पूरे भारतवर्ष में भाजपा की सरकार बन चुकी है! राज्य में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की जनसंख्या 85 फीसदी के करीब है, तो मुस्लिम आबादी लगभग 12.7 फीसदी है। मुस्लिमों की कम आबादी होने के बाद भी वे यहां की राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। अकेले हैदराबाद में मुस्लिमों की आबादी 43 फीसदी है जो असदुद्दीन ओवैसी की बड़ी राजनीतिक जमापूंजी है! भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 2-3 जुलाई को हैदराबाद में हो रही है। भाजपा ने बहुत सोच-समझकर कार्यकारिणी की बैठक हैदराबाद में रखी है, ताकि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले राज्य में माहौल बनाया जा सके। भाजपा का सबसे बड़ा चुनावी हथियार ‘हिंदू कार्ड’ रहा है। राज्य के नेता जिस तरह ओवैसी पर हमला बोल रहे हैं, समझा जा सकता है कि इस राज्य की सत्ता में पहुंचने के लिए भी वह यहां इसी कार्ड का उपयोग करने वाली है। लेकिन क्या यहां पर भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड सफल रहेगा? इस मोर्चे पर केसीआर उसे कितनी चुनौती दे सकते हैं?
राज्य में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की जनसंख्या 85 फीसदी के करीब है, तो मुस्लिम आबादी लगभग 12.7 फीसदी है। मुस्लिमों की कम आबादी होने के बाद भी वे यहां की राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। अकेले हैदराबाद में मुस्लिमों की आबादी 43 फीसदी है जो असदुद्दीन ओवैसी की बड़ी राजनीतिक जमापूंजी है। इसी आबादी के बल पर ओवैसी यहां की महत्त्वपूर्ण सीटों पर लगातार जीत दर्ज करते रहे हैं। हैदराबाद के अलावा महबूब नगर में मुस्लिम आबादी 33.72 फीसदी, निजामाबाद में 38 फीसदी, नालगोंडा में 19.25 फीसदी, खम्माम में 16 फीसदी और आदिवासी इलाके वारंगल में 26 फीसदी है। करीमनगर में लगभग 21 फीसदी मुस्लिम आबादी जीत का निर्णय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने कुल 119 सीटों वाले सदन में अकेले 88 सीटों पर जीत हासिल किया था। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को सात सीटों पर सफलता मिली थी। कांग्रेस और तेलगुदेशम पार्टी सहित अन्य दल मिलाकर केवल 21 सीटें हासिल कर सके थे। भाजपा ने इसके पहले के चुनाव में पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन इस चुनाव में वह केवल एक सीट पर सिमट कर रह गई थी। इसे राज्य में हिंदुत्व की राजनीति की समाप्ति बताया गया था।तेलंगाना प्रेस क्लब के अध्यक्ष बालास्वामी ने अमर उजाला को बताया कि चूंकि 2014 में गठित होने वाले इस राज्य में यह पहला चुनाव था, और केसीआर इसके बड़े चेहरे बनकर उभरे थे, लिहाजा जनता ने एकमुश्त उन्हें समर्थन दिया था। राज्य के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद भी कांग्रेस इसमें सबसे ज्यादा नुकसान में रही क्योंकि तेलंगाना की जनता उसे खलनायक के तौर पर देख रही थी। उसे लग रहा था कि राज्य के विभाजन में ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्से आंध्रप्रदेश के पास रह गए थे, जबकि तेलंगाना के हिस्से में हैदराबाद के अलावा और कुछ नहीं आया था।
बालास्वामी के मुताबिक तेलंगाना में आदिवासी, किसान और मजदूरों का मुद्दा हमेशा से प्रमुख रहा था। आंध्र प्रदेश का हिस्सा होने के बाद भी इस इलाके में उसी दल की आवाज सुनी जाती थी, जो इनकी बात किया करता था। राज्य के गठन के बाद इन वर्गों के मुद्दे यहां की राजनीति का प्रमुख केंद्र बन गए। लेकिन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही घटनाओं से तेलंगाना की जनता भी प्रभावित हो रही थी। इसका असर यहां के चुनावों में भी धीरे-धीरे दिखने लगा।
2014 के लोकसभा चुनाव में अविभाजित आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी को 16, टीआरएस को 11, जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी को नौ सीटें मिली थीं। 42 लोकसभा सीटों वाले आंध्रप्रदेश में भाजपा को केवल तीन सीटों पर सफलता मिली थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने चार सीटें जीतकर सत्तारूढ़ दल के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी। जबकि परंपरागत रूप से मुसलमानों के हितों की राजनीति करने वाली ओवैसी की पार्टी को यहां केवल एक सीट पर सफलता मिली।
भाजपा को लगता है कि यह परिणाम मतदाताओं में धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण हुआ है और यही कारण है कि वह इस मुद्दे को हवा देकर अगले विधानसभा चुनाव में अपने लिए सीट सुरक्षित करना चाहती है। पार्टी को उम्मीद है कि यदि उसने तेलंगाना में सफलता पाई तो उसके लिए दक्षिण का द्वार खुल सकता है। पार्टी इसी रणनीति में अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी का बखूबी इस्तेमाल करने में जुटी है। उसके सभी केंद्रीय नेता राज्य की सभी 119 विधानसभा सीटों पर दो दिनों (30 जून-01 जुलाई) को जनता से सीधा संपर्क करने में जुटे हैं तो अगले दो दिनों में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का रोड शो कर और प्रधानमंत्री का कार्यक्रम कर राज्य में भगवा रंग और ज्यादा गाढ़ा करने की कोशिश की जाएगी।
बालास्वामी के मुताबिक केसीआर हिंदुत्व कार्ड पर भाजपा से कमजोर नहीं हैं। राज्य में उन्होंने 1800 करोड़ रुपये लगाकर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया है, तो स्वयं परंपरागत हिंदू की तरह जीवन जीकर हिंदुओं के बीच लोकप्रिय हैं। आदिवासी-श्रमिक मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत है। मुसलमानों को भी विभिन्न योजनाओं के जरिए वे साधते रहे हैं। राज्य में उनके प्रशंसकों की संख्या काफी है, लेकिन उनकी पार्टी पर लग रहे भ्रष्टाचार-परिवारवाद के आरोप उन पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा को इन्हीं परिस्थितियों में अपने लिए संभावना दिख रही है।