वर्तमान में आम आदमी के लिए भी वंदे भारत जैसी ट्रेन बनाई जा रही है! वंदे भारत ट्रेन काफी लोकप्रिय हो गया है। अक्सर खबर आती है फलाने राज्य के सांसद ने रेल मंत्री से मिल कर अपने इलाके में वंदे भारत ट्रेन चलाने की मांग की है। इस ट्रेन की लोकिप्रयता का आलम यह है कि कई राज्यों के मुख्यमंत्री ने भी अपने राज्य में इस ट्रेन को चलाने की मांग की है। लेकिन इस ट्रेन के साथ दिक्कत यह है कि महंगा किराया होने की वजह से इसमें आम आदमी सफर नहीं कर पाते हैं। इसलिए सरकार एक नई ट्रेन वंदे साधारण चलाने की तैयारी हो रही है। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि वंदे भारत और वंदे साधारण के बीच का अंतर जानना है तो आपको शताब्दी और जन शताब्दी का अंतर जानना होगा। शताब्दी एक्सप्रेस को जब शुरु किया गया था तो इसे अमीर लोगों की ट्रेन के रूप में मान्यता मिली थी। इसका भाड़ा भी ज्यादा था। तब इस ट्रेन का आम जनता का वर्जन जन शताब्दी लाया गया।
यह वाकया साल 1988 का है। उस समय केंद्रीय रेल मंत्री माधव राव सिंधिया थे। उसी साल देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की जन्म शताब्दी थी। उसी के उपलक्ष्य में रेलवे ने नई दिल्ली से झांसी के बीच पहली शताब्दी एक्सप्रेस को चलाने की घोषणा की। बाद में इसे बढ़ा कर भोपाल कर दिया गया था। यह ट्रेन उस समय सबसे तेज गति की थी जो कि अधिकतम 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती थी। माधव राव सिंधिया ने शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन का संचालन शुरू तो कर दिया। लेकिन इसकी खूब आलोचना हुई। समाज के एक वर्ग का कहना था कि भारत जैसे एक गरीब देश मे इन विलासिता पूर्ण गाड़ियों की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि, समय बीतने के साथ इस ट्रेन का स्तर, खाने पीने के सामानों की गुणवत्ता, ट्रेन स्टाफ का व्यवहार और गति के विश्व मानकों के हिसाब से काफी नीचे तक गिर गया है। तब भी किराये के लिहाज से यह काफी महंगी ट्रेन है।
शताब्दी एक्सप्रेस चलने के एक दशक के बाद केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय जन शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन चलाने का निर्णय हुआ था। उस समय रेल मंत्री नीतीश कुमार थे। उन्होंने ही रेल अधिकारियों को सस्ती लेकिन तेज गति से दौड़ने वाली जन शताब्दी ट्रेन बनाने का निर्देश दिया। यह ट्रेन बेहद लोकप्रिय हुई क्योंकि शताब्दी की गति से दौड़ने वाली ट्रेन का किराया काफी कम है। इसमें सेकेंड क्लास का डिब्बा भी है।
रेलवे के अधिकारियों ने साल 2018 में एक इंप्रूव्ड ईएमयू ट्रेन को डेवलप किया। इसका नाम ट्रेन-18 दिया गया। बाद में इसी रोलिंग स्टॉक को वंदे भारत के रूप में चलाया गया। देश में पहली वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से वाराणसी के बीच चली थी। इसे पीएम मोदी ने 15 फरवरी 2019 को हरी झंडी दिखाई थी। बता दें कि समाज के एक वर्ग का कहना था कि भारत जैसे एक गरीब देश मे इन विलासिता पूर्ण गाड़ियों की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि, समय बीतने के साथ इस ट्रेन का स्तर, खाने पीने के सामानों की गुणवत्ता, ट्रेन स्टाफ का व्यवहार और गति के विश्व मानकों के हिसाब से काफी नीचे तक गिर गया है। तब भी किराये के लिहाज से यह काफी महंगी ट्रेन है। यह ट्रेन भारत की सबसे तेज गति की ट्रेन है। यहि नहीं नीतीश कुमार थे। उन्होंने ही रेल अधिकारियों को सस्ती लेकिन तेज गति से दौड़ने वाली जन शताब्दी ट्रेन बनाने का निर्देश दिया। यह ट्रेन बेहद लोकप्रिय हुई क्योंकि शताब्दी की गति से दौड़ने वाली ट्रेन का किराया काफी कम है। इसमें सेकेंड क्लास का डिब्बा भी है। इसमें कंफर्ट भी ज्यादा है। लेकिन किराया भी ज्यादा है। इसके एसी चेय कार का दिल्ली से वाराणसी का किराया 1805 रुपये है जबकि एक्जीक्यूटिव क्लास का किराया 3355 रुपये है।
अगले साल ही आम चुनाव होना है तो गरीबों का जिक्र कुछ ज्यादा ही होने लगा है। अब गरीबों के लिए वंदे भारत का इकॉनोमिक वर्जन वंदे साधारण तैयार किया जा रहा है। रेलवे के आधिकारिक सूत्र बताते हैं इस ट्रेन के बनाने की प्रक्रिया इंटेग्रल कोच फैक्ट्री ICF, चेन्नई में शुरू हो चुकी है। इसे अगले कुछ महीने में तैयार कर लिया जाएगा। इसमें सभी सेंकेंड क्लास के डिब्बे होंगे। इसलिए इसका किराया भी कम रहने का कयास लगाया जा रहा है।