पश्चिम बंगाल विधानसभा ने बीते दिनों कुलपति से सम्बंधित के बिल विधानसभा मे प्रस्तुत किया था और इस मानसून सत्र मे उसे पास भी कर दिया था, लेकिन अभी इस बिल को राजयपाल की मंजूरी की आवश्यकता थी जो किसी भी कानून को लेकर होती ही है। इस पर राज्यपाल ने अपना कड़ा रुख दिखते हुए लौटा दिया।
इस विधेयक मे राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को राज्य विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने का का नियम था। इस विधेयक को विधानसभा पारित कर चुकी थी। यह बिल सीएम ममता बनर्जी को राज्यपाल जगदीप धनखड़ की जगह राज्य विभाग के तहत आने वाले सभी विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाएगा। राज्य विधानसभा मानसून सत्र के आने वाले दिनों में स्वास्थ्य, कृषि, पशुपालन और मत्स्य विभाग के तहत आने वाले विश्वविद्यालयों के लिए इसी तरह के विधेयक पारित करना चाहती थी पर राज्यपाल ने इस पर रोक लगा दी।
क्या बोले राज्यपाल ?
राज्यपाल अपनी शक्तियो का इस्तेमाल करके राज्य मे कुलपति की नियुक्ति करता है। वही इस पर बंगाल की ममता सरकार ने राज्यपाल से ये शक्ति वापस लेने के सन्दर्भ मे एक बिल इसी मानसून सत्र मे पास किया था और उसे मंजूरी के लिए राज्य के राज्यपाल (जगदीप धनकड़) के पास भेजा था। पर राज्यपाल ने इस बिल को ये कहते हुए वापस कर दिया की इस बिल मे नियमो के अनुपालन की अपूर्णता है। इस बिल के सन्दर्भ मे राजभवन की तरफ से एक विज्ञप्ति जारी करके कहा गया की बिल के सम्बन्ध मे जानकारी पूरी नहीं दी गयी है।
बता दे कि राज्यपाल अपनी पदेन भूमिका में सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, “पदेन क्षमता में, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल विश्वविद्यालयों के अधिनियमों के अनुसार पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालयों (वर्तमान में 17) के कुलपति हैं।
जो निम्न है विश्वविद्यालय हैं: –
कलकत्ता विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, कल्याणी विश्वविद्यालय, रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, विद्यासागर विश्वविद्यालय, बर्दवान विश्वविद्यालय, उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, नेताजी सुभाष मुक्त विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बंगाल इंजीनियरिंग और विज्ञान विश्वविद्यालय, उत्तर बंगा कृषि विश्व विद्यालय, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, आलिया विश्वविद्यालय, गौर बंगा विश्वविद्यालय और पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय।
राज्य मे क्या होती है चांसलर की भूमिका ?
चांसलर विश्वविद्यालय का अध्यक्ष का होता है और राज्य विश्वविद्यालयों के सभी दीक्षांत समारोहों की अध्यक्षता करता है। शक्तियों के दायरे में विश्वविद्यालय के किसी भी प्राधिकरण या निकाय को नामांकन करना शामिल है। कुलाधिपति, जहां तक आवश्यक हो, ऐसे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामित करेंगे जो अन्यथा पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। मानद उपाधि प्रदान करने वाला प्रत्येक प्रस्ताव चांसलर द्वारा पुष्टि के अधीन है।
कुछ राज्य है अपवाद आइये जानते है कौन कौन से राज्य मे नहीं लागु होती ये व्यवस्था।
हालांकि, कुछ राज्यों में, राज्यपालों का कुलाधिपति का पद धारण करने के बावजूद कुलपतियों की नियुक्ति में बहुत कम या कोई भूमिका नहीं होती है। तेलंगाना और गुजरात में, राज्यपालों के पास राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदित नामों में से कुलपतियों को नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
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गुजरात विश्वविद्यालय अधिनियम, 1949 में कहा गया है कि “कुलपति की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा (खोज-सह-चयन) समिति द्वारा अनुशंसित तीन व्यक्तियों में से की जाएगी”।
तेलंगाना विश्वविद्यालय अधिनियम, 1991 में कहा गया है कि खोज समिति “वर्णानुक्रम में सरकार को तीन व्यक्तियों का एक पैनल प्रस्तुत करेगी और सरकार उक्त पैनल में से कुलपति की नियुक्ति करेगी”।
अन्य राज्यों में इसी तरह के विवाद कैसे चल रहे हैं?
जबकि किसी अन्य राज्य में आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री को चांसलर के रूप में नामित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, तमिलनाडु ने अप्रैल में दो विधेयक पारित किए, जो राज्य सरकार को 13 राज्य विश्वविद्यालयों के वीसी नियुक्त करने के लिए राज्यपाल की शक्ति को स्थानांतरित करने की मांग करते हैं, राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में संशोधन की मांग करने वाले विधेयक इस बात को रेखांकित करते हैं कि “कुलपति की हर नियुक्ति सरकार द्वारा तीन नामों के पैनल से की जाएगी” एक खोज-सह-चयन समिति द्वारा अनुशंसित।
क्या है राज्यपाल की शक्तियां आइये जानते है? एक आधिकारित वेब साइट के अनुसार।
राज्यपाल सामान्य विश्वविद्यालयों, कृषि विश्वविद्यालयों, प्राविधिक विश्वविद्यालयों, चिकित्सा विश्वविद्यालयों तथा संगीत डीड-टू-बी-विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है | कुलाधिपति, अपने कार्यालय के आधार पर विश्वविद्यालय के प्रमुख हैं तथा उन्हें निम्नलिखित अधिकार निहित हैं:-
वह एक सर्च कमेटी का गठन करके कुलपतियों की नियुक्ति करता है, इसके लिए वह सर्च कमेटी द्वारा संस्तुत नामों में से उनमें से कुलपति का चुनाव एवं नियुक्ति करता है। इसके अतिरिक्त, कुलाधिपति के पास विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति को छुट्टी प्रदान करना, उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही अथवा दंडात्मक कार्यवाही करने का अधिकार भी निहित है |
विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद/न्यायालय के कुछ विशिष्ट सदस्य नामित करने का अधिकार|
कुलाधिपति के पास अपीलीय अधिकारी के रूप में वे अधिकार निहित है जिसके द्वारा वह अनेकों विश्वविद्यालय निकायों/ प्राधिकरणों के निर्णयों को रद्द कर सकता है, यदि वे उनके विचार में अधिनियमों, क़ानूनों, अध्यादेशों व विनियमों के विरुद्ध प्रतीत होते हों।
विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा उन पारित क़ानूनों एवं अन्य नियमों को स्वीकृति अथवा अस्वीकृति प्रदान करना जो कुलाधिपति के पास स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किए गए हों।
विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों एवं छात्रों के ज्ञापन एवं प्रतिनिधित्व को सुनने का अधिकार।
विश्वविद्यालयों के विभिन्न निकायों में प्रतिनिधित्व तथा उसके कॉलेजों की प्रबंध समितियों के संबंध में अंतत: चुनावी विवाद तय करने का अधिकार।
विश्वविद्यालयों में विभिन्न श्रेणियों में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु विशेषज्ञों को नामित करने का अधिकार।
विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह तथा उनके न्यायालयों/प्रबंधकारिणी समितियों की बैठकों की अध्यक्षता करने का अधिकार।
विश्वविद्यालय के शैक्षिक स्तर में सुधार, शिक्षा सत्र को नियमित करना व इनमें पुलिस संबन्धित मुद्दों पर सरकार का ध्यानाकर्षण करना, कुलपतियों व संबन्धित मंत्रालयों की समीक्षा बैठकें आयोजित करने का अधिकार।
कुलाधिपति को अन्य वह अधिकार भी निहित होंगे जो उन्हें अधिनियम व क़ानूनों द्वारा प्राप्त हैं |