महाराष्ट्र की राजनीति देख कर लग रहा है कि शिंदे गुट ने उद्धव गुट से हार मान ली है!16 अक्टूबर को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे एक चिट्ठी लिखते हैं। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को। इस गुजारिश के साथ कि भाजपा अंधेरी ईस्ट विधानसभा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी हटा ले। ऋतुजा लटके, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे की उम्मीदवार हैं। उनके पति रमेश लटके 14 वीं विधानसभा के लिए इस सीट से जीते थे। इस साल 11 मई को उनका निधन हो गया था। महाराष्ट्र की राजनीति में हाशिए पर चले गए राज ठाकरे की चिट्ठी से बड़े नेताओं का हृदय परिवर्तन चमत्कारिक है। इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कार की जय-जय होने लगी। निधन के बाद रिश्तेदारों के पक्ष में उम्मीदवार न उतारने की परंपरा का हवाला दिया गया। थोड़ा आश्चर्य इसलिए हुआ कि अभी कुछ ही दिनों पहले ही शिवसेना ने कीचड़ को गंदा किया है। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे का राजनीतिक मल्ल युद्ध दशहरे की शाम तक रंग दिखाता रहा। आप हमने देखा कौन किसको कटप्पा कह रहा था और कौन शिवसेना के दो फाड़ होने की तुलना 1857 के गदर से कर रहा था। अब ऐसे माहौल में अगर राजनीति अचानक इतनी सकारात्मक हो गई है तो आइए हम सब मिलकर इसका स्वागत करते हैं। शिंदे और ठाकरे इसी अंधेरी ईस्ट विधानसभा चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग तक गए। आपात स्थिति का हवाला दिया। अपील पर अपील की – हम एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले हैं। इसलिए चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम पर फैसला हो जाए।
तीन नवंबर को चुनाव की तारीख है। कल यानी 17 अक्टूबर की उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख थी। चुनाव आयोग ने 10 अक्टूबर की शाम तक शिंदे और ठाकरे दोनों दावेदारों के पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह तय कर दिए। उद्धव ठाकरे को मशाल मिली तो एकनाथ शिंदे को तलावार और ढाल। जनता को लगा कटप्पा के खिलाफ मशाल का प्रयोग होगा और शिंदे तलवार से वार करेंगे। रमेश लटके की बीवी ऋतुजा लटके उद्धव खेमे से ही उतरेगी ये तय था। इसलिए असली शिवसेना के फैसले की पंचायत अंधेरी बनेगी ये तय था। लेकिन चुनाव चिन्ह रूपी हथियार बटने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने फैसला कर लिया उनकी पार्टी शिवसेना बालासाहेबानची चुनाव नहीं लड़ेगी। और वो भाजपा को ही समर्थन देंगे। भाजपा ने मूरजी पटेल को उम्मीदवार बनाया। 14 अक्टूबर को गाजे बाजे के साथ पटेल ने पर्चा भर दिया।
अब ये हैं कौन मूरजी पटेल। तो ये 2019 के विधानसभा चुनाव में भी इसी सीट से मैदान में थे। बतौर निर्दलीय। तब शिवसेना और भाजपा मिल कर चुनाव लड़ी थी। अंदरखाने माना जाता है कि शिवसेना के रमेश लटके के खिलाफ मूरजी पटेल को भाजपा का समर्थन मिल रहा था। ये चुनावी नतीजों से भी पता चला। रमेश लटके 62000 वोटों के साथ जीत तो गए पर मूरजी पटेल ने भी 40000 से ज्यादा वोट हासिल कर चौंका दिया।
अब माना जा रहा था कि शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की जोड़ी उद्धव ठाकरे को मात देकर बृहन्मुंबई नगर निगम यानी BMC Election के लिए दावा मजबूत करेंगे। ये चुनाव इसी साल दिसंबर में होना है। और सब जानते हैं कि बीएमसी में ठाकरे परिवार की तूती बोलती है। एकनाथ शिंदे का किला ठाणे है। लेकिन 24 घंटों के भीतर ही महामुकाबले की हवा निकल गई। अचानक सारे दोस्त और दुश्मन एक जैसी भाषा बोलने लगे। शुरुआत तो एमएनएस चीफ राज ठाकरे की चिट्ठी से हुई। हालांकि यहां भी एक गौर करने लायक बात हुई। ये चिट्ठी चंद्रशेखर बावनकुले को नहीं गई जो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। ये चिट्ठी आशीष शेलार को नहीं गई जो मुंबई भाजपा के प्रमुख हैं। ये सीधे फडणवीस को जाती है। पर मूरजी को उम्मीदवारी से पीछ हटने का फैसला बावनकुले सुनाते हैं। तो इससे साफ है, महाराष्ट्र बीजेपी में किसकी कितनी चलती है।
खैर, इस पत्र के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे के समर्थक विधायक प्रताफ सिंह सरनाईक ने भी भाजपा से उम्मीदवार हटाने की अपील की। और आज मूरजी पटेल ने फैसले का स्वागत करते हुए पर्चा वापस ले लिया। ऋतुजा ने सबको धन्यवाद दे दिया। फिर किसका झंडा बुलंद हुआ। कहना मुश्किल है। बिहार के बाद महाराष्ट्र अभी ऐसा प्रदेश है जिसमें सभी पार्टियां एक ही विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर सत्ता में रही है। देवेंद्र फडणवीस – अजित पवार की तीन दिनों की सरकार, शरद पवार, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार और अब एकनाथ शिंदे और भाजपा की सरकार। इसलिए मेरा मानना है कि सबने मिल कर तय कर लिया कि अभी अभी झंझावात से बाहर निकले हैं। आराम करते हैं। अंधेरी ईस्ट में कोई एक्सपोज न हो जाए इसका इंतजाम करते हैं।