द्रौपदी मुर्मू को अब तक कितनी पार्टियों का मिला समर्थन?

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

आने वाले दिनों में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं! राष्ट्रपति चुनाव के लिए अब केवल सात दिन बचे हैं। 18 जुलाई को चुनाव होना है। इस बीच भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को एक और दल का समर्थन मिल गया है। आंध्र प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में वोट डालने का एलान किया है। इसी के साथ मुर्मू की उम्मीदवारी और मजबूत हो गई है। वहीं, विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा पीछे होते जा रहे हैं।

द्रौपदी मुर्मू को किन-किन दलों ने दिया समर्थन?

एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को अब तक भाजपा के अलावा बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, जनता दल सेक्युलर, शिरोमणि अकाली दल, जेडीयू, एआईएडीएमके, लोक जन शक्ति पार्टी, अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले), एनपीपी, एनपीएफ, एमएनएफ, एनडीपीपी, एसकेएम, एजीपी, पीएमके, एआईएनआर कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, यूडीपी, आईपीएफटी, यूपीपीएल जैसी पार्टियों ने समर्थन दे दिया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में सपा गठबंधन में शामिल ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर सकती है। समाजवादी पार्टी के विधायक शिवपाल सिंह यादव ने भी मुर्मू के पक्ष में ही वोट डालने का एलान किया है। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का जनसत्ता दल लोकत्रांत्रिक भी एनडीए प्रत्याशी को सपोर्ट कर रहा है।विपक्ष में होने के बाद भी बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, जनता दल सेक्युलर, अकाली दल, टीडीपी और बहुजन समाज पार्टी ने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया है। इन सभी के पास 6.50 लाख वैल्यू से ज्यादा के वोट हैं। ये आंकड़ा जीतने के लिए जरूरी संख्या से काफी ज्यादा है।

सिन्हा को कहां-कहां से मिला समर्थन?

यशवंत सिन्हा को अब तक कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी, सीपीआई, सीपीआई (एम) समाजवादी पार्टी, रालोद, आरएसपी, टीआरएस, डीएमके, नेशनल कांफ्रेंस, भाकपा, आरजेडी, केरल कांग्रेस (एम) जैसे कई दलों का समर्थन मिल चुका है। यशवंत के पास अभी करीब तीन लाख 89 हजार वैल्यू के वोट हैं। केरल के छोटे-बड़े सभी दलों ने यशवंत सिन्हा को ही समर्थन दिया है। ऐसे में संभव है कि यहां से एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को यहां एक भी वोट न मिले। सिन्हा को विपक्ष के कई दलों ने बड़ा झटका दिया है। इनमें बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, जनता दल सेक्युलर, अकाली दल, टीडीपी, बहुजन समाज पार्टी शामिल हैं।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए ज्यादातर बड़ी पार्टियों ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। लेकिन अभी भी कुछ दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है। 10 राज्यसभा सांसद भी हैं। अभी तक आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कुछ साफ नहीं किया है। इसके अलावा झारखंड की सत्ताधारी झामुमो ने भी अब तक कुछ साफ नहीं किया है। हालांकि माना जा रहा है कि झामुमो द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे सकती है। शिवसेना ने भी अब तक आंतरिक कलह के चलते किसी भी उम्मीदवार के समर्थन का एलान नहीं किया है। हालांकि, माना जा रहा है कि भाजपा के साथ सरकार बनाने वाले विधायक और ज्यादातर सांसद एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को ही सपोर्ट करेंगे।

राष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के निर्वाचित सांसद, सभी राज्यों के विधायक वोट करते हैं। इनके वोट की कुल वैल्यू 10 लाख 86 हजार 431 होती है। इस तरह जीत के लिए आधे से एक वोट की ज्यादा जरूरत होती है। मतलब उम्मीदवार को जीत के लिए कम से कम पांच लाख 43 हजार 216 वोट चाहिए होंगे। 

अभी भाजपा के पास करीब छह लाख 50 हजार वैल्यू के वोट हैं। मतलब जीत के लिए निर्धारित वोट से कहीं ज्यादा, वहीं सिन्हा के पास करीब तीन लाख 89 हजार वैल्यू के वोट हैं। मतलब जीत के लिए निर्धारित वोट वैल्यू से करीब डेढ़ लाख कम। ऐसे में अब तक जो आंकड़े दिख रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि द्रौपदी मुर्मू ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सकती हैं।भाजपा मुर्मू की वह छवि भुनाना चाहती है जिसमें ओडिशा में रहते हुए उन्होंने आदिवासी समुदाय के लिए बड़ा काम किया था। उन्होंने आदिवासियों के कथित धर्मपरिवर्तन के खिलाफ ईसाई मिशनरियों बड़ा अभियान चलाया था। इस तरह भाजपा न केवल आदिवासियों को साधने में सफल हो सकती है, बल्कि ईसाई मिशनरियों के खिलाफ उसके आनुषंगिक संगठनों के कार्यों को इन इलाकों में मजबूती मिल सकती है। शिंदे का मानना है कि इसके साथ जनजातीय समुदाय की वह नाराजगी भी उभर कर सामने आ सकती है कि मुर्मू ने उस समय कोई हस्तक्षेप नहीं किया जब ओडिशा की खानों से आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा था और उन्हीं के जंगलों से उनका अधिकार छीना जा रहा था। आदिवासियों का मानना है कि द्रौपदी मुर्मू उस समय बड़ी शख्सियत बन चुकी थीं। 2006 में बने वनाधिकार कानून में वन भूमि से संबंधित कोई भी निर्णय आदिवासी समुदाय की एक विशेष कमेटी लिया करती थी। उसकी सहमति के बिना जंगल भूमि पर कोई भी प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं हो सकता था, जबकि बदले कानून में आदिवासियों की भूमिका को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। आदिवासी समुदाय के बीच यह एक बड़े असंतोष का कारण बना हुआ है। हालांकि, ये मुद्दे कितना राजनीतिक रंग पकड़ते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस इस मुद्दे को कितनी संजीदगी के साथ उठाती है। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा पर हमला बोलकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं, जबकि दूसरी तरफ द्रौपदी मुर्मू के सामने दावेदारी पेश कर रहे यशवंत सिन्हा इस मुद्दे पर खामोश हैं।