वर्तमान में उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी पाना एक सपना हो गया है! युवा सरकारी नौकरी के लिए घर से दूर शहर में रहकर तैयारी करते हैं और परीक्षा देते हैं, लेकिन जब पेपर लीक होता तो उनको बड़ा धक्का लगता है। वहीं, जब कोर्ट में मामला विचाराधीन होता है तो इंतजार में कई युवा ओवर एज हो जाते हैं। यह हाल किसी एक सरकार में नहीं रहा है। ये हर सरकार में रहा है। फिर चाहे सरकार मायावती की रही हो, अखिलेश यादव की रही हो या फिर योगी आदित्यनाथ की सरकार रही हो। सरकारी नौकरी का पेपर लीक होना और धांधली का आरोप लगाकर भर्ती पर रोक लगाना नई बात नहीं है। कई मामले अभी भी कोर्ट में चल रहे हैं। वहीं, युवा ओवर एज हो रहे हैं। पेपर लीक होता है। परीक्षा रद्द कर दी जाती है, लेकिन न दोषियों पर सरकारें सख्त कार्रवाई करती हैं और न पेपर लीक को रोक पाती हैं। 2005-06 में तत्कालीन सपा सरकार में करीब 22 हजार यूपी पुलिस सिपाही भर्ती हुई थी। जैसे ही सरकार बदली और बसपा की सरकार आई तो इसमें घपला बताकर सिपाहियों की सेवाएं खत्म कर दीं।दिसंबर, 2018 में दूसरे चरण के 69 हजार पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया। पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलाव और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा की कि भर्ती के हर चरण को आरोपों और अदालतों के कठघरे से गुजरना पड़ा। 67,000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद अब भी विभाग की गले की हड्डी बना हुआ है। बसपा सरकार के इस फैसले को सिपाहियों ने हाई कोर्ट में चुनौती। लंबी लड़ाई के बाद 2009 में हाई कोर्ट ने बसपा सरकार में बर्खास्त सभी सिपाहियों को बहाल कर दिया था। अब सभी सिपाही यूपी के विभिन्न जिलों में तैनात है और अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।
बसपा के शासन काल में यूपी पुलिस सब इंस्पेक्टर के पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। 4010 पदों पर भर्ती होनी थी, लेकिन 2012 में सपा सरकार आते ही भर्ती प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाते हुए इस पर रोक लगा दी गई। जिस समय सपा सरकार ने रोक लगाई थी, उस समय कई ट्रेनिंग कर रहे थे। अखिलेश यादव सरकार द्वारा शिक्षामित्रों के समायोजन को कोर्ट ने रद्द कर दिया था। साथ ही कोर्ट ने खाली हुए एक लाख 26 हजार पदों पर भर्ती का आदेश दिया था। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में यूपी के 1.37 लाख शिक्षामित्रों की सहायक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया था और इन पदों पर भर्ती के निर्देश दिए थे। सरकार ने दो चरणों में इन पदों पर भर्ती करवाने का फैसला किया। पहले चरण में 68,500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई। दिसंबर, 2018 में दूसरे चरण के 69 हजार पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया। पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलाव और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा की कि भर्ती के हर चरण को आरोपों और अदालतों के कठघरे से गुजरना पड़ा। 67,000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद अब भी विभाग की गले की हड्डी बना हुआ है।
योगी सरकार की दूसरे शासनकाल में 60 हजार से ज्यादा यूपी पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हो गया है। अभ्यर्थियों ने आंदोलन किया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन सपा सरकार में करीब 22 हजार यूपी पुलिस सिपाही भर्ती हुई थी। जैसे ही सरकार बदली और बसपा की सरकार आई तो इसमें घपला बताकर सिपाहियों की सेवाएं खत्म कर दीं। बसपा सरकार के इस फैसले को सिपाहियों ने हाई कोर्ट में चुनौती। लंबी लड़ाई के बाद 2009 में हाई कोर्ट ने बसपा सरकार में बर्खास्त सभी सिपाहियों को बहाल कर दिया था। कई मामले अभी भी कोर्ट में चल रहे हैं। वहीं, युवा ओवर एज हो रहे हैं। पेपर लीक होता है। परीक्षा रद्द कर दी जाती है, लेकिन न दोषियों पर सरकारें सख्त कार्रवाई करती हैं और न पेपर लीक को रोक पाती हैं। 2005-06 में तत्कालीन सपा सरकार में करीब 22 हजार यूपी पुलिस सिपाही भर्ती हुई थी।अब सभी सिपाही यूपी के विभिन्न जिलों में तैनात है और अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।शनिवार को योगी आदित्यनाथ ने परीक्षा को रद्द करते हुए फिर से छह महीने के अंदर परीक्षा कराने के आदेश दिए हैं। साथ ही एसटीएफ को परीक्षा पेपर लीक मामले की जांच सौंप दी है। एसटीएफ ने जांच शुरू कर दी है।