वर्तमान में मध्य प्रदेश की बात आते ही विपक्ष का INDIA फेल हो चुका है! विपक्ष के दो दर्जन से ज्यादा दलों के गठबंधन I.N.D.I.A में सीट बंटवारे के शुरुआती प्रयासों को ही झटका लग रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है, उनमें एक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश से विपक्षी गठबंधन के लिए कम से कम अच्छी खबर तो नहीं आई है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सपा के बीच सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन पाई है। इस कारण दोनों दलों के बीच अब कटुता की खबरें भी आने लगी हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि एमपी में कांग्रेस-सपा के बीच गठबंधन की संभावना काफी कम हो गई है। दोनों दल कई निर्वाचन क्षेत्रों में अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करने लगे हैं। कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में उन सात सीटों में से चार के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी जहां सपा ने पहले ही अपने उम्मीदवार उतार रखे थे। इन निर्वाचन क्षेत्रों में चितरंगी, मेहगांव, भांडेर और राजनगर शामिल हैं। ध्यान रहे कि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने मेहगांव, भांडेर और राजनगर में जीत हासिल की थी। कांग्रेस के इस कदम से सपा खासी नाराज है। उसने अपनी तीखी प्रतिक्रिया के तौर पर तुरंत और नौ उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। इस कदम को शक्ति प्रदर्शन और एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि सपा ने इन सीटों पर अपने दम पर और कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है।
भोपाल और लखनऊ दोनों स्थानों पर सपा नेतृत्व ने कांग्रेस के कदम पर असंतोष जाहिर किया। मध्य प्रदेश में सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामायण सिंह पटेल ने कहा, ‘कांग्रेस के साथ गठबंधन की सभी संभावनाएं खत्म हो गई हैं।’ पटेल ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व के साथ बातचीत का दौर खत्म हो गया है और सपा अब आगामी चुनावों के लिए स्वतंत्र रास्ता अपनाएगी। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी एक वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी में भारतीय जनता पार्टी भाजपा से मुकाबले का इरादा ही नहीं बचा है। उन्होंने कांग्रेस पर भाजपा के बजाय सपा को ही कमजोर करने की कोशिश का आरोप लगाया। सपा नेता ने कहा कि जब कांग्रेस की बातचीत और अब उसके उम्मीदवारों की लिस्ट से लगता है कि उसका प्राथमिक उद्देश्य भाजपा को चुनौती देने के बजाय सपा को कमजोर करना है। इंडिया गठबंधन के लिए ऐसी स्थिति अन्य प्रदेशों में भी बन सकती है। फिलहाल सपा का लक्ष्य मध्य प्रदेश में 10 सीटें हासिल करना था, लेकिन कथित तौर पर कांग्रेस ने उसे कम सीटें देने की पेशकश की। अपेक्षाओं में इस असमानता के कारण दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया। कांग्रेस और अन्य गठबंधन साथियों के साथ ऐसा ही विवाद अन्य प्रदेशों में भी देखा जा सकता है, जिसमें पश्चिम बंगाल सबसे आगे दिख रहा है।
विवाद का एक विशेष मुद्दा बिजावर निर्वाचन क्षेत्र था। बिजावर सीट को सपा ने 2018 के चुनाव में अपने नाम करने में सफलता पाई थी। अब वहां कांग्रेस पार्टी ने चरण सिंह यादव को मैदान में उतार दिया। सपा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। चरण सिंह यादव बुन्देलखंड के वरिष्ठ सपा नेता दीप नारायण यादव के चचेरे भाई हैं। इस सीट पर उनसे सलाह किए बिना चुनाव लड़ने के कांग्रेस के एकतरफा फैसले से सपा में मायूसी है क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र था जहां उसे जीत की काफी उम्मीद दिख रही थी। बढ़ते तनाव के जवाब में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पीयूष बबेले ने इस बात पर जोर दिया कि सीट बंटवारे पर अंतिम निर्णय पार्टी आलाकमान का है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने यह सुझाव देकर पार्टी की स्थिति का बचाव किया कि सपा मध्य प्रदेश में जितनी सीटों पर जीत सकती है, उससे अधिक सीटें मांग रही है। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि राज्य में सपा की पर्याप्त उपस्थिति नहीं है और उसे जमीनी हकीकत समझने की जरूरत है।
अपने दम पर नौ और सीटों पर चुनाव लड़ने का सपा का फैसला बताता है कि पार्टी मध्य प्रदेश में गठबंधन तोड़ने को तैयार है। संभावना है कि सपा राज्य में कुल 30-35 उम्मीदवार उतारेगी। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस पार्टी और इंडिया गठबंधन को जितना नुकसान होगा, उतना ही फायदा सत्ताधारी बीजेपी को पहुंचेगा। यह विवाद न केवल मध्य प्रदेश के चुनावी परिदृश्य को प्रभावित करता है बल्कि क्षेत्रीय राजनीति पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ना तय है। ऐसा जान पड़ता है कि चूंकि लोकसभा क्षेत्रों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सपा की मजबूत उपस्थिति है, इस कारण वो आगामी लोकसभा चुनावों से पहले घोषित विधानसभा चुनावों में अपने गठबंधन साथियों से मोल-भाव करना चाहती है। इसमें कोई संदेह नहीं, यह रणनीतिक पैंतरेबाजी इंडिया गठबंधन की राह और मुश्किल बनाएगी।