हाल ही में नीतीश कुमार ने संवेदनहीन जवाब दिया है! जो शराब पियेगा वह तो मरेगा ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहरीली शराब पीकर जान गंवाने वाले 39 लोगों को कुछ इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी है। आप कहेंगे, ये मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि के शब्द नहीं थे बल्कि मुख्यमंत्री समझा रहे थे कि जहरीली शराब से जान तो जाती ही है, जाएगी ही। मैं भी इतना समझदार हूं कि नीतीश की कही बातों का संदर्भ समझ सकूं। लेकिन संदर्भ सीमित हो, ऐसा कहां लिखा है? एक हिंदी फिल्म में वकील किसी घटना का जिक्र करते हुए कठघरे में खड़े आरोपी से पूछता है- क्या जो मैंने कहा, वो सही है? इस पर आरोपी कहता है, ‘लेकिन मेरा मतलब यह नहीं था?’ तो वकील कहता है कि बात सच है या नहीं, तुम सिर्फ हां या ना में जवाब दो, मतलब मैं निकाल लूंगा। मतलब की तरह संदर्भ भी तो अलग-अलग निकाले जा सकते हैं। नीतीश और उनके समर्थक दावा कर सकते हैं कि उन्होंने सिर्फ जहरीली शराब पीने का परिणाम बताया, लेकिन सच्चाई यह भी है कि उन्होंने ऐसी कोई अनोखी बात नहीं कह दी जिसके बारे में किसी को पता नहीं हो या बहुत कम लोगों की पता हो। नीतीश ने किसी विशेषज्ञ की विशेष रिपोर्ट के अंश तो बताए नहीं। सबको पता है कि जहरीली शराब पीने पर जान जाती है। तो नीतीश ने यूं ही, नॉर्मली तो नहीं कहा कि शराब पीओगे तो मरोगे ही। बल्कि उनके कहने का संदर्भ 39 मौतें थीं। अब सोचिए कि यह कितना संवेदनहीन बयान है। जो लोग मरे, उनके परिजनों, उन पर निर्भर लोगों की क्या हालत होगी? एक बार सोचिए, फिर मुख्यमंत्री के इस बयान के संदर्भ पर बात कीजिए। आपको पता चल जाएगा कि शराबबंदी की जिद्द पाले नीतीश किस कदर निर्मम हो चुके हैं।
नीतीश कुमार ने बड़ी ही चालाकी से अपने बयान का फोकस जहरीली शराब पर रखा है। नीतीश होशियारी दिखाते हुए यह दावा कर रहे हैं कि बिहार में शराब उपलब्ध ही नहीं है। इसीलिए, चोरी-छिपे देसी शराब बनाई जाती है जो कभी-कभी जहरीली हो जाती है। लेकिन, सच्चाई बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है। बिहार का ऐसा कौन सा कोना है जहां शराब नहीं मिलती है, वो भी आसानी से? फिर सवाल है कि अगर शराब हर जगह मिल ही रही है तो फिर शराबबंदी का ढोल पीटने में कौन सा सुख पा रहे हैं नीतीश? हो यह रहा है कि अब पड़ोसी राज्यों से शराब अवैध तरीके से बिहार में आ रहे हैं। शायद ही कोई दिन बीतता हो जब बिहार के किसी न किसी इलाके से अवैध शराब पकड़ाने की खबर नहीं आती हो। और शराब पकड़े जाने की खबर भी तो तब सामने आती है जब तस्कर और पुलिस में डील नहीं हो पाती है। वरना बिहार का कौन सा ऐसा थाना है जो शराबबंदी के बाद नोटों के छापेखाने में तब्दील नहीं हो गया हो! मेरा गृह जिला झारखंड सीमा पर है। कई कहानियां पता है कि कैसे थाने ने शराब की खेप पकड़ी और मात्रा के हिसाब से माल (पैसे) लिए और छोड़ दिया। कोई मुकदमा नहीं, कोई जब्ती नहीं। कई बार पुलिस वाले घूस के पैसे भी लेते हैं और शराब भी जब्त कर लेते हैं। फिर पुलिस वाले ही जब्त शराब की कालाबाजारी करवाते हैं। मतलब, दोनों हाथों में लड्डू। एक हाथ से घूस लो, दूसरे हाथ से जब्त शराब बेचकर पैसे बनाओ। क्या नीतीश कुमार को यह सब पता नहीं है? सोचते रहिए और राय बनाते रहिए। जो चल रहा है, वो चलता रहेगा।
नीतीश जी कहते हैं कि बिहार में शराबबंदी है तो निश्चित तौर पर गलत शराब ही मिलेगी और गलत शराब पीने से जान तो जाएगी ही। मुख्यमंत्री जी, गुजरात में तो दशकों से शराबबंदी है। वहां तो जहरीली शराब पीकर मरने की खबरें बार-बार नहीं आतीं। हां, इसी वर्ष जुलाई में जरूर गुजरात में शराब से हुई मौतों पर जरूर हाहाकार मचा था। संभव है, उससे पहले भी कुछ मौतें हुई हैं, लेकिन ऐसे मामले वहां नहीं के बराबर आते हैं। दशकों में एक-दो घटनाएं अपवाद ही मानी जाएंगी, कुछ महीनों में हो रही मौतें अभिशाप ही कहलाएंगी। अब आंकड़ों की बाजीगरी मत कीजिए। दुनिया को पता है कि ज्यादातर मामलों में जहरीली शराब से होने वाली मौतों को आपकी सरकार मानती ही नहीं, इसलिए प्रशासन उसे अलग-अलग कारणों से हुई मौत बता देता है। यह भी तय है कि गुजरात में बिहार की अपेक्षा नहीं के बराबर शराब तस्करी होती है। गुजरात के सीमाई इलाकों में बहुत जुगाड़ के बाद शराब मिल भी जाए, वरना वहां शराब उपलब्ध होना टेढ़ी खीर है। कुछ खास जगहों पर आधिकारिक तौर पर शराब मिलती भी है तो एक खास प्रक्रिया पूरी करने के बाद।
इन तथ्यों से क्या-क्या बातें साबित होती हैं? एक यह कि नीतीश की सरकार बिहार में शराब बनाने वालों पर नकेल कसने में अक्षम साबित हुई है। वहां का शासन-प्रशासन न तो बिहार के बाहर से शराब की आवक रोक रही है और ना ही प्रदेश के अंदर शराब बनाने के धंधे का समूल विनाश कर पा रही है। तो क्या, शराब तस्करों के साथ-साथ शराब बनाने वालों से भी पुलिस की मिलीभगत है? नीतीश जी को इसका जवाब देना चाहिए? आखिर बिहार के उलट, गुजरात में धरातल पर पूर्ण शराबबंदी है तो फिर वहां जहरीली शराब का कारोबार, बिहार जैसा ही ‘खुलेआम’ क्यों नहीं है? गुजरात तो बिहार से बहुत ज्यादा समृद्ध प्रदेश है और शराब सेवन का ताल्लुक बहुत हद तक समृद्धि से भी जुड़ा है। तो फिर गुजरात में शराबबंदी को जमीन पर सफलता से कैसे लागू किया जा सका और बिहार बयानबाजियों तक सीमित कैसे रह गया?
नीतीश कुमार का कहना है कि उन्होंने अकेले अपने मन से शराबबंदी का फैसला नहीं किया। उन्होंने शराबबंदी पर सवाल उठा रहे बीजेपी विधायकों से विधानसभा में कहा कि वो जब सरकार में साथ थे, तभी शराबबंदी का फैसला लिया गया था। उस फैसले में बीजेपी ही नहीं, तब विपक्ष में रही आरजेडी ने भी समर्थन किया था। बिल्कुल सही। नीतीश जी, शराबबंदी के पक्ष में बने जनमत का आपने सम्मान किया। क्या लोकतंत्र का तकाजा यह नहीं है कि जिस तरह शराबबंदी के पक्ष में बने जनमत का आपने सम्मान किया, उसी तरह इसके कड़े विरोध में तैयार हुए जनमत का सम्मान करें? ऐसा तो नहीं हो सकता ना कि समर्थन मिला तो जनमत का सम्मान, लेकिन विरोध हो तो भांड़ में जाए दुनिया। हम तो वही करेंगे जो ठान लिया है, भले लाशें बिछती रहे। ऐसी सोच रखने वाला कोई मुख्यमंत्री ‘सुशासन बाबू’ नहीं कहला सकता, ऐसा व्यवहार तो किसी सनकी तानाशाह का ही हो सकता है।
नीतीश जी, आप यह नहीं कह सकते कि जिस पैमाने पर शराबबंदी को समर्थन मिला था, उसी स्तर का विरोध नहीं है। आप आखिर किस मुंह से कहेंगे कि अब भी विरोध करने वाले बीजेपी के लोग और मुट्ठीभर अजेंडेबाज लोग हैं और ज्यादातर लोग शराबबंदी का समर्थन कर रहे हैं। अगर यह सच है तो फिर आपके ही विधायक डॉ. संजीव कुमार ने शराबबंदी का विरोध कैसे किया। क्या नीतीश जी कह सकते हैं कि आरजेडी नेता शराबबंदी के पक्ष में हैं? क्या नीतीश यह दावा कर सकते हैं कि उनकी अपनी ही पार्टी जेडीयू के ही बहुसंख्यक नेता शराबबंदी को लागू रखना चाहते हैं? अगर नीतीश यह दावा करते भी हैं तो किस आधार पर? क्या उन्होंने कभी सबकी राय मांगी है, क्या कोई सर्वेक्षण करवाया है? फिर बिहार की जनता की राय को भी तो नहीं नकारा जा सकता है। क्या जनता शराबबंदी पर नीतीश की जिद्द के साथ है?
नीतीश जी, आप ‘सुशासन बाबू’ का तमगा लिए बैठे हैं। जिद्द छोड़िए और थोड़ी देर के लिए ठंडे दिमाग से सोचिए कि जिस प्रदेश में शराबबंदी घोषित हो, वहां आसानी से शराब मिले, आसानी से शराब बने और फिर लाशें बिछती रहें, वहां की सरकार का मुखिया सारा दोष शराब पीने वालों पर मढ़कर पल्ला कैसे झाड़ सकता है? आप बिहार के मुख्यमंत्री हैं, मतबल बिहार की संपूर्ण जनता के ‘माई-बाप।’ आप जनता के मरते रहने का शाप नहीं दे सकते। आपका रवैया घोर अनैतिक और गैर-जिम्मेदाराना है। आप ही कहते हैं कि शराबबंदी को सबका समर्थन मिला था। वो वक्त था, जब सबने समर्थन किया। लेकिन तब किसी को क्या पता था कि सुशासन बाबू की सरकार शराबबंदी पर इस तरह चारो खाने चित हो जाएगी! आप बिहार की जनता ही नहीं, जनप्रतिनिधियों के भरोसे पर भी खरे नहीं उतर पाए, नीतीश जी! इसलिए दोष विरोध कर रहे नेताओं और बिहार की जनता के मत्थे मढ़ने की बजाय अपने अंदर झांकिए। अगर आपकी आत्मा मरी नहीं है तो दावे के साथ कह रहा हूं- अंदर से चित्कार उठेगी कि आप कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं।