वर्तमान में नीतीश कुमार के लिए शिक्षक भर्ती ही सारी मुसीबत की जड़ बन चुकी है! बिहार में नवनियुक्त शिक्षकों को सीएम नीतीश कुमार ने एक भव्य समारोह में नियुक्ति पत्र बांटा। बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर जहां देश भर में बिहार की चर्चा हो रही है, वहीं इसे लेकर विवाद भी छिड़ गया है। नियुक्ति में डोमिसाइल की बाध्यता खत्म किए जाने से शिक्षक अभ्यर्थी नाराज हैं तो चुनावी रणनीतिकार और कभी जेडीयू के साथ रहे प्रशांत किशोर का कहना है कि डोमिसाइल की बाध्यता खत्म होने से बिहार के सिर्फ 25 हजार युवाओं को ही नौकरी मिल पाई है। बाकी सीटों पर बाहरी लोगों को मौका मिला है। बिहार में रोजगार के द्वार खोलने की बात इससे हास्यास्पद हो जाती है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का कहना है कि शिक्षक भर्ती परीक्षा में धांधली हुई है। उन्होंने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से की है। कहा तो उन्होंने यह भी है कि बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को भी शिकायत भेजेंगे। हालांकि सीएम नीतीश पहले ही किसी तरह की गड़बड़ी की बात से इनकार चुके हैं। मांझी नियुक्ति में गड़बड़ी से इतने आहत हैं कि एक तरफ नीतीश कुमार नवनियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांट रहे थे और दूसरी ओर नौकरी से वंचित शिक्षक अभ्यर्थियों की अदालत मांझी अपने आवास पर लगाए हुए थे। उन्होंने पहले ही ‘बिहारी शिक्षक अभ्यर्थी अदालत’ लगाने की घोषणा की थी। मांझी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा, ‘आज पटना में दो बड़े कार्यक्रम होंगे, एक कार्यक्रम सरकारी ईवेंट होगा, जहां बिहारियों को दरकिनार कर नियुक्ति पत्र बांटा जाएगा। दूसरा कार्यक्रम HAM हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का होगा, जिसमें बिहार, बिहारियत और बिहार के भविष्य को लेकर शिक्षक अभ्यर्थी अदालत लगाई जाएगी।
चुनावी रणनीतिकार और इन दिनों बिहार में जन सुराज यात्रा कर रहे प्रशांत किशोर तो आरजेडी-जेडीयू के पीछे ही पड़ गए हैं। वे अक्सर इन दोनों दलों के तीन दशक से अधिक के राज को बिहार के पतन का कारण मानते हैं। प्रशांत का कहना है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्त होने पर इतरा रहे हैं। लेकिन सच यह है कि बिहार के तकरीबन 25 हजार लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। बाकी लोग बाहरी हैं। चूंकि राज्य सरकार ने शिक्षक नियुक्ति में डोमिसाइल की बाध्यता खत्म कर दी थी, इसलिए बाहरी लोगों ने इसका फायदा उठा लिया। सीएम पहले नियुक्ति पत्र बांट लें, उसके बाद वे पोल खोलेंगे।
इस बीच आरजेडी समर्थकों ने बड़े पैमाने पर शिक्षक नियुक्ति का श्रेय नीतीश कुमार की बजाय तेजस्वी यादव को देना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के पोस्टर फ्लोट किए गए हैं। आरजेडी का दावा ह कि तेजस्वी ने ही 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया था। इसी क्रम में नियुक्तियां हो रही हैं। इसलिए नियुक्ति का श्रेय तेजस्वी को जाता है। नीतीश इससे इतने नाराज हुए कि नियुक्ति पत्र बांटने के लिए आयोजित समारोह के मंच पर लगे बैनर से तेजस्वी ही गायब कर दिया। नीतीश का तर्क है कि यह किसी एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि सरकार की कोशिश का परिणाम है। इसका श्रेय किसी एक को नहीं दिया जा सकता।
1979 में 1200 इंजीनियरों को सामूहिक रूप से नियुक्ति पत्र बांटा गया था। तब बिहार में कोई इंजीनियर बेरोजगार नहीं बचा था। किसी तरह की गड़बड़ी की शिकायत भी नहीं हुई थी। वह कर्पूरी ठाकुर का राज था। सुरेंद्र किशोर का इशारा आज शिक्षक नियुक्ति पर उठ रहे सवाल की ओर था। मांझी नियुक्ति में गड़बड़ी से इतने आहत हैं कि एक तरफ नीतीश कुमार नवनियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांट रहे थे और दूसरी ओर नौकरी से वंचित शिक्षक अभ्यर्थियों की अदालत मांझी अपने आवास पर लगाए हुए थे। उन्होंने पहले ही ‘बिहारी शिक्षक अभ्यर्थी अदालत’ लगाने की घोषणा की थी। मांझी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा, ‘आज पटना में दो बड़े कार्यक्रम होंगे, एक कार्यक्रम सरकारी ईवेंट होगा, जहां बिहारियों को दरकिनार कर नियुक्ति पत्र बांटा जाएगा। दूसरा कार्यक्रम HAM हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का होगा, जिसमें बिहार, बिहारियत और बिहार के भविष्य को लेकर शिक्षक अभ्यर्थी अदालत लगाई जाएगी।अभ्यर्थियों के एतराज और विपक्ष के विरोध के बावजूद वर्षों बाद हुई बड़े पैमाने पर हुई शिक्षकों की नियुक्ति में राज्य सरकार ने डोमिसाइल लागू नहीं किया। इससे बिहार से बाहर के युवाओं को बड़े पैमाने पर नौकरी मिली है। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर पहले ही कह चुके थे कि बिहार में योग्य शिक्षक नहीं मिल पाएंगे, इसलिए डोमिसाइल खत्म किया गया है।