मोदी सरकार का कैसे सामना करेगी कांग्रेस?

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जहां एक और कांग्रेस पूरे देश को जोड़ने लगी थी वही खुद ही टूटने चली है! क्या देश का सबसे पुराना दल अब ‘समग्र रूप से नष्ट हो चुका है। कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व आतंरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है? आखिर क्या है कि देश में करीब 7 दशक तक सत्ता में रही पार्टी से उसके दिग्गज नेताओं का मोह भंग हो रहा है। चुनावी हार और दरकते जनाधार के बीच कांग्रेस अब तक सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। ऐसे में कांग्रेस के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जब कांग्रेस संगठनात्मक चुनाव की दिशा में आगे बढ़ रही है। पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होने वाला है। इस बीच आखिर क्या हो गया कि संसद के भीतर से लेकर बाहर तक पार्टी की पहचान रहा दिग्गज नेता पार्टी छोड़ने को मजबूर हो गया। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद से एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ पार्टी जहां भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी कर रही हैं, वहीं पार्टी खुद टूट रही है। आखिर में क्या पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ की जरूरत है। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे में इसका भी जिक्र किया है। कई तथ्य इस बात की पुष्टि भी करते हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी। वहीं, इस दौरान 177 सांसद और विधायक पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। स्थिति यह है कि पिछले 8 महीने के दौरान ही कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल, कुलदीप बिश्नोई जैसे बड़े नेता पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। पूर्वोत्तर में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक, उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल, तमिलनाडु तक पार्टी के दिग्गज नेता साथ छोड़ चुके हैं।

कैसे करेगी मुकाबला?

साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा स्थिति को देखें तो विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में अगर बीजेपी को सत्ता से दूर रखना है तो विपक्ष को एकजुट होना होगा। कई विश्लेषक मानते हैं क्षेत्रीय दलों की स्थिति और महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए कांग्रेस को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 2014 से पहले कांग्रेस ने जिस तरह से यूपीए सरकार चलाई थी, उसके लिए उसे फिर से अगुवा बनना होगा। इसके उलट जहां कांग्रेस दूसरों को एकजुट करती, उससे अपना ही घर नहीं संभल रहा है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को किस बूते मात दे पाएगी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशक बाद कांग्रेस को अलविदा कहा। आजाद ने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अपने इस्तीफे में आरोप लगाया कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि बीते आठ वर्षो में नेतृत्व ने एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी पर थोपने का प्रयास किया जो गंभीर नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि दरबारियों के संरक्षण में कांग्रेस को चलाया जा रहा है। गुलाम नबीं ने कहा कि पार्टी देश के वास्ते सही चीजों के लिये संघर्ष करने की अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता खो चुकी है। गुलाम नबी पार्टी में बदलाव की मांग करने वाले जी 23 समूह का हिस्सा रहे थे। आजाद ने पार्टी में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया को ‘धोखा’ करार दिया। उन्होंने कहा कि देश में कहीं भी, पार्टी में किसी भी स्तर पर चुनाव संपन्न नहीं हुए।

कांग्रेस में जी-23 गुट के प्रमुख नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल ने इसी साल मई में पार्टी छोड़ दी थी। सिब्बल ने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी करना मुफीद समझा। सपा के टिकट पर वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। पार्टी से इस्तीफा देने से पहले सिब्बल लगातार मिल रही चुनावों में हार का ठीकरा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सिर पर फोड़ा था। गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने पूछा था कि जब अध्यक्ष ही नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? इससे पहले चांदनी चौक से सांसद, यूपीए सरकार में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी रहे। सिब्बल ने कई बड़े मसलों पर सुप्रीम कोर्ट में पार्टी की पुरजोर तरीके से पैरवी की थी। वहीं, पार्टी के शीर्ष नेतृ्त्व के खिलाफ आवाज उठाने पर उनके घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से तोड़फोड़ भी हुई थी।

इस साल उदयपुर में जारी चिंतन शिविर के बीच पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी से अपना रिश्ता खत्म कर लिया था। जाखड़ का कांग्रेस से तीन पीढ़ियों का रिश्ता था। पंजाब में सीएम पद के दावेदार रहे सुनील जाखड़ को अनुशासन तोड़ने का दोषी करार देते हुए पार्टी की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जाखड़ इससे काफी नाराज थे। वहीं, पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर में पहले पार्टी के कद्दावर नेता और प्रदेश के सीएम रहे अमरिंदर सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया था। एक माह तक बगावती तेवर अपनाने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजकर कांग्रेस से किनारा कर लिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई कर चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किया था। वहीं, पंजाब से इस साल फरवरी में पार्टी को एक और झटका अश्विनी कुमार के रूप में लगा था। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार 46 साल तक कांग्रेस के साथ थे।