सामान्य तौर पर हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार की औषधियों का वर्णन मिलता है! आपने कचनार के पौधे के बारे में सुना जरूर होगा। कचनार का प्रयोग कर लोगों को अनेक तरह का लाभ मिलता है। कचनार की छाल के रेशों से रस्सी बनाई जाती है। कई स्थानों पर काचनार की पत्तियों का साग भी खाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि कचनार एक औषधी है, और इसके अनेक औषधीय गुण हैं। कई रोगों के इलाज में कचनार के उपयोग से फायदे मिलते है!
आयुर्वेद के अनुसार, कई प्राचीन ग्रंथों में कचनार के फायदे के बारे में बताया गया है। आइए जानते हैं कि आप किस-किस बीमारी में कचनार से लाभ ले सकते हैं।
कचनार क्या है?
फूलों के रंगों में अंतर के अनुसार कचनार की विभिन्न जातियां पाई जाती हैं। इनमें से तीन प्रकार के काचनारों का विशेष उल्लेख मिलता है, जो ये हैंः-
1.लाल फूल वाला कचना
2.सफेद फूल वाला कचनार
3.पीला फूल वाला कचनार
लाल काचनार – इसमें कुछ जामुनी लाल रंग के फूल आते हैं। अन्य कचनारों की अपेक्षा यह सभी जगह मिल जाता है।लाल फूल वाली प्रजाति को कचनार, और सफेद फूल वाली प्रजाति को कोविदार कहा जाता है। लाल फूल के आधार पर कचनार की दो प्रजातियां पाई जाती हैं, जो ये हैंः-
सफेद काचनार – इसके फूल सफेद रंग के और सुगन्धित होते हैं। सफेद फूलों के आधार पर कांचनार की मुख्यतया तीन प्रजातियां पाई जाती हैैं, जो ये हैंः-
पीला काचनार – इसके फूल पीले रंग के होते हैं।
इनके अतिरिक्त कचनार की एक और प्रजाति पाई जाती है। कांचनार से मिलते-जुलते बहुत सारे पौधे पाए जाते हैं, लेकिन प्रायः कांचनार व कोविदार का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
गुणों में तीनों कचनार एक समान होते हैं, लेकिन औषधि के रूप में प्रायः लाल या सफेद फूल वाले कचनार का ही प्रयोग किया जाता है। इसलिए अगर कहीं लाल फूल वाला कचनार नहीं मिलता है तो दूसरे का प्रयोग किया जा सकता है।
कचनार के फायदे
सिर दर्द होने पर लाल कचनार से लाभ मिलता है। लाल कचनार की छाल को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द से आराम मिलता है।लाल कचनार की सूखी टहनियों को जलाकर राख बना लें। इस राख या कोयला से दांतों पर मंजन करें। इससे दांत के दर्द की बीमारी ठीक होती है।कचनार वृक्ष की छाल और अनार के फूल का काढ़ा बना लें। इससे कुल्ला करने से मुंह के छाले की बीमारी में लाभ होता है।
50 ग्राम कचनार वृक्ष की छाल को आधा लीटर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो इस पानी से कुल्ले करें। ऐसा कोई छाला जो दूसरी दवा से ठीक नहीं हो रहा है, वह भी इस उपाय से ठीक हो जाता है।
इससे प्रसूति स्त्रियों को होने वाले छाले भी ठीक हो जाते हैं।
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।कांचनार की छाल या फूल का काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा को ठंडा करके शहद मिला लें। इसे दिन में दो बार सेवन करें। इससे खून साफ होता है।
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से अत्यधिक रक्तस्राव की समस्या में लाभ होता है। आपको 20 मिली काढ़ा को दिन में दो बार पीना है।
मसूड़ों में दर्द होने पर कचनार के फायदे मिलते हैं। कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मसूड़ों के दर्द ठीक हो जाते हैं।लाल कचनार की छाल के 20 मिली काढ़ा में 1 ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाएं। इसे सुबह-शाम पिलाने से भी गले के गांठ की बीमारी में लाभ होता है।
250 ग्राम कचनार की छाल के चूर्ण में 250 ग्राम चीनी मिलाकर रख लें। सुबह और शाम 5-10 ग्राम चूर्ण को पानी या दूध के साथ सेवन करें। इससे गण्डमाला रोग में लाभ होता है।
कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से कंठ के रोग ठीक होते हैं।
10-20 ग्राम कांचनार छाल को 400 मिली पानी में उबालें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो 10-20 मिली की मात्रा में पिलाएं। इससे गंडमाला रोग में लाभ होता है।
लाल कचनार का रस मिलाकर गले में लगाने से भी गले के रोग में लाभ होता है।20 मिली कांचनार की जड़ के काढ़ा में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण डालकर पिलाएं। इससे पेट की गैस की परेशानी में लाभ होता है।
कचनार की जड़ और पत्ते का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं। उपाय को करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकिकत्सक से सलाह लें।गुदा भ्रंश रोग अधिकांशतः शिशुओं या बच्चों को होता है। आप इसमें कचनार के औषधीय गुण से फायदा ले सकते हैं। लाल कचनार के तने की छाल को पीसकर गुदा में लगाने से गुदभ्रंश में लाभ होता है।