Friday, November 22, 2024
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क्या नोएडा में नोएडा अथॉरिटी ने की है जमीनों की धांधली?

नोएडा में नोएडा अथॉरिटी के द्वारा जमीनों की धांधली की गई है, यह हम नहीं बल्कि सीएजी कह रहा है! यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई और भाभी को रियल एस्टेट कंपनी लॉजिक्स ने नोएडा में तकरीबन आधी कीमत पर 261 फ्लैट दिए थे। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने आधिकारिक रिकॉर्ड्स के हवाले से अपनी न्यूज रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इन सौदों में नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। ऑडिट में खुलासा हुआ कि मायावती के भाई आनंद कुमार और भाभी विचित्र लता को जिस तरीके से ये फ्लैट दिए गए, उसमें तमाम गड़बड़ियां थीं। वास्तविक कीमत से बहुत कम पर 46 प्रतिशत डिस्काउंट फ्लैट दिए गए। इतना ही नहीं लेन-देन में भी ‘फर्जीवाड़ा’ हुआ। आनंद कुमार को 135 और विचित्र लता को 126 अपार्टमेंट अलॉट हुए। मायावती के भाई को 2,300 रुपये प्रति वर्ग फीट के हिसाब से फ्लैट दिए गए जबकि उसी दौरान अन्य खरीदारों को 4,350 रुपये प्रति वर्ग फीट के हिसाब से फ्लैट दिए गए। ये तो बस बानगी भर है नोएडा अथॉरिटी में पावर और पैसे के ‘मायाजाल’ का। 2 साल पहले सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में नोएडा अथॉरिटी में गड़बड़ियों की पोल खोली थी। नोएडा में जमीन का आवंटन और रियल एस्टेट डील्स को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं। जुलाई 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने नोएडा और तीन अन्य अथॉरिटी का सीएजी यानी कॉम्प्ट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल से ऑडिट को मंजूरी दी थी जिसके बाद तमाम गड़बड़ियों से पर्दा उठा। सीएजी ने नोएडा में 2005 से 2018 के बीच जमीन और संपत्तियों के आवंटन का ऑडिट कर नवंबर 2021 में परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट यूपी सरकार को सौंपा। इसे दिसंबर 2021 में विधानसभा के पटल पर रखा गया। नोएडा अथॉरिटी के ऑडिट रिपोर्ट में सीएजी ने बड़े पैमाने पर करप्शन, प्राइवेट कंपनियों को अनुचित फायदा पहुंचाने के लिए पक्षपात, अफसरों और बिल्डरों में साठगांठ जैसी तमाम गड़बड़ियों की बात कही जिससे नोएडा अथॉरिटी को 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। इसके अलावा लाखों घर खरीदारों को परेशानियां उठानी पड़ीं।

सीएजी ने अपने ऑडिट रिपोर्ट में बताया कि 2005 से 2018 के दौरान नोएडा अथॉरिटी ने सिर्फ 46.66 प्रतिशत प्लॉट को मार्केट रेट पर आधारित प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिए आवंटित किया। जबकि 53.34 प्रतिशत प्लॉट को सब्सिडी या फिर फिक्स्ड ऐडमिनिस्ट्रेटिव प्राइस के आधार पर प्राइवेट कंपनियों को आवंटित किया गया। नोएडा अथॉरिटी के ऑडिट रिपोर्ट में सीएजी ने बड़े पैमाने पर करप्शन, प्राइवेट कंपनियों को अनुचित फायदा पहुंचाने के लिए पक्षपात, अफसरों और बिल्डरों में साठगांठ जैसी तमाम गड़बड़ियों की बात कही जिससे नोएडा अथॉरिटी को 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। इसके अलावा लाखों घर खरीदारों को परेशानियां उठानी पड़ीं।अयोग्य कंपनियों को भी नियम-कायदों को धता बताकर जमीन दिया गया। उदाहरण के तौर पर 2011 में लॉजिक्स ग्रुप को 471.57 करोड़ रुपये में 2 लाख वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन का आवंटन किया गया जबकि ये ग्रुप मानकों के हिसाब से इसके लिए योग्य ही नहीं था। टेक्निकल एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया के मुताबिक आवंटन उन्हीं कंपनियों को हो सकता था जिनका रियल एस्टेट डिवेलपमेंट एक्टिविटीज में कम से कम 200 करोड़ रुपये का टर्नओवर होना चाहिए था। लॉजिक्स का टर्नओवर इससे कम था और काददे से उसकी बोली को सिरे से खारिज किया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा, लॉजिक्स ग्रुप को अथॉरिटी ने 2010-2011 में 1680.93 करोड़ रुपये में 3 कॉमर्शियल बिल्डर प्लॉट का आवंटन किया गया जबकि वह रियल एस्टेट में 200 करोड़ के न्यूनतम टर्नओवर के मानदंड पर खरी नहीं उतरती थी। मई 2011 में इसी ग्रुप को सेक्टर 150 में 225 एकड़ का प्लॉट आवंटित किया गया। यानी एक ऐसी कंपनी जो बोली लगाने के लिए अयोग्य थी, उसे 2010-11 में 3246.50 करोड़ रुये में 2 ग्रुप हाउसिंग प्लॉट, 3 कॉमर्शियल बिल्डर प्लॉट और एक स्पोर्ट्स सिटी प्लॉट का आवंटन किया गया।

सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ कि किस तरह नोएडा में अथॉरिटी ने ने सिर्फ 3 कंपनियों को 80 प्रतिशत कॉमरशियल प्लॉट अलॉट किए। 2008 से 2011 तक नोएडा अथॉरिटी ने कुल 39 लाख 10 हजार 376 वर्गमीटर के कॉमर्शियल प्लॉट अलॉट किए। इनमें से 80 प्रतिशत सिर्फ तीन ग्रुप- वेव, 3सी और लॉजिक्स ग्रुप को आवंटित हुए। वेव ग्रुप को 6570 करोड़ रुपये में 2010-11 में नोएडा सेक्टर 25 ए/32 में प्राइम लोकेशन पर 6,63,104 वर्गमीटर कॉमर्शियल प्लॉट आवंटित हुए। हालांकि, उनके ज्यादातर प्रोजेक्ट पूरे नहीं हुए। ग्रुप ने 2016 में करीब साढ़े 4 लाख वर्गमीटर जमीन को सरेंडर कर दिया। अथॉरिटी ने भी बकायों का भुगतान न होने पर 2021 में ग्रुप को दिए गए 108421 वर्ग मीटर जमीन का आवंटन रद्द कर दिया। 31 मार्च 2020 तक वेव ग्रुप की कंपनियों पर अथारिटी का 4425 करोड़ रुपये बकाया था।

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