मलिकार्जुन खरगे अब गांधी परिवार से दूर नजर आ रहे हैं! अपनी मदमस्त चाल में चलते कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, उनके पीछे धीमे-धीमे चलती सोनिया गांधी। कांग्रेस के इन दो नेताओं की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल क्या हुई कि इसका राजनीतिक विश्लेषण शुरु हो गया है। सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म पर वायरल इस तस्वीर पर चर्चा होना जरूरी भी है, क्योंकि तस्वीर में आगे चल रहे शख्स की काबिलियत पर ना केवल विरोधियों ने, बल्कि कांग्रेस के अंदर से भी कुछ दिग्गज नेताओं ने शक किया था। मगर कांग्रेस की कर्नाटक में शानदार जीत के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने विरोधियों को चुप कर दिया है। क्या खरगे कर्नाटक की जीत के बाद गांधी परिवार के साये से बाहर आ गए हैं? राजनीतिक विश्लेषकों के बीच इस बात की चर्चा तेज हो गई है। 24 साल के बाद जब गांधी परिवार से बाहर के दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने तो विरोधियों ने उन पर जमकर हमला बोला था।
बीजेपी ने खरगे पर तंज कसते हुए कहा था कि वह एक ‘कठपुतली’ साबित होंगे और गांधी परिवार की ओर से ‘रिमोट’ से नियंत्रित किए जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ सियासी गलियारों में एक बड़ा सवाल उठने लगा था कि गांधी परिवार के साये से मुक्त होकर खरगे मनमाफिक फैसले ले पायेंगे? कांग्रेस के भीतर से भी खरगे के विरोध में आवाज उठने लगी थी। पार्टी के अंदर शशि थरुर की हार को इस तौर पर देखा जा रहा था कि अध्यक्ष चुनाव का फैसला पहले से ही खरगे के पक्ष में था। पार्टी के अंदर और बाहर के दवाब के बीच अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाना खरगे के लिए किसी जंग से कम नहीं था, लेकिन उन्होंने कर्नाटक जीत के बाद अपने मजबूत इरादों से विरोधियों को वाकिफ करा दिया है।
कर्नाटक की लगभग 23% आबादी दलित है। प्रदेश की 35% सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और सत्तारूढ़ बीजेपी को भारी शिकस्त मिली।इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और सत्तारूढ़ बीजेपी को भारी शिकस्त मिली। राजनीति जानकारों का कहना है कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था। हालांकि उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वह कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए। राजनीति जानकारों का कहना है कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था। हालांकि उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वह कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए।
कर्नाटक जीत के बाद खरगे पर जिम्मेदारी का बोझ और बढ़ गया है। 2024 का लोकसभा चुनाव एक चुनौती बनकर खड़ा है। इस चुनौती से निपटने के लिए खरगे को दक्षिण राज्यों के अलावा पूरे देश के लिए रणनीति बनाने होगी। इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और सत्तारूढ़ बीजेपी को भारी शिकस्त मिली। राजनीति जानकारों का कहना है कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था। हालांकि उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वह कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए।हालांकि खरगे 2024 को लेकर भी काफी आक्रामक दिखाई दे रहे है।
केंद्र सरकार को घेरने का एक भी मौका खरगे नहीं छोड़ते हैं। खरगे पीएम मोदी पर लगातार हमलावर रहते हैं।इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और सत्तारूढ़ बीजेपी को भारी शिकस्त मिली। राजनीति जानकारों का कहना है कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था।इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और सत्तारूढ़ बीजेपी को भारी शिकस्त मिली। राजनीति जानकारों का कहना है कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था। हालांकि उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वह कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए। हालांकि उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वह कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए। अडानी के मसले पर खरगे ने संसद के अंदर और बाहर जमकर विरोध किया था। उधर विपक्षी पार्टियां भी खरगे को पहले से ज्यादा तवज्जो दे रही है। खरगे को विपक्षी पार्टियों की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कई बार देखा गया है।