वर्तमान में बेवक्त आई बरसात से किसानों की फसल खराब हो चुकी है! आप शहरों में रहते हैं या कस्बों में, कोई फर्क नहीं पड़ता। बेवक्त की बारिश से आपका मन खिल जाता होगा। लेकिन आपको पता है कि इस वेवक्त की बारिश ने किसानों की जीवन कितना खराब कर दिया? जिन किसानों की फसल इस समय खेत में है, वे जार-जार रो रहे हैं। भरतपुर के एक सरसों किसान तो ऐसे परेशान दिखे कि लग रहा है कुछ खा न ले। आप समय ही गए होंगे कि किसान का इशारा किस तरफ है। हम आपको दिल्ली की सीमा पर बसे हरियाणा के एक गांव ले चलते हैं। वहां के किसान रणधीर सिंह राणा बताते हैं कि गेहूं पकने में बस 10-12 दिन ही बचे थे और जोरदार बारिश हो गई। बारिश हुई सो हुई, तेज हवाएं भी चली। इससे गेहूं की खड़ी फसल खेत में सो गई। गेहूं की फसल सोई पड़ी है। बारिश की वजह से खेतों में पानी जमा हो गया है। ऐसे में कई नुकसान होंगे। पहला नुकसान तो यह है कि अब उस खेत में कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई नहीं होगी। मजदूर लगा कर एक एक पौधे को हाथ से काटना होगा। मजदूर मिलते नहीं, ऐसे में लागत बढ़ेगी। दूसरा नुकसान कि गेहूं की थ्रेसिंग परंपरागत तरीके से कराना होगा। खेत गीली है तो कटाई में गेहूं के पौधे के साथ मिट्टी भी आएगी। इससे गेहूं में मिट्टी मिली होगी। तीसरा नुकसान कि गेहूं की क्वालिटी खराब हो जाएगी। चौथा नुकसान तब दिखेगा जब मौसम साफ होगा और धूप खिलेगी। उस समय गेहूं की बाली चटक जाएगी और गेहूं के दाने खेत में गिर जाएंगे। अब कटाई में तमाम सावधानी भी बरतें तो 25 से 30 फीसदी का नुकसान तो तय है।
इस साल सरसों के किसानों को कई मार झेलनी पड़ी। पहले तो फरवरी में ही मौसम गरम हो गया और यील्ड पर असर पड़ा। बारिश से पहले जिन किसानों ने सरसों की कटाई कर दाने निकाल लिए थे, उनका तो ठीक रहा। लेकिन जिन किसानों की फसल खेत में ही है, उन्हें तगड़ी चपत लगी है। जिन किसानों ने सरसों की फसल काट कर खेत में रखा था या जिनकी फसल तैयार हो कर खेत में खड़ी है, दोनों को बराबर नुकसान हुआ है। जैेस ही धूप निकलेगी, सरसों की बाली फट जाएगी और दानें खेत में झड़ जाएंगे। किसान कितना भी जतन करे, उनका 50 फीसदी का नुकसान तो हो कर रहेगा।
भरतपुर जिले में एक गांव के किसान कंवरपाल का कहना है कि बारिश होने पर किसानों का भी मन पकौड़े खाने को करता है। लेकिन हर बारिश पर नहीं। मौसम की बारिश हो तो ठीक भी है। बेमौसम की बारिश में तो बस ऐसा लगता है कि कोई … (विषैला पदार्थ) लाकर दे तो उसे खा लें। वह कहते हैं कि खेती की लागत बढ़ रही है। बीज का दाम बढ़ रहा है। हाईब्रिड सीड्स तो सामान्य बीजों के मुकाबले दोगुनी और तिगुनी कीमत पर मिलती है। कर्ज लेकर खेती करें और जब फसल घर आने को हो तो इस तरह की बारिश हो जाए। ऐसे में भला किसान क्या करेगा? इस समय उनके खेतों में भिंडी, चौलाई की साग, घिया और तोरी तथा टमाटर की फसल लगी थी। पिछले दिनों जो जोरदार बारिश के साथ ओले बरसे, उससे पूरी फसल खराब हो गई। पौधे में जो घिया लगे थे, उसमें इस तरह से छेद हो गया है कि लगता हो, दुश्मनों ने उस पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी हो। अब क्या होगा, इस पर वह कहते हैं कि लाखों का किराया ही बकाया हो जाएगा। इसके अलावा हाईब्रिड सब्जी की फसल तैयार करने के लिए खर्च भी खूब करना पड़ता है। ओलों की बारिश से सभी पौधे क्षतिग्रस्त हो गए। अब इन्हें उखाड़ कर फिर से रोपाई करनी होगी। पौधे तैयार होने में कम से कम महीने भर का समय लगेगा।
सरकार भले ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लंबा-चौड़ा दावा करती हो, लेकिन धरातल पर अलग दृष्य दिखते हैं। अधिकतर किसान इस योजना के अनभिज्ञ दिखते हैं। उनके बीच जागरूकता का अभाव है या फसल बीमा की उन तक पहुंच नहीं है, समझ नहीं आता। जब रणधीर सिंह से फसल बीमा के लाभ की बात की गई तो उन्होंने भारी निराशा जताई। उनका कहना है कि हरियाणा सरकार ने तो अभी तक कोई बात ही नहीं की है। सर्वे की भी घोषणा नहीं की है। जब हमने उनसे जानना चाहा कि फसल बीमा क्यों नहीं कराते तो उनका जवाब था, कौन सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए। सब्जी उगाने वाले टेक चंद कहते हैं सरकारी मुआवजा या फसल बीमा का लाभ तो जमीन वालों के लिए है। हमारी तो जमीन ही नहीं है।