पिछले 3 सालों में भारत ने कई बाघों को खोया है! सरकार ने बताया कि भारत में पिछले तीन साल में 329 बाघों की मौत शिकार, प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारणों से हो गयी।उसने यह भी कहा कि इसी अवधि में शिकार, बिजली का करंट लगने, जहरीले पदार्थ का सेवन करने और ट्रेन हादसों की वजह से 307 हाथियों की मृत्यु हो गयी।केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने सोमवार को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि 2019 में 96 बाघों की मौत हो गयी, 2020 में 106 तथा 2021 में 127 बाघ मारे गये। चौबे के अनुसार इनमें 68 बाघ प्राकृतिक कारणों से, पांच अप्राकृतिक कारणों से और 29 बाघ शिकारियों के हमलों में मारे गये।
मंत्री के जवाब में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार शिकार के मामलों की संख्या में कमी आई है जो 2019 में 17 से 2021 में घटकर चार रह गयी है।
आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि में बाघों के हमलों में 125 लोग मारे गये जिनमें 61 महाराष्ट्र में और 25 उत्तर प्रदेश में मारे गये।
चौबे ने कहा कि पिछले तीन साल में देश में 222 हाथियों की मौत हो गयी जिनमें ओडिशा में 41, तमिलनाडु में 34 और असम में 33 हाथी मारे गये।जवाब के अनुसार 45 हाथियों की मौत ट्रेन दुर्घटनाओं में हुई जिनमें 12 ओडिशा में और 11 पश्चिम बंगाल में मारे गये।आंकड़े बताते हैं कि 29 हाथियों की मौत शिकार की वजह से हुई जिनमें मेघालय में 12 और ओडिशा में 7 हाथी मारे गये, वहीं इस अवधि में 11 हाथी जहरीले पदार्थ का सेवन करने की वजह से मारे गये और इनमें नौ मामले असम के थे।
भारत में 2012 से अब तक 1,059 बाघों की मृत्यु हो चुकी है। मध्य प्रदेश को ‘बाघ राज्य’ के रूप में जाना जाता है और यहां बाघों की मृत्यु की सर्वाधिक संख्या दर्ज की गई है। सरकारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गयी।राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक, इस साल अब तक 75 बाघों की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले साल 127 बाघों की मौत हुई थी। यह 2012 से लेकर 2022 की अवधि में सबसे ज्यादा है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में 106 बाघों की मौत हुई थी, 2019 में 96, 2018 में 101, 2017 में 117, 2016 में 121, 2015 में 82, 2014 में 78, 2013 में 68 और 2012 में 88 बाघों की मौत हुई थी।
मध्य प्रदेश में छह बाघ अभयारण्य हैं। यहां 2012-2022 की अवधि के दौरान सबसे अधिक (270) मौतें दर्ज कीं गयीं। इसके बाद महाराष्ट्र (183), कर्नाटक (150), उत्तराखंड (96), असम (72), तमिलनाडु (66) हैं। उत्तर प्रदेश (56) और केरल में 55 बाघों ने दम तोड़ा। राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में क्रमश: 25, 17, 13, 11 और 11 बाघों की मौत हुई।मध्य प्रदेश में पिछले डेढ़ साल में 68 बाघों की मौत हुई, जबकि महाराष्ट्र में इस अवधि में 42 बाघों की मौत हुई है।
2018 की बाघ गणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश 526 बाघों के साथ भारत के ‘बाघ राज्य’ के रूप में उभरा था। इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघों की संख्या दर्ज की गयी थी।आंकड़ों के मुताबिक 2012-2020 की अवधि में 193 बाघों की शिकार के कारण मौत हुई। जनवरी 2021 से अवैध शिकार के कारण हुई मौतों के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।
अधिकारियों ने 108 बाघों की मौत के कारण ”कैद करना” बताया है, जबकि इस अवधि में ”प्राकृतिक” कारणों से 44 बाघों की मृत्यु हुई।
एनटीसीए के अनुसार, शुरुआत में सभी बाघों की मौत का कारण अवैध शिकार को माना जाता है।
मध्य प्रदेश में छह बाघ अभयारण्य हैं। यहां 2012-2022 की अवधि के दौरान सबसे अधिक (270) मौतें दर्ज कीं गयीं। इसके बाद महाराष्ट्र (183), कर्नाटक (150), उत्तराखंड (96), असम (72), तमिलनाडु (66) हैं। उत्तर प्रदेश (56) और केरल में 55 बाघों ने दम तोड़ा। राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में क्रमश: 25, 17, 13, 11 और 11 बाघों की मौत हुई।मध्य प्रदेश में पिछले डेढ़ साल में 68 बाघों की मौत हुई, जबकि महाराष्ट्र में इस अवधि में 42 बाघों की मौत हुई है।
2018 की बाघ गणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश 526 बाघों के साथ भारत के ‘बाघ राज्य’ के रूप में उभरा था। इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघों की संख्या दर्ज की गयी थी।आंकड़ों के मुताबिक 2012-2020 की अवधि में 193 बाघों की शिकार के कारण मौत हुई। जनवरी 2021 से अवैध शिकार के कारण हुई मौतों के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।
अधिकारियों ने 108 बाघों की मौत के कारण ”कैद करना” बताया है, जबकि इस अवधि में ”प्राकृतिक” कारणों से 44 बाघों की मृत्यु हुई।