वर्तमान में बिहार में बीजेपी को झटका लग चुका है! अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में एनडीए की राह बिहार में आसान नहीं होगी। कोई चुनावी कौशल ऐन वक्त पर करिश्मा कर दे तो वह अलग बात है। महागठबंधन 2015 के विधानसभा चुनाव में अपना करिश्मा दिखा चुका है। तब महागठबंधन में तीन ही दल- आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस थे। अब तो इसके साथ सीपीआई, सीपीएम और माले जैसे वाम दल के अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी है। यानी पहले से महागठबंधन का दायरा और ताकत दोनों बढ़े हैं। अगर 2015 के विधानसभा चुनाव को आधार मानें तो ताकत के मामले में महागठबंधन एनडीए पर भारी पड़ता साफ-साफ दिख रहा है। तब महागठबंधन के हिस्से में लगभग 42 प्रतिशत वोट पड़े थे। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में बीजेपी, लोजपा, हम और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी एक साथ थे। एनडीए को 34 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी एनडीए की 4 पार्टियां एक तरफ थीं तो दूसरी ओर महागठबंधन में तीन ही पार्टियां थीं। इस बार आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस के अलावा तीन वाम दल और जीतन राम मांझी की पार्टी हम महागठबंधन में शामिल हैं। यानी महागठबंधन का यह बिहार में विस्तृत स्वरूप है। इसका अर्थ यह हुआ कि महागठबंधन के वोट प्रतिशत में इस बार बढ़ोतरी न भी हो तो घटने की गुंजाइश नहीं दिखती है।
2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने सरकार बना कर अपनी ताकत का एहसास एनडीए को करा दिया था। आरजेडी ने 80 सीटें जीतीं तो जेडीयू ने 71 सीटों पर कामयाबी हासिल की। कांग्रेस ने भी महागठबंधन के इन दलों के सहयोग से वर्षों बाद 27 सीटें जीती थीं। एनडीए के खाते में 58 सीटें आई थीं। इसमें बीजेपी ने अकेले 53 सीटें जीतीं तो एलजेपी और आरएलएसपी को दो-दो और हम को एक सीट से संतोष करना पड़ा। साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, हम और वीआईपी थे तो महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस के अलावा वाम दल भी शामिल थे। एनडीए को 125 सीटें मिली थीं, जिनमें जेडीयू को 43 और बीजेपी को 75 सीटें आई थीं। हम और वीआईपी को 4-4 सीटें आई थीं। यानी एनडीए को 125 सीटें मिली थीं। महागठबंधन में आरजेडी को अकेले 75 सीटें मिली थीं। कांग्रेस भी 19 सीटों पर जीती थी। तीनों वामदलों ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की। महज 15 सीटों से महागठबंधन सत्ता से दूर रह गया।
अब सवाल उठता है कि जब महागठबंधन विधानसभा चुनाव में भारी पड़ता है तो लोकसभा चुनाव में उसकी ताकत कहां गायब हो जाती है। सच यह है कि एक दशक में तीसरी बार लोकसभा का चुनाव होना है। इस दौरान पहली बार 2014 में और दूसरी बार 2019 में लोकसभा के चुनाव हुए। 18वीं लोकसभा का चुनाव 2024 में होना है। कांग्रेस के अलावा वाम दल भी शामिल थे। एनडीए को 125 सीटें मिली थीं, जिनमें जेडीयू को 43 और बीजेपी को 75 सीटें आई थीं। हम और वीआईपी को 4-4 सीटें आई थीं। यानी एनडीए को 125 सीटें मिली थीं। महागठबंधन में आरजेडी को अकेले 75 सीटें मिली थीं। कांग्रेस भी 19 सीटों पर जीती थी। तीनों वामदलों ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की। महज 15 सीटों से महागठबंधन सत्ता से दूर रह गया।साल 2014 में नीतीश ने बीजेपी से दूरी बना ली थी। सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। नतीजतन विपक्ष के वोट विभाजित हो गए और एनडीए ने बाजी मार ली। बीजेपी 30 सीटों पर लड़ी, 22 पर जीत मिली। आरएलएसपी ने तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे और सभी जीत गए। एलजेपी ने 7 सीटों पर लड़ कर 6 सीटें जीत लीं। ठीक इसके उलट जेडीयू ने 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, पर जीत 2 सीटों पर ही मिली। आरजेडी 27 सीटों पर लड़ा और 4 सीटें जीतीं। कांग्रेस ने 12 पर कैंडिडेट उतारे, लेकिन जीत 2 ही सीटों पर मिली।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम देख कर विपक्षी दलों को एहसास हुआ कि अकेले पार पाना मुश्किल है। फिर महागठबंधन की नींव पड़ी। जेडीयू, कांग्रेस और आरजेडी को लेकर बने महागठबंधन ने 2015 के विधानसभा चुनाव में कमाल कर दिया। एनडीए सत्ता से बाहर हो गया। महागठबंधन ने नीतीश कुमार को ही सीएम बनाया। 2017 में महागठबंधन से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू अलग हो गई। साल 2019 में लोकसभा चुनाव में एनडीए ने महागठबंधन का सूपड़ा साफ कर दिया। आरजेडी शून्य पर आउट हो गया तो कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा। एनडीए के खाते में कुल 40 सीटों में 39 चली गईं। बीजेपी ने 17 सीटें जीतीं तो नीतीश कुमार ने 16। एलजेपी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की।