Friday, November 22, 2024
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क्या भारत का विरोध करना थाईलैंड पर भारी पड़ चुका है?

भारत का विरोध करना थाईलैंड पर अब भारी पड़ चुका है! विश्व व्यापार संगठन में भारत की चावल खरीद लेकर टिप्पणी करने वाली थाईलैंड की राजदूत पिमचानोक वॉनकोर्पोन पिटफील्ड को आखिरकार भारी पड़ गया। थाईलैंड ने पिटफील्ड को विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन एमसी-13 से हटाकर वापस थाईलैंड आने के लिए कहा है। अब इस बैठक में थाईलैंड के विदेश सचिव ने उनका स्थान लिया है। विश्व व्यापार सगंठन की यह मंत्रिस्तरीय वार्ता पांचवें दिन प्रवेश कर गई। थाईलैंड की राजदूत ने कहा था कि भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर चावल खरीद का कार्यक्रम लोगों के लिए नहीं, बल्कि निर्यात बाजार पर कब्जा करने के लिए है। भारत ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद ही पिटफील्ड को वापस बुलाया गया। इस पूरे मामले में भारतीय अधिकारियों ने थाई प्रतिनिधि की मौजूदगी वाली मंत्रिस्तरीय बैठक का बहिष्कार किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा मामला कुछ विकसित देशों के साथ मिलकर रचा गया है। जिनेवा में डब्ल्यूटीओ की बैठकों के दौरान कुछ देशों ने इसी तरह का शोर मचाया था, सरकार ने भी इसे एक कहानी बनाने के प्रयास के रूप में देखा।साथ ही सरकार ने इस मामले को थाईलैंड के साथ भी उठाया था। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अपने अमेरिकी और यूरोपीय संघ के समकक्षों के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात के व्यापार मंत्री थानी बिन अहमद अल जायौदी और डब्ल्यूटीओ प्रमुख न्गोजी ओकोन्जो-इवेला के साथ मीटिंग के दौरान इस मुद्दे पर बात की थी। भारतीय प्रतिनिधिमंडल कृषि व्यापार में सुधार, विशेष रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न की खरीद के लिए सरकार को लचीलापन प्रदान करने पर एक बंद दरवाजे की बैठक की। सरकारी अधिकारी के अनुसार हकीकत यह है कि उनके तथ्य गलत थे, क्योंकि सरकार खाद्य सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए धान की उपज का केवल 40 प्रतिशत ही खरीदती है।

उन्होंने बताया कि बाकी हिस्से को सरकारी स्वामित्व वाली एजेंसियां नहीं खरीदती हैं। इसे भारत से बाजार कीमतों पर निर्यात किया जाता है।इस मीटिंग के दौरान भारत पिटफील्ड के हस्तक्षेप वाले आक्रामक स्वर से नाराज था। इसके अलावा, अमीर देशों के कुछ प्रतिनिधियों ने थाई राजदूत के बयान की सराहना की। भारत ने इसे अधिकारियों ने तथ्यात्मक रूप से गलत बताया। एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने सरकार पर पीडीएस के लिए खरीदे गए चावल का 40% निर्यात करने का आरोप लगाया था।

एक अन्य अधिकारी ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा मामला कुछ विकसित देशों के साथ मिलकर रचा गया है। जिनेवा में डब्ल्यूटीओ की बैठकों के दौरान कुछ देशों ने इसी तरह का शोर मचाया था, सरकार ने भी इसे एक कहानी बनाने के प्रयास के रूप में देखा। इसके अनुसार भारत की तरफ से वैश्विक बाजारों में सब्सिडी वाले चावल की बाढ़ ला दी गई है, जो वैश्विक व्यापार नियमों के अनुरूप नहीं है। सरकारी अधिकारी के अनुसार हकीकत यह है कि उनके तथ्य गलत थे, क्योंकि सरकार खाद्य सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए धान की उपज का केवल 40 प्रतिशत ही खरीदती है। उन्होंने बताया कि बाकी हिस्से को सरकारी स्वामित्व वाली एजेंसियां नहीं खरीदती हैं। इसे भारत से बाजार कीमतों पर निर्यात किया जाता है।

सरकार ने हाल ही में घरेलू कीमतों को कम करने के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है। भारत सब्सिडी सीमा के मुद्दे का समाधान तलाश रहा है, जिसकी गणना 1986-88 के स्तर पर तय कीमतों पर की गई है। इसमें 10% की सीमा का उल्लंघन किया है। भारत की तरह थाईलैंड भी एक प्रमुख चावल एक्सपोर्ट करने वाला देश है। बता दें कि भारत ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद ही पिटफील्ड को वापस बुलाया गया। इस पूरे मामले में भारतीय अधिकारियों ने थाई प्रतिनिधि की मौजूदगी वाली मंत्रिस्तरीय बैठक का बहिष्कार किया था। साथ ही सरकार ने इस मामले को थाईलैंड के साथ भी उठाया था। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अपने अमेरिकी और यूरोपीय संघ के समकक्षों के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात के व्यापार मंत्री थानी बिन अहमद अल जायौदी और डब्ल्यूटीओ प्रमुख न्गोजी ओकोन्जो-इवेला के साथ मीटिंग के दौरान इस मुद्दे पर बात की थी। विभिन्न मंचों पर कुछ विकसित और विकासशील देशों ने आरोप लगाया है कि भारत की तरफ से चावल जैसी जिंसों का सार्वजनिक भंडारण वैश्विक बाजार में रेट खराब कर देता है। भारत 2018 से 2022 तक दुनिया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्ट करने वाला देश था। उसके बाद थाईलैंड और वियतनाम का स्थान था।

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