उत्तर प्रदेश से बीजेपी टिकट में अब उम्र भी महत्वपूर्ण तत्व निभा रहा है! लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के थिंकटैंक सीटों के हिसाब से ‘उचित’ प्रत्याशियों की खोज में लग गए हैं। हर संभावित प्रत्याशी का बूथ तक का फीडबैक लिया जा रहा है। पार्टी में कई स्तर पर सर्वे रिपोर्ट पर भी माथापच्ची हो रही है। इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा उम्रदराज नेताओं की दावेदारी काे लेकर है। वैसे तो भाजपा 75 प्लस के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजती रही है। लेकिन इस बार 70 की उम्रसीमा की चर्चा तेज है। खबरें आ रही हैं कि इस उम्र सीमा को पार करने वाले नेताओं को टिकट मिलने में विचार किया जाएगा। बता उम्र की चली है तो आपको बता दें यूपी में 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके चार नेता हैं, इनमें अक्षयबर लाल गौड़, हेमा मालिनी, संतोष गंगवार, सत्यदेव पचौरी का नाम प्रमुख है। वहीं तो 8 ऐसे नेता भी हैं, जिनकी उम्र 67 से 69 वर्ष है। इनमें फैजाबाद से सांसद लल्लू सिंह, मेनका गांधी, बृजभूषण शरण सिंह, साक्षी महाराज आदि के नाम प्रमुख हैं। इस लिस्ट में राजनाथ सिंह का भी नाम है। वह 72 वर्ष के हैं। वैसे पार्टी सूत्रों के अनुसार टिकट देने में उम्र एक फैक्टर जरूर है लेकिन साथ ही नेताओं का प्रदर्शन और अनुभव भी बड़े फैक्टर हैं। राजनाथ सिंह मोदी सरकार में सबसे कद्दावर मंत्रियों में शुमार रहे हैं। वह अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ सीट से लगातार सांसद हैं।
फैजाबाद लोकसभा सीट की बात करें तो इस बार के लोकसभा चुनाव में अयोध्या क्षेत्र की ये सीट सबसे ज्यादा हॉट मानी जा रही है। यहां से सांसद लल्लू सिंह हैं, जो 69 वर्ष के हो चुके हैं। इस सीट पर पार्टी के दूसरे दिग्गज नेताओं की भी नजर है। उम्र की बात करें तो मेनका गांधी भी 67 वर्ष की हो चुकी हैं। लेकिन उनका रिकॉर्ड ऐसा रहा है कि पीलीभीत से लेकर सुल्तानपुर तक वह पार्टी को जीत परोसती रही हैं। हालांकि उनके बेटे वरुण गांधी को लेकर जरूर संशय के बादल घिरे नजर आ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से वरुण केंद्र और प्रदेश की अपनी ही सरकार के खिलाफ काफी मुख रहे हैं। वहीं बृजभूषण शरण सिंह भी वैसे तो 67 की उम्र के हैं। लेकिन पिछले दिनों पहलवानों से विवाद के चलते काफी चर्चा में रहे। इस विवाद के चलते बृजभूषण की दावेदारी पर थोड़ा असर जरूर पड़ा है। पर कैसरगंज सहित आसपास की सीटों पर बृजभूषण की अच्छी पकड़ मानी जाती है। वह राम मंदिर आंदोलन में भी चर्चा में रहे थे। लिहाजा उनका ये पहलू सशक्त है। उन्नाव से फायरब्रांड नेता साक्षी महाराज का नाम भी इस बार काफी चर्चाओं में है। दरअसल उन्नाव बीजेपी की मजबूत सीट मानी जाती है, यहां से पार्टी के दूसरे कद्दावर नेता भी जोरआजमाइश में लगे हैं। अब देखना ये होगा कि पार्टी किसके हक में फैसला लेती है।
वहीं आपको बता दें कि सहारनपुर। यहां से हाल ही में बसपा ने अपने सिटिंग सांसद हाजी फजलुर्रमान का टिकट काट दिया है। पार्टी ने यहां से 2017 विधानसभा चुनाव में देवबंद से बसपा प्रत्याशी माजिद अली को लोकसभा प्रभारी घोषित किया गया है। खास बात ये है कि इस सीट पर पहले दावेदारी इमरान मसूद की मानी जा रही थी लेकिन बसपा उन्हें निष्कासित कर चुकी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार फजलुर्रहमान पर जो कार्रवाई हुई, उसमें उनकी सपा प्रमुख अखिलेश यादव से बढ़ती नजदीकी काे कारण माना गया। यहां से आकाश आनंद को उतारकर पार्टी अपनी रणनीति पर आगे बढ़ सकती है। लेकिन बसपा के सामने समाजवादी पार्टी की भी तगड़ी चुनौती रहेगी। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर 6 लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। इनके अलावा 3 लाख एससी, डेढ़ लाख गुर्जर और साढ़े 3 लाख के करीब सवर्ण जातियां हैं। पिछले कुछ चुनावों पर गौर करें तो यूपी में समाजवादी पार्टी को कई जगह एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलते दिख रहे हैं। ये सीट बसपा ने 2019 में जरूर जीती थी लेकिन उस समय सपा और बसपा का गठबंधन था। दूसरी तरफ भाजपा भी इस सीट पर कमजोर नहीं मानी जाती। फजलुर्रहमान करीब 20 हजार वोट से ही भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा को हरा पाए थे।
तीसरी सीट अंबेडकरनगर है। पहले ये अकबरपुर नाम से जानी जाती थी। मायावती ने तीन बार इस सीट से चुनाव जीता। उन्होंने 1998, 1999 और 2004 में अकबरपुर से जीत दर्ज की और दिल्ली पहुंची। बाद में 2009 में भी यहां से बसपा ही जीती। लेकिन 2014 के बाद से बसपा यहां लगातार हार रही है। पूर्वांचल की ये सीट मायावती के दिल के करीब मानी जाती है। चुनावी राजनीति से दूरी बना चुकीं मायावती ने अंबेडकरनगर में एक रैली के दौरान कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वह अंबेडकरनगर से ही चुनाव लड़ेंगीं। दिल्ली का रास्ता तो यहीं से जाता है। बता दें 1995 में मायावती ने ही फैजाबाद से अलग कर अंबेडकर नगर जिले की स्थापना की थी। अंबेडकरनगर में 25 फीसदी आबादी अनुसूचित की मानी जाती है। यहां 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। एक तरफ तो आकाश आनंद के चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही है, वहीं दूसरी तरफ बसपा के सामने अपने ही सांसदों को बचाए रखने की चुनौती है। मायावती ने साफ ऐलान कर दिया है कि बसपा किसी गठबंधन में शामिल नहीं है। पिछले कुछ चुनावों को देखें तो उत्तर प्रदेश में बसपा की हालत काफी खराब है। 2019 लोकसभा चुनावों में भले ही उसने 10 सीटें जीती थीं लेकिन इस में भी सपा से गठजोड़ काे ज्यादा श्रेय मिला। क्योंकि 2014 में बसपा अकेले लड़ी और एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इसी तरह 2022 के विधानसभा चुनावों में भी अकेले लड़ने वाली बसपा के हाथ सिर्फ एक सीट ही लगी थी।
जाहिर है पार्टी की स्थिति को लेकर संशय के बादल गहराए हैं और कई नेता विरोधी पार्टियों के संपर्क में हैं। इनमें अमरोहा के सांसद दानिश अली भी कांग्रेस के ज्यादा करीब दिख रहे हैं। उन्हें इसी महीने 9 दिसंबर को मायावती निलंबित भी कर चुकी हैं। फजलुर्रहमान का टिकट काटा जा चुका है। अगर आकाश आनंद के लिए बिजनौर सीट का चयन होता है तो मलूक नागर को कहां एडजस्ट किया जाएगा? ये भी बड़ा सवाल है। इसी तरह अंबेडकरनगर के सांसद रितेश पांडे अपने पिता के सपा में चले जाने के कारण दुविधा में हैं। सवाल ये है कि क्या पार्टी उन्हें दोबारा टिकट देगी? इसी तरह लालगंज से सांसद संगीता आजाद और जाैनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव पर भी संशय के बादल गहराए हुए हैं।