पर्यावरण को बचाने और इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मानव जाति पर निर्भर करती है । वैज्ञानिकों का कहना है कि 2100 तक पृथ्वी का तापमान 2.7 डिग्री तक बढ़ सकता है । जिससे धरती के बेहद गर्म होने की संभावना है। तथा ग्लेशियर के पिघलने से बाढ़ एवं अन्य आपदाओं का सामना पृथ्वी को करना पड़ सकता है। दावा यह भी किया गया है कि अगर संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में सभी देश के नेता मिलकर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने को लेकर प्रयास नहीं करते हैं। तो सभी देश के अधिकांश जिले ग्लोबल वार्मिंग से आने वाले बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ सकते हैं। इसे देखते हुए सभी देशों के साथ मिलकर हर साल एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया है। जिसमें जलवायु परिवर्तन के संभावित तापमान को कम करने को ले कर चिंता जताई जाती ह साथ ही इसके उपाय खोजे जाते हैं। उन्ही में से एक है, COP 26
क्या है COP26 ? और किस तरह से यह मदद कर सकता है पर्यावरण को बचाने में-
दरअसल पर्यावरण को लेकर हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन तैयार करता है जिसे संयुक्त राष्ट्र वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन कहा जाता है। यह पिछले 3 दशकों से आयोजित किया जा रहा है। इसकी शुरुआत 1995 में हुई थी। इसे सिओपी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका मतलब पार्टियों का सम्मेलन अर्थात कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज बोला जा सकता है । जिसमें 190 देशों से भी ज्यादा देशों के मंत्री प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इसमें हिस्सा लेते हैं । साथ ही इन नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के यू एन एस सी सी सी जलवायु निकाय पर हस्ताक्षर किए हैं , जिसके तहत सारे देश मिलकर जलवायु में हो रहे खतरनाक परिवर्तनों पर विचार करके उसकी समस्या का समाधान निकालेंगे।
COP26 यानी कि शिखर सम्मेलन 2021 में 26 वीं बार हो रहा है । इस कारण इसका यह नाम रखा गया है । वर्ष हर देश ग्लास्गो में अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की योजना तैयार करने पर विचार कर रहे हैं। साथ ही 2015 में हुए पेरिस समझौते के अंतर्गत लिए गए जलवायु संबंधित फैसलों को इस बार पूरा किया जाना है। दरअसल कोरोनावायरस और अन्य समस्याओं के कारण 2015 पेरिस जलवायु समझौते में देशो ने अपने किए गए वादों को पूरे पूरा नहीं किया था । जिसमें नेता नियमों की एक सूची तैयार करने के लिए मिलकर काम करेंगे जो पेरिस समझौतों को पूरा करने में सहयोग प्रदान करेगा। जानकारी के लिए बता दें कि कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज यूएनएफसीसीसी के अंतर्गत आता है यूएन एससीसीसी की स्थापना 1994 में वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस सांद्रता स्थिर करने की दिशा में काम करने के लिए बनाई गई, एक बैठक थी जिसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन को कम करने का उपाय खोजना ,जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुकूल हेतु तैयारी करना ,जलवायु परिवर्तन से संबंधित शिक्षा प्रशिक्षण और जन जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल है
क्या कहा भारत ने इस बार अपने COP26 कार्यक्रम में
ग्लास्गो में आयोजित इस सम्मेलन में बढ़ते वैश्विक तापमान को रोकने के लिए 200 से अधिक देश के नेता तथा 30000 लोग शामिल हुए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश की तालिका में तीसरे नंबर पर स्थित है । पहले पर चीन और फिर अमेरिका है। वहीं वर्ष 2019 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक 1.9 टन प्रति व्यक्ति के हिसाब से भारत हर वर्ष कार्बन का उत्सर्जन करता है। जो भारत के साथ-साथ अन्य देशों के लिए काफी चिंताजनक विषय है । इसी पर बात करते हुए शिखर सम्मेलन के पहले ही दिन यानी 1 नवंबर को ग्लास्गो में 120 से अधिक नेताओं के सामने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में ऐलान करते हुए कहा कि “मैं भारत की ओर से इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं। और पंचामृत तत्व की सौगात देना चाहता हूं “अंत में मोदी ने बोला कि भारत 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को नेटजीरो कर देगा । यहां नेट जीरो का अर्थ यह है कि कि देश जितना अधिक कार्बन उत्सर्जन करेगा उतनी ही मात्रा में पेड़ पौधे कार्बन उत्सर्जन को ग्रहण कर लेंगे जिससे कार्बन उत्सर्जन की मात्रा जीरो हो जाएगी। जिसके लिए अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना जरूरी है साथ ही पेड़ों की कटाई में रोक लगाना आवश्यक है। पंचतत्व के बारे में बात करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत 2030 तक अपनी जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक पहुंचाएगा ।
भारत 2030 तक अपनी 50% ऊर्जा जरूरतें रिन्यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा । भारत अब से 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक अरब 10 की कमी करेगा । 2030 तक भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेंसिटी को 45% से भी कम करेगा। हालांकि मोदी जी ने जो समय सीमा घोषित की है वह वैज्ञानिकों के इस शताब्दी के मध्य यानी 2050 तक के सुझाए लक्ष्य से अलग है, जिससे वह स्थिति को खतरनाक होने से बचाने के लिए जरूरी बताते हैं। वहीं राष्ट्रपति बिडेन ने कहा कि “हम में से कोई भी उन बुरे हालातों से अपने आप को नहीं बचा पाएगा अगर जलवायु पर इस समय बात ना की गई तो” और इसकी देरी के कारण इसे रोकने की कीमतें और बढ़ती जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि जीवाश्म ईंधन की हमारी लत मानवता को विनाश की ओर धकेल रही है । हैरान करने वाली बात क्या है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे जिनकी कार्बन उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी मानी जा रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सभी देश अपने किए वादे को कब तक और कैसे पूरा करते हैं।