आज हम आपको बताएंगे कि क्रैश होते वक्त पायलट जेट से कैसे बाहर आते हैं! राजस्थान के जैसलमेर में मंगलवार दोपहर बड़ा हादसा हो गया। सभी खूबियों से लैस भारतीय वायुसेना का तेजस फाइटर जेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया। राहत की बात यह रही कि विमान में मौजूद पायलट की जान बाल-बाल बच गई। हादसे का शिकार यह लड़ाकू जेट हॉस्टल की छत पर जा गिरा। ऐसे हादसों से अपनी जान बचाने के लिए पायलट अक्सर इजेक्ट टेक्निक का इस्तेमाल करते हैं। जैसलमेर में हवा में हुई इस दुर्घटना के दौरान भी मौजूद पायलट ने यही किया जिससे उसकी जान बच गई। फाइटर प्लेन उड़ा रहे पायलट इस स्थिति से कई बार बाहर निकलने में कामयाब हो जाते हैं तो वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि असफल होने के बाद उनकी जान तक चली जाती है। आज हम पायलट की इसी इजेक्ट टेक्निक के बारे में जानेंगे। हालांकि हजारों फीट ऊंचाई पर अपनी जान बचाने के लिए इजेक्ट टेक्निक जोखिम भरा काम है। जब कोई फाइटर जेट हजारों फीट की ऊंचाई पर क्रैश होता है, तब पायलट ही है जो सबसे रिस्क फेज में होता है। वह क्रैश में अपनी जान गंवा देते हैं। कई बाक खबरें आती हैं कि प्लेन हादसे में पायलट की जान चली गई। सवाल उठते हैं कि क्रैश के वक्त हर बार पायलट बाहर क्यों नहीं निकल पाते? ग्वालियर एयरबेस पर उड़ान भरते वक्त MIG-21 बायसन विमान साल 2021 में दुर्घटना का शिकार हुआ था। क्या इन फाइटर जेट में रॉकेट पावर सिस्टम नहीं होता है? नहीं, कभी कभार प्लेन में रॉकेट पावर सिस्टम होते हुए भी पायलट की जान नहीं बच पाती है।उसकी जान बचाना सबसे जरूरी हो जाता है। फाइटर प्लेन क्रैश होते वक्त पायलट प्लेन से बाहर निकलने की कवायद में लग जाता है। इसमें उसकी मदद करता है रॉकेट पावर सिस्टम। रॉकेट पावर सिस्टम पायलट सीट के नीचे होता है। यह क्रैश के वक्त अपने-आप एक्टिव नहीं होता बल्कि इसे पायलट ही एक्टिव करता है। पायलट इसे जैसे ही एक्टिव करता है, क्रैश के वक्त यह सिस्टम उसे 30 मीटर ऊपर पुश करता है। पुश होते ही प्लेन का एक छोटा सा हिस्सा खुल जाता है। इसे ही इजेक्ट टेक्निक कहा जाता है। रॉकेट वापर सिस्टम के पुश करते ही पायलट नीचे ऊंचाई से जमीन पर गिरने लगता है। उस वक्त पायलट लगभगह 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर रहता है। अधिकांश फाइटर जेट विमान जमीन के ऊपर 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होते हैं। प्लेन से पुश होने के बाद पायलट पैराशूट के सहारे नीचे आता है।
फाइटर जेट से पायलट इस रॉकेट पावर सिस्टम की मदद से हादसे तो बच जाते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वह क्रैश में अपनी जान गंवा देते हैं। कई बाक खबरें आती हैं कि प्लेन हादसे में पायलट की जान चली गई। सवाल उठते हैं कि क्रैश के वक्त हर बार पायलट बाहर क्यों नहीं निकल पाते? ग्वालियर एयरबेस पर उड़ान भरते वक्त MIG-21 बायसन विमान साल 2021 में दुर्घटना का शिकार हुआ था। क्या इन फाइटर जेट में रॉकेट पावर सिस्टम नहीं होता है? नहीं, कभी कभार प्लेन में रॉकेट पावर सिस्टम होते हुए भी पायलट की जान नहीं बच पाती है। इसके पीछे की वजह है कि, चूंकि हादसे के वक्त संकटमोचक की भूमिका निभाने वाला रॉकेट पावर सिस्टम पायलट की सीट के नीचे ही लगा होता है। हादसे के वक्त पायलट की सीट डैमेज हो जाती है। इससे पायलट के सामने खतरा कहीं अधिक हो जाता है। और ऐसे मौकों पर ही पायलट की जान चली जाती है।
इजेक्शन सीट पायलट को हादसे के वक्त जल्दी से जेट से बाहर निकालने में मदद करती है। यह पायलट को गंभीर चोटों से बचाने में मदद करती है। इजेक्शन सीट का इस्तेमाल करना खतरनाक हो सकता है। इजेक्शन सीट से बाहर निकलने के दौरान पायलट को चोट लग सकती है। जब जेट हादसे का शिकार हो जाता है। जब जेट में तकनीकी खराबी होती है। बता दें कि जैसलमेर में हवा में हुई इस दुर्घटना के दौरान भी मौजूद पायलट ने यही किया जिससे उसकी जान बच गई। फाइटर प्लेन उड़ा रहे पायलट इस स्थिति से कई बार बाहर निकलने में कामयाब हो जाते हैं तो वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि असफल होने के बाद उनकी जान तक चली जाती है। आज हम पायलट की इसी इजेक्ट टेक्निक के बारे में जानेंगे। हालांकि हजारों फीट ऊंचाई पर अपनी जान बचाने के लिए इजेक्ट टेक्निक जोखिम भरा काम है। जब जेट दुश्मन के हमले का शिकार होता है। बता दें कि इजेक्शन सीट का इस्तेमाल करने के लिए पायलट को विशेष प्रशिक्षण प्राप्त होता है।