आज हम आपको बताएंगे की पहली बार जब रामलाल प्रकटे थे तो कैसी थी अयोध्या! 22 दिसंबर की वह रात भी अच्छी तरह याद है। 23 दिसंबर की वह सुबह भी। मेरे प्रभु रामलला की जन्मभूमि पर 22 दिसंबर 1949 को जो कुछ हुआ, उसने एक ही रात में राम मंदिर आंदोलन की सूरत बदल कर रख दी। इससे 15 साल पहले 1934 में अयोध्या में जुटे राम भक्तों ने दूसरी बार बाबरी मस्जिद तक पहुंचाने का साहस दिखाया था। पहली बार 1853 में बाबरी मस्जिद तक राम भक्त पहुंचे थे। पहली बार आंशिक नुकसान पहुंचाया गया था। इसके बाद अगले 2 साल तक दंगे भड़कते रहे। अवध के शासक नवाब वाजिद अली शाह की रिपोर्ट कहती है कि 1855 के दंगों में 70 मुसलमानों की मौत हुई थी। 1934 में मस्जिद के तीनों गुंबदों को हिंदुओं ने ढहा दिया। तनाव भड़का। बाद में फैजाबाद डीएम ने इसका पुनर्निर्माण कराया। आजाद देश में पहली बार मेरी धरती पर वह हुआ, जिसका अंदेशा किसी को नहीं था। हिंदू पक्ष जिस विवादित बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद को प्रभु रामलला का जन्म स्थान बताता रहा था, वहां पर भगवान राम के बाल स्वरूप का प्रगटीकरण हो गया। 22 दिसंबर की ठंडी में आधी रात की इस घटना ने सुबह तक तूल पकड़ लिया था। मेरी की गलियों में जुटे लोग ‘भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी’ भजन गाने लगे। देखते ही देखते राम जन्मभूमि परिसर हिंदुओं से पट गया। इसके बाद आजाद देश की पहली सत्ता उसे वाकये से निपट पाने में सक्षम नहीं हो पाई। 15 साल पहले जिस मस्जिद के गुंबद को तोड़ा गया था और वहां फैजाबाद डीएम ने पुनर्निर्माण कराया। उसी मस्जिद में प्रगट हुए प्रभु रामलला को बाहर निकालने की हिम्मत फैजाबाद के तत्कालीन डीएम ने नहीं दिखाई। केंद्र की जवाहरलाल नेहरू सरकार से लेकर यूपी की गोविंद बल्लभ पंत सरकार तक फैजाबाद डीएम से कार्रवाई की बात करती रही, लेकिन उन्होंने आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया। डीएम की ओर से कहा गया कि इस समय कोई भी एक्शन अयोध्या, प्रदेश और देश के सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक सकता है। इसके बाद शुरू हुआ विवाद का एक लंबा दौर, जो अगले करीब 60 सालों तक आजाद देश की दशा और दिशा तय करता रहा।
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद से धार्मिक तौर पर लोगों में जागरूकता बढ़ने लगी। सोमनाथ का मामला गरमाया हुआ था। लौहपुरुष सरदार पटेल ने इसके पुनर्निर्माण की योजना को हरी झंडी दे दी। इसके बाद हिंदूओं ने मेरे प्रभु रामलला के धाम को मुक्त कराने की मांग शुरू कर दी। देश में संविधान की रचना चल रही थी। पाकिस्तान ने खुद को मुस्लिम देश के रूप में स्थापित कर लिया था। वहीं, भारत को धर्म निरपेक्ष देश के रूप में विकसित किए जाने की बात संविधान में रखे जाने पर चर्चा चल रही थी। इसी दौरान हिंदुओं की महत्वाकांक्षा ने हिलोर मारना शुरू कर दिया। प्रभु रामलला को उनके धाम में स्थापित करने की चर्चा शुरू हो गई। 1859 में अंग्रेजी सरकार के बंटवारे के तहत प्रभु रामलला को बाबरी मस्जिद के बाहर बनाए गए चबूतरे पर स्थापित किया था। मेरे प्रभु की वहीं पूजा हो रही थी। वहीं, बाबरी मस्जिद मुसलमानों को दी गई थी। देश को धर्म के आधार पर आजादी मिली तो हिंदू पक्ष ने प्रभु रामलला के जन्मस्थान पर दावा शुरू कर दिया। हालांकि, आजाद भारत की सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। फिर, ऐसा कुछ हुआ, जिसने देश में हलचल पैदा कर दी।
22- 23 दिसंबर 1949 की रात थी। अचानक अयोध्या में खबर फैली कि बाबरी मस्जिद के गर्भगृह में रामलला प्रगट हो गए हैं। देखते ही देखते यह खबर आग की तरह फैल गई। चारों तरफ से ‘भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी, हर्षित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप विचारी’ का पाठ करते लोग राम जन्मभूमि की तरफ बढ़ने लगे। ऐसा नहीं था कि मेरे यहां पर पहली बार भय प्रगट कृपाला का पाठ हो रहा था। मेरे यहां तो 500 सालों से यह भजन पढ़ा जाता रहा है। 23 दिसबर 1949 को इस भजन के मायने ही बदल गए थे। भोर होते-होतेजंगल में आग की तरह भगवान राम प्रगट होने की बात फैल गई थी। बस यही चर्चा हो रही थी कि रघुकुल कुलभूषण भगवान श्रीराम बाल रूप में जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में पधार चुके थे। बाबरी मस्जिद के प्रांगण हिंदू श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से पट चुकी थी। प्रभु श्रीराम के बालरूप के दर्शन के लिए वहां पर भारी भीड़ जमा थी। भगवान का दर्शन कर हर कोई विभोर हो रहा था।
1934 की घटना के बाद से राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद परिसर का रोज निरीक्षण होने लगा था। रूटीन जांच के लिए अयोध्या थाने के एसएचओ यहां रोज आते थे। 23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे तत्कालीन एसएचओ रामदेव दुबे जब रूटीन चेकिंग के लिए पहुंचे तो वहां की स्थिति देखकर दंग रह गए। करीब 500 लोग बाबरी परिसर में जमा थे। उन्होंने तत्काल मामले की सूचना सीनियर अधिकारियों को दी। सीनियर अधिकारी स्थिति को समझ पाते, तब तक दोपहर हो चुकी थी। बाबरी परिसर करीब 5000 लोगों से पट चुका था। अयोध्या के आसपास के गांवों से भी लोग दौड़ते- भागते राम जन्मभूमि मंदिर पहुंच रहे थे। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इस भीड़ को देखकर दंग थी। प्रभु रामलला किसी आम मंदिर तो प्रगट हुए नहीं थे। बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे वे प्रगट हुए थे। बाबरी को लेकर लोगों में धारणा थी कि राम मंदिर को तोड़कर इसे बनाया गया था। रख-रखाव के अभाव में बाबरी जर्जर हो रही थी। शुक्रवार को जुमे की नमाज के लिए खुलती थी। बाकी दिनों में तो एक-दो लोग ही इधर आते थे। लेकिन, वह दिन अलग थी।
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की किताब ‘अयोध्याः 6 दिसंबर 1992’ में 23 दिसंबर 1949 की घटना का पूरा जिक्र है। उन्होंने अयोध्या थाने में दर्ज की गई उस एफआईआर का विवरण भी दिया है, जिसे 23 दिसंबर 1949 की सुबह दर्ज किया था। एसएचओ रामदेव दुबे ने आईपीसी की धारा 147, 448 और 295 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। इसमें लिखा गया कि रात में 50- 60 लोग ताला तोड़कर और दीवार फांदकर मस्जिद में घुसे। वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की। उन्होंने दीवार पर अंदर और बाहर गेरुए और पीले रंग से ‘सीताराम’ आदि भी लिखा। उस समय ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल ने उन्हें ऐसा करने से मना किया, लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वहां तैनात पीएसी को भी बुलाया गया, लेकिन उस समय तक वे मंदिर में प्रवेश कर चुके थे।
फैजाबाद डीएम की अपनी अलग चिंता थी। वे बल प्रयोग के जरिए एक बड़े विवाद को खड़ा नहीं करना चाहते थे। चीफ सेक्रेटरी को भेजे गए पत्र में डीएम ने साफ किया रामलला की मूर्ति को हटाने के बाद बड़े पैमाने पर विवाद भड़क सकता है। जिला प्रशासन के अधिकारियों और पुलिस वालों की जान की गारंटी भी नहीं दी जा सकती है। डीएम ने सरकार को बताया कि अयोध्या में ऐसा पुजारी मिलना असंभव है, जो विधिपूर्वक रामलला की मूर्तियों को गर्भगृह से हटाने के लिए तैयार हो जाए। कोई भी इस प्रकार का कृत्य करके अपने इहलोक के साथ- साथ परलोक को भी बिगाड़ना नहीं चाहेगा। इस प्रकार का कार्य करने वाले पुजारी का मोक्ष संकट में पड़ जाएगा। कोई भी पुजारी ऐसा करने को तैयार नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश की गोविंद वल्लभ पंत सरकार डीएम केकेके नायर के तर्कों से सहमत नहीं थी। सरकार की ओर से दोबारा आदेश दिया गया कि पुरानी स्थिति को हर हाल में बहाल किया जाए। चार दिन बाद 27 दिसंबर 1949 को डीएम नायर ने अपना जवाब भेजा। डीएम नायर ने सरकार के आदेश पर अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। इसके साथ-साथ विवाद से निपटने के लिए सरकार को एक रास्ता भी सुझाया। डीएम नायर ने पंत सरकार को सलाह दी कि विस्फोटक हालात को काबू में करने के लिए इस मसले को कोर्ट पर छोड़ सकते हैं।
डीएम ने सुझाव में कहा कि कोर्ट का फैसला आने तक विवादित ढांचे के बाहर एक जालीदार गेट लगाया जा सकता है। वहां से श्रद्धालुओं को रामलला के दर्शन की सुविधा होगी। लेकिन, अंदर प्रवेश नहीं मिलेगा। रामलला की नियमित पूजा और भोग लगाने के लिए नियुक्त पुजारियों की संख्या तीन से घटाकर एक करने का सुझाव दिया गया। विवादित ढांचे के आसपास सुरक्षा का घेरा सख्त करने की बात कही गई। इससे उत्पातियों को वहां आने से रोका जा सकता था। केंद्र की नेहरू और यूपी की पंत सरकार ने डीएम नायर का इस्तीफा अस्वीकृत कर दिया। डीएम के सुझावों पर अमल किया गया। इस तरह रामलला की मूर्ति बाबरी मस्जिद के गर्भगृह में रह गई। रामलला ताले में बंद हो गए। इसके साथ ही उस विवाद के बीजारोपण हो गया, जिसने आगे चलकर देश की राजनीतिक और धार्मिक दिशा बदलकर रख दी।