महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है, वहीं दूसरी ओर आरबीआई भी इसे कम करने के चक्कर में लगी हुई है! ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर आरबीआई और सरकार दोनों बंट गए हैं। इस मुद्दे पर दोनों की अलग-अलग राय है। आरबीआई लगातार प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है। 21 सितंबर को अमेरिकी केंद्रीय बैंक की बैठक होगी। इसमें ब्याज दरों में बढ़ोतरी की पूरी उम्मीद है। इससे आरबीआई पर दबाव बढ़ जाएगा। महीने के आखिर में 28 सितंबर से 30 सितंबर के बीच आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक होगी। माना जा रहा है कि आरबीआई महंगाई को थामने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा। वहीं, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार ब्याज दरें बढ़ाने के पक्ष में नहीं है।
इकोनॉमी में डिमांड और सप्लाई के बीच बैलेंस बनाना काफी जरूरी होता है। जब डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम रह जाए, तो महंगाई बढ़ने लगती है। डिमांड बढ़ने के पीछे एक कारण लिक्विडिटी का अधिक होना भी है। जब लोगों के पास अधिक मात्रा में पैसा होगा, तो वे ज्यादा खर्च करेंगे और डिमांड बढ़ेगी। एक अच्छी डिमांड जीडीपी ग्रोथ के लिए बढ़िया होती है। लेकिन जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक बाजार से लिक्विडिटी को कम करने की कोशिश करते हैं। केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर देते हैं। इसके बाद बैंकों को भी लोन पर दरें बढ़ानी होती हैं। बढ़ी हुई ब्याज दरों के चलते ग्राहक लोन लेना कम कर देते हैं। इससे बाजार में लिक्विडिटी पैसों की आवक कम हो जाती है और महंगाई पर काबू पाया जाता है। साथ ही सस्ता लोन नहीं मिलने पर कारोबारी भी अपना इन्वेस्टमेंट कम कर देते हैं, जिससे डिमांड कम हो जाती है।
इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार ने बताया कि सरकार को ब्याज दरें बढ़ने से ग्रोथ रेट कम हो जाने का डर है। उन्होंने कहा, ‘ब्याज दरें बढ़ाने से बाजार में लिक्विडिटी कम होती है, जिससे देश की विकास दर प्रभावित होती है। ग्रोथ कम रही, तो बेरोजगारी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। प्रति व्यक्ति आय में भी कमी आएगी। देश की जीडीपी अभी साल 2019-20 की तुलना में 3-4 फीसदी ही बढ़ी है। जबकि यह 12 फीसदी बढ़ जानी चाहिए थी। अगर हम असंगठित क्षेत्र की स्थिति को देखें, तो जीडीपी में उतनी बढ़ोतरी भी नहीं हुई हैं, क्योंकि आंकड़े संगठित क्षेत्र से ही आते हैं। कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक मुद्दों सहित जो भी कारण रहे हों, हमारी जीडीपी करीब 10 फीसदी कम बढ़ी है। ऐसे में सरकार नहीं चाहती कि ब्याज दरें बढ़ाने का असर जीडीपी ग्रोथ पर पड़े। सरकार चाहती है कि दरों को थोड़ा ही बढ़ाया जाए, जिससे डिमांड प्रभावित नहीं हो।’
प्रोफेसर अरुण ने आगे कहा, ‘दुनियाभर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी कर रहे हैं। वे मौद्रिक पॉलिसी को देखते हुए ऐसा कर रहे हैं। अगर अमेरिका सहित अन्य केंद्रीय बैंक ब्याज दर बढ़ाते रहें और आरबीआई ना बढ़ाए, तो दिक्कत हो जाएगी। विदेशी निवेशकों को भारतीय बाजार से कम रिटर्न मिलने लगेगा। इससे वे यहां से पैसा निकालेंगे। जब विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकालेंगे, तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर से 550 अरब डॉलर पर आ गया है। ज्यादा गिरावट नहीं आए, इसके लिए आरबीआई को रेपो रेट बढ़ानी पड़ती है।’
अन्य देशों की तरह भारत बांड जारी करता है। ये बांड लाखों करोड़ रुपयों के होते हैं। इन बांड्स में विदेशी निवेशक बड़ी मात्रा में पैसा लगाते हैं। निवेशकों को इस बांड पर ब्याज मिलता है। सरकार इन बांड्स से जुटाए गए पैसों को विकास कार्यों आदि में खर्च करती है। जब केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दर बढ़ाते हैं, तो बांड्स पर ब्याज दर भी बढ़ती है। मान लीजिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर बढ़ाई। इससे वहां के बांड पर भी ब्याज दर बढ़ेगी। अब अगर भारत अपने यहां प्रमुख ब्याज दर नहीं बढ़ाता है, तो धीरे-धीरे अमेरिका और भारत के बांड पर मिलने वाली ब्याज दर का अंतर कम हो जाएगा। अब निवेशक भारत के बांड से पैसा निकालकर अन्य जगहों पर लगाने लगेंगे। साफ है कि इससे विदेशी निवेश घट जाएगा। भारतीय बांड बाजार से एफपीआई की निकासी ना हो, इसके लिए भारत में भी आरबीआई को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं। इसी तरह ही दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी ब्याज दरें बढ़ाती हैं।
दुनियाभर में मंदी आ रही है। आंतरिक और बाहरी दोनों स्तरों पर सप्लाई संकट है। रूस यूक्रेन युद्ध और चीन में कोरोना महामारी जैसे कारणों से कमोडिटीज के दाम बढ़े हुए हैं। देश में थोक महंगाई भी काफी ऊपर है। लेकिन इन सब का मनी सप्लाई से अधिक लेना-देना नहीं है। आरबीआई के रेपो रेट बढ़ाने से चीन का लॉकडाउन नहीं हटने वाला है। महंगाई बढ़ने के पीछे बाहरी कारण अधिक हैं। ऐसे में सरकार को वित्तीय नीति से जुड़े फैसले लेने की जरूरत है, जिससे महंगाई भी कम हो और ग्रोथ भी ना रुके। सरकार को इनडायरेक्ट टैक्स कम करना चाहिए। कॉर्पोरेट सेक्टर दाम बढ़ा रहा है, इससे उनका मुनाफा तो बढ़ रहा है, लेकिन साथ में महंगाई भी बढ़ रही है। सरकार इन पर विंडफॉल टैक्स लगाए। इस टैक्स से मिले राजस्व का उपयोग फ्यूल पर टैक्स कम करने में हो। कॉर्पोरेट प्राइसिंग पावर पर सरकार ध्यान दे। साथ ही सरकार को माइक्रो और स्मॉल युनिट्स को मदद करनी होगी। जिससे इनका उत्पादन बढ़े। फूड की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं, कालाबाजारी पर रोक लगे। रूस से मिले सस्ते तेल से हमें काफी फायदा हुआ है। इस तरह के कदम रुकने नहीं चाहिए। कुल मिलाकर बात यह है कि समय आरबीआई द्वारा कड़े मौद्रिक फैसले लेने का नहीं, बल्कि सरकार द्वारा सख्त वित्तीय फैसले लेने का है।’