यह सवाल उठना लाजिमी है कि समुद्र में हुए युद्ध से सेना मदद कैसे लेती है! पिछले कुछ महीनों में भारतीय नौसेना ने समुद्री हमलों से कई देशों के नागरिकों को बचाया है। शुक्रवार को भारतीय नौसेना ने अरब सागर में लुटेरों के चंगुल से ईरानी मछली पकड़ने वाली नाव अल-कंबर और उसके 23 पाकिस्तानी चालक दल के सदस्यों को बचाया। इससे पहले भी इस तरह के कई ऑपरेशन को भारतीय नौसेना अंजाम दे चुकी है। लेकिन कभी आपने सोचा है कि समुद्र के भीतर जब किसी देश के जहाज पर हमला होता है, तो वे दूसरे देशों की नौसेना से कैसे मदद मांगते हैं? आखिर भारतीय नौसेना पाकिस्तानी, कतर या किसी अन्य देशों के जहाजों के क्रू को समुद्र में कैसे बचाती है? आइए बताते हैं। दरअसल, समुद्र में अलग-अलग देशों की नौसेना अपनी पनडुब्बियों के साथ तैनात रहती है। भारतीय नौसेना भी अरब सागर और हिंद महासागर में तैनात रहती है। यहां से भारतीय नौसेनिक दुश्मनों पर नजर तो रखते ही हैं, साथ ही किसी इमरजेंसी में मदद भी पहुंचाते हैं। अगर किसी कारोबारी जहाज या किसी अन्य जहाज पर समुद्री लुटेरे या कोई अन्य दुश्मन हमला करता है, तो ऐसे में जानकारी मिलते ही नौसेना मदद भेजती है। जहाजों में खास तरह का कम्युनिकेशन सिस्टम लगा होता है, जिससे आपात स्थिति में आसपास के जहाजों को मदद के लिए सिग्नल भेजा जा सकता है। इन सिग्नलों के माध्यम से एक देश की नौसेना दूसरे देश के जहाजों को बचाने के लिए पहुंच जाती है।
अगर बात भारतीय नौसेना की करें तो हमारी नौसेना भी अपने युद्धपोतों के माध्यम से समुद्री क्षेत्र में दूसरे देश के जहाजों को बचाने के लिए कई तरीकों का उपयोग करती है। भारतीय नौसेना ने अरब सागर में समुद्री हमलों के खतरों का सामना करने के लिए कई गाइडेड मिसाइल लॉन्चर तैनात किए हैं। इसके अलावा नौसेना ड्रोन और एयरक्राफ्ट की मदद से समुद्री क्षेत्र में जहाजों की निगरानी करती है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बचाने के लिए कार्रवाई करती है। वहीं भारतीय नौसेना के पास ताकतवर पनडुब्बियां हैं, जो समुद्र के नीचे से दाग सकती हैं। सदस्यीय दल को बचाने के लिए चलाए गए 40 घंटे के अभियान के बाद 35 सोमाली लुटेरों को कानूनी कार्रवाई के लिए मुंबई ले आई थी। इस अभियान में भारतीय तट से करीब 2,600 किलोमीटर दूर समुद्री कमांडो को C-17 विमान से गिराया गया था और गोलीबारी भी हुई थी।भारतीय नौसेना ने अपनी ताकत को समुद्री क्षेत्र में बढ़ावा दिया है और विभिन्न तरीकों से दूसरे देश के जहाजों की सुरक्षा करती है।
गौरतलब है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में समुद्री लूटेरों और हूती विद्रोहियों के लगातार हमलों के चलते जहाजों के आने-जाने में दिक्कत हो रही थी। इस समस्या से निपटने के लिए भारतीय नौसेना ने “ऑपरेशन संकल्प” के तहत 23 मार्च को 100 दिन का अभियान पूरा किया। इस अभियान में अदन की खाड़ी, अरब सागर और सोमालिया के पूर्वी तट पर गश्त लगाई गई।
भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने कहा है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में सबसे बड़ी नौसेना शक्ति के रूप में, भारत इस इलाके को सुरक्षित और स्थिर बनाए रखने के लिए समुद्री लूटेरों और ड्रोन हमलों के खतरे से निपटने की कार्रवाई जारी रखेगा। बता दें कि नौसेना ने माल्टा के झंडे वाले व्यापारी जहाज “रुएन” और उसके 17 सदस्यीय दल को बचाने के लिए चलाए गए 40 घंटे के अभियान के बाद 35 सोमाली लुटेरों को कानूनी कार्रवाई के लिए मुंबई ले आई थी। इस अभियान में भारतीय तट से करीब 2,600 किलोमीटर दूर समुद्री कमांडो को C-17 विमान से गिराया गया था और गोलीबारी भी हुई थी।
अधिकारियों के मुताबिक, दिसंबर के मध्य से शुरू हुए इस अभियान में 5,000 से ज्यादा जवान, 21 युद्धपोतों के साथ 450 से ज्यादा “जहाज के दिन” और समुद्री निगरानी विमानों द्वारा 900 घंटे से ज्यादा उड़ान भरकर क्षेत्र में खतरों से निपटा गया।यहां से भारतीय नौसेनिक दुश्मनों पर नजर तो रखते ही हैं, साथ ही किसी इमरजेंसी में मदद भी पहुंचाते हैं। अगर किसी कारोबारी जहाज या किसी अन्य जहाज पर समुद्री लुटेरे या कोई अन्य दुश्मन हमला करता है, तो ऐसे में जानकारी मिलते ही नौसेना मदद भेजती है। जहाजों में खास तरह का कम्युनिकेशन सिस्टम लगा होता है, जिससे आपात स्थिति में आसपास के जहाजों को मदद के लिए सिग्नल भेजा जा सकता है। इस दौरान, नौसेना ने लगभग 20 घटनाओं का जवाब दिया और हिन्द महासागर क्षेत्र में सबसे पहले मदद पहुचाने वाला और पसंदीदा सुरक्षा सहयोगी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।