लगाना आम आदमी के साथ खिलवाड़ है। कृषि कानूनों को लेकर वे केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर रहे थे। इसके अलावा अजय मिश्र टेनी को भी वे किसानों पर वाहन चलाए जाने के मामले में घेरते दिखे। इसके बाद भाजपा ने मेनका को 80 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया था। अमेठी में संजय गांधी अस्पताल के लाइसेंस को सस्पेंड किए जाने के मामले में भी वरुण ने योगी सरकार को घेरा था।

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