आज हम आपको बताएंगे कि ओवरसीज मिशन में भारत को सफलता कैसे मिली! आज यानी 28 दिसंबर का दिन भारतीयों के लिए राहत और बड़ी जीत लेकर आया। कतर में 2022 से फंसे पूर्व भारतीय नौसैनिकों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई है। कतर की अपील कोर्ट ने 8 पूर्व नौसैनिकों को बड़ी राहत दी है। हालांकि अभी भी ये लोग जेल में ही रहेंगे। इसी साल अक्टूबर में उन्हें फांसी देने का फैसला किया गया था। लेकिन भारत की ओर से इन दो महीनों नवंबर और दिसंबर में जबरदस्त कूटनीति देखने को मिली। पीएम मोदी की कतर के शासक से मुलाकात ने गेंद अपने पाले में कर ली। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की इस मुलाकात ने कतर को भी नरमी बरतने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन मोदी के राज में यह कोई पहला मौका नहीं है। इससे पहले यूक्रेन में भारतीयों की वापसी के लिए भारत ने ऑपरेशन गंगा चलाया था। सभी भारतीयों को सफलतापूर्वक लाने वतन वापसी कराने पर सबने दाद दी थी। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यमन में भारतीयों की वापसी के लिए सऊदी अरब, यूएई ने हवाई हमले रोक दिए थे और भारतीय नौसेना को सहायता दी थी। जी20 में घोषणापत्र पर आम सहमति और बिना रूस का नाम लिए, किसी बड़ी जीत से कम नहीं थी। आज हम आपको मोदी सरकार के कार्यकाल में ओवरसीज ओवरसीज मिशन में किस तरह से सफलता मिली उसकी कहानी बयां करेंगे। 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों पर अज्ञात आरोपों के चलते कतर ने उन्हें अपने यहां कैद कर रखा था। अक्टूबर 2022 से कैद ये भारतीय नौसैनिक उम्मीद की किरण देख रहे थे। फिर इस साल अचानक उनकी सजा को फांसी में बदल दिया गया। इसपर भारत ने हैरानी जताई और सभी तरह के कानूनी विकल्पों रपर गौर किया। दाहरा ग्लोबल टेक्नॉलजी ऐंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम करने वाले ये 8 भारतीय नौसेना अफसरों को शायद ही मालूम था कि उनके साथ क्या होने वाला है। यहीं पर भारत की कूटनीति काम आई। कतर पर दबाव बनाने के लिए खुद पीएम मोदी ने शासक शेख तमीम बिन हमद अल थानी से मुलाकात की। उसके बाद से कतर के तेवर नरम हुए और आज नतीजा सबके सामने है। कतर ने पीएम मोदी और शेख तमीम बिन हमद अल थानी की मुलाकात के तुरंत बाद भारत को पूर्व नौसैनिकों से मिलने के लिए दूसरी बार कांसुलर एक्सेस दी थी। तभी लग गया था कि कतर इस मामले को लेकर अब नरम रुख दिखा रहा है। बता दें कि पीएम मोदी और कतर के अमीर के बीच दुबई में इस साल हुए कॉप28 सम्मेलन के दौरान हुई थी।
इसी साल सितंबर में भारत ने देश की राजधानी दिल्ली में सफलतापूर्वक जी20 आयोजित किया था। अमेरिका, इटली, जापान, ब्राजील,रूस सहित कई देशों के राष्ट्रध्यक्ष एक मंच पर साथ थे। लेकिन घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन पा रही थी। वजह था रूस। यूक्रेन क खिलाफ युद्ध के बाद से कई देश इसके खिलाफ थे। आम सहमति नहीं बन पा रही थी। लेकिन भारत ने शाम तक कुछ ऐसा कूटनीतिक पासा फेंका कि सभी इस घोषणापत्र पर एक सुर अलापने लगे। भारत ने रूस का नाम लिए बिना दिल्ली के घोषणापत्र पर बाकी देशों की आम सहमति पा ली थी। फ्रांस और यूरोपीय देशों ने भारत के इस प्रयास की दिल खोलकर तारीफ की थी। पीएम मोदी ने शिखर सम्मेलन के दिन घोषणा की और यह भारत की बड़ी जीत साबित हुई।
साल 2022 में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध के वक्त भारत के रूख की भी बात हुई। लेकिन यहां भी भारत ने अपनी कूटनीति का परिचय दिया। रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख तटस्थता और शांति की वकालत करने का रहा है। भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस की निंदा वाले प्रस्तावों से भी खुद को अलग रखा था। भारत ने युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने की अपील कीऔर दोनों पक्षों के बीच बातचीत से समाधान निकालने का आह्वान किया। विदेश मंत्री जयशंकर और पीएम मोदी ने बिना किसी के दबाव में आए बगैर हमेशा एक अलग रणनाति अपनाई। विदेशी मंचों और रूस-यूक्रेन के राष्ट्रपतियों व्लादिमीर पुतिन और वोलेदिमीर जेलेंस्की से आधिकारिक बातचीत में भी दोनों को साथ आकर बातचीत करने और युद्ध रोकने की बात दोहराई गई थी। भारत के इस रुख ने उसपर पश्चिमी देशों का दबाव भी नहीं बनने दिया। भारत के इस रुख के पीछे कई कारण हैं।
भारत के इस रुख की आलोचना भी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि भारत को रूस की निंदा करनी चाहिए और यूक्रेन का समर्थन करना चाहिए। हालांकि, भारत का मानना है कि उसका तटस्थ रुख ही युद्ध को समाप्त करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है। भारत के रुख को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि युद्ध के बाद भारत रूस के साथ अपने संबंधों को कैसे आगे बढ़ाएगा। हालांकि, यह संभावना है कि भारत रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को बनाए रखेगा। साथ ही, भारत यूक्रेन के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करेगा। ऑपरेशन रक्षक भारत सरकार द्वारा यमन में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए चलाया गया एक सैन्य अभियान था। यह अभियान 2015 में यमन में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद शुरू हुआ था। ऑपरेशन रक्षक के तहत, भारतीय वायु सेना ने यमन के विभिन्न शहरों से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए सैकड़ों उड़ानें भरी। इन उड़ानों में भारतीय नागरिकों के अलावा, कई अन्य देशों के नागरिक भी शामिल थे। ऑपरेशन रक्षक की सफलता से भारत सरकार की वैश्विक छवि को मजबूती मिली। इस अभियान में भारत सरकार ने अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। ऑपरेशन रक्षक के तहत निकाले गए भारतीय नागरिकों की संख्या 4,500 से अधिक थी। इन नागरिकों को भारतीय वायु सेना के विमानों से भारत के विभिन्न शहरों में लाया गया। ऑपरेशन रक्षक के तहत निकाले गए भारतीय नागरिकों में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल थे। इन नागरिकों को यमन में गृहयुद्ध के कारण भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। ऑपरेशन रक्षक की सफलता के लिए भारतीय वायु सेना के जवानों ने कड़ी मेहनत की थी। इन जवानों ने यमन में खतरनाक परिस्थितियों में भी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने में सफलता हासिल की।
ऑपरेशन संजीवनी भारत सरकार द्वारा श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए चलाया गया एक मानवीय अभियान था। यह अभियान 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट शुरू होने के बाद शुरू हुआ था। ऑपरेशन संजीवनी के तहत, भारतीय वायु सेना ने श्रीलंका के विभिन्न शहरों से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए सैकड़ों उड़ानें भरी। इन उड़ानों में भारतीय नागरिकों के अलावा, कई अन्य देशों के नागरिक भी शामिल थे। ऑपरेशन संजीवनी की सफलता से भारत सरकार की वैश्विक छवि को मजबूती मिली। इस अभियान में भारत सरकार ने अपने नागरिकों की मदद करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। ऑपरेशन संजीवनी के तहत निकाले गए भारतीय नागरिकों की संख्या 2,000 से अधिक थी। इन नागरिकों को भारतीय वायु सेना के विमानों से भारत के विभिन्न शहरों में लाया गया।
मोदी सरकार में भारत की एक और जीत खाड़ी देशों में मिली कही जा सकती है। मोदी इन देशों में जहां भी गए वहां उन्हें वहां के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया। सबसे पहले पीएम मोदी को पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल सर बॉब डाडे ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ग्रैंड कम्पेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ लोगोहू से सम्मानित किया था। इसी दिन फिजी के पीएम सित्विनी राबुका ने PM मोदी को ‘कम्पेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी’ से सम्मानित किया था। इसके अलावा पलाऊ गणराज्य के राष्ट्रपति सुरंगेल एस व्हिप्स जूनियर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च सम्मान ‘एबाक्ल अवॉर्ड’ से सम्मानित किया था। मोदी को भारत के दोस्त रूस ने ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू से सम्मानित किया था। इसके पहले साल 2021 में भी पीएम को भूटान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द ड्रक ग्यालपो’से पीएम मोदी को नवाजा था।
इसके 2 साल पहले बहरीन ने PM मोदी को ‘द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां’ से सम्मानित किया था। अगस्त 2019 में ही संयुक्त अरब अमीरात ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वहाँ के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह यूएई का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। फरवरी 2018 में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने पीएम मोदी को ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। जून 2016 में तब के अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अमीर अमानुल्लाह खान पुरस्कार’ से सम्मानित किया था। वहीं, अप्रैल 2016 में ही सऊदी अरब की यात्रा पर पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘किंग अब्दुलअजीज सैश’ से सम्मानित किया था।